प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो दिनों की रूस यात्रा बेहद खास रही. इस दौरान उन्होंने आपसी संबंधों पर निश्चित तौर पर कई डील्स पर बात की होगी. लेकिन एक बात इस दौरे को और खास बनाती है कि मोदी को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया. लेकिन सोचने की बात है कि रूस का सिविलियन अवॉर्ड किसी फॉरेन लीडर को क्यों मिला. क्या भारत के पास भी ऐसा कोई अवॉर्ड है.
शुरुआत करते हैं रूस में पीएम को मिले अवॉर्ड से. पुरस्कार का नाम है- ऑर्डर ऑफ सेंट एंड्रयू द एपोस्टल. भारत-रूस के बीच रिश्तों को बढ़ावा देने में शानदार योगदान के लिए पीएम मोदी को इससे नवाजा गया. 17वीं सदी से शुरू ये सम्मान रूस का सबसे बड़ा अवॉर्ड है, जो देसी और विदेशी दोनों ही लोगों को मिल सकता है. लेकिन राजनैतिक हस्तियों को ये कम ही मिलता रहा. भारतीय पीएम से पहले चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग, अजरबैजान के पूर्व राष्ट्रपति हैदर अलीयेव और कजाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति नूरसुल्तान नजरबायेव को ये मिला है. ये सभी देश रूस के करीबी रहे. नेताओं के अलावा आर्ट-कल्चर में काम करने वालों को ये ज्यादा मिलता रहा.
पीएम मोदी को कितने इंटरनेशनल अवॉर्ड मिल चुके
प्रधानमंत्री मोदी को कुछ महीनों पहले भूटान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान- ऑर्डर ऑफ द ड्रुक ग्यालपो से नवाजा गया था. इस देश ने पहले गैर-भूटानी को ये सम्मान दिया. पीएम के तौर पर पहले कार्यकाल से अब तक उन्हें 14 इंटरनेशनल सम्मान मिल चुके. दिलचस्प बात ये है कि सिविलियन अवॉर्ड देने वालों में ज्यादा मुस्लिम-बहुल देश हैं, जैसे यूएई,, अफगानिस्तान, बहरीन और सऊदी अरब.
कोई देश अपने नागरिकों के अलावा विदेशी हस्तियों को ये सम्मान तब देता है, जब बात दो देशों के अच्छे रिश्तों की हो, और संबंधित शख्स ने रिश्ते बनाने में अहम रोल निभाया हो. इसके अलावा कला, विज्ञान या साहित्य में योगदान के लिए हाईएस्ट सिविलियन अवॉर्ड दिया जाता रहा.
पीएम को इन दो देशों के साथ फ्रांस, मिस्र, फिजी, पापुआ न्यू गिनी, पलाऊ, अमेरिका, बहरीन, मालदीव, संयुक्त अरब अमीरात, फिलिस्तीन, अफगानिस्तान, सऊदी अरब ने सम्मानित किया.
देश का हाईएस्ट सिविलियन अवॉर्ड क्या
हमारे यहां भारत रत्न को हाईएस्ट सिविलियन अवॉर्ड माना जाता है. देश से इस सबसे बड़े नागरिक सम्मान की शुरुआत साल 1954 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने की थी. ये अवॉर्ड जीवित लोगों के अलावा मरणोपरांत भी मिलता रहा.
यह सम्मान कितना बड़ा है, इसका अंदाजा इस बात से लगा लीजिए कि ये देश का वीआईपी होता है, जिसे कैबिनेट मंत्री जैसा दर्जा मिलता है. उनकी आय टैक्स-फ्री होती है, और वे देश से जुड़े समारोहों में खास अतिथि के तौर पर हिस्सा ले सकते हैं. सारे राज्य भी उन्हें खास अतिथि मानते और उसी के मुताबिक सम्मान देते हैं. एयर, ट्रेन ट्रैवल मुफ्त हो जाता है.
विदेशियों को मिलता रहा है
जैसा कि नाम से समझ आ रहा है, ये अवॉर्ड भारतीयों को ही मिलेगा, लेकिन ऐसा है नहीं. ऐसा कोई औपचारिक नियम नहीं कि देश का ये सर्वोच्च पुरस्कार भारतीय नागरिक को ही मिले, बल्कि विदेशियों को भी ये मिल सकता है. अब तक तीन ऐसे लोगों- मदर टैरेसा, नेल्सन मंडला और पाकिस्तान के अब्दुल गफ्फार खान को ये सम्मान मिल चुका. हालांकि मदर टैरेसा नेचुरलाइज्ड भारतीय नागरिक हो चुकी थीं. वहीं अब्दुल गफ्फार को बतौर स्वतंत्रता सेनानी पुरस्कृत किया गया, वे तब तक पाकिस्तान में बस चुके थे. मंडेला को अश्वेतों के समान अधिकारों के लिए ग्लोबल लड़ाई पर सम्मानित किया गया. लेकिन बीते कई दशकों से यह सम्मान देश के लोगों को ही मिलता आ रहा है.
कैसे होता है चुनाव
भारत के इस हाईएस्ट सिविलियन अवॉर्ड की प्रोसेस ऐसी है कि पहले पीएम लिस्ट तैयार करवाते, और उसे राष्ट्रपति को भेजते हैं. भारत रत्न देने पर आखिरी फैसला राष्ट्रपति ही लेते हैं.
घिरता रहा विवादों में
दुनिया के किसी भी बड़े सम्मान की तरह भारत रत्न भी विवादों से बचा नहीं रहा. दो बार इसे देने पर रोक लगा दी गई. सत्तर के दशक में आपातकाल के दौरान बाकी सम्मानों के साथ इसपर पाबंदी लगी हुई थी. बाद में साल 1992 में भारत रत्न की वैधता को लेकर सवाल उठाए गए. यहां तक कि इसे लेकर कोर्ट में याचिका दाखिल की गई, जिसके चलते तीन साल तक किसी को भी ये पुरस्कार नहीं मिल सका. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ये फिर शुरू हो सका.
अब भी ये अवॉर्ड समय-समय पर सवालों में घिर जाता है, खासकर राजनैतिक शख्सियतों के मामले में. अक्सर विपक्ष सत्ता पक्ष पर आरोप लगाता है कि वो अपने लोगों को सम्मान देती है.