करीब 13 दिनों की लड़ाई में इजरायल और फिलिस्तीन दोनों ही तरफ के 5 हजार से ज्यादा लोगों की जानें जा चुकीं. वैसे तो युद्ध की शुरुआत हमास ने की, लेकिन माना जा रहा है कि इस टैरर गुट को गाजा पट्टी के लोगों का सपोर्ट रहा है. तभी ज्यूइश मिलिट्री की लगातार चेतावनी के बाद भी ज्यादातर लोगों ने इलाका नहीं छोड़ा. आसपास के अरब देश भी फिलिस्तीन के सुर में सुर मिला रहे हैं. उनका कहना है कि वे फिलिस्तीनियों को अपने यहां शरण नहीं दे रहे क्योंकि इससे उनका अपनी ही जमीन पर दावा कमजोर पड़ जाएगा.
क्या दलील है इजरायल की
लेबनान, सीरिया, जॉर्डन और मिस्र से घिरे इस देश का इतिहास काफी उठा-पटक वाला रहा. यहूदियों के धार्मिक ग्रंथ तोराह में लिखा है कि इजरायल वो अकेली जमीन है, जिसे खुद ईश्वर ने बनाया, और उसे यहूदियों के हवाले कर दिया.
यहां तक कि इजरायल के अलावा इसमें पड़ोसी देशों के सीमावर्ती हिस्सों का भी जिक्र है. ये इलाके आज के इजिप्ट, सीरिया, लेबनान और इराक में आते हैं. ज्यूइश इन हिस्सों पर हालांकि कोई दावा नहीं करते, बल्कि इजरायल तक सिमटे रहना चाहते हैं. हां, इतना है कि वे अपने देश की सुई-बराबर जमीन का भी बंटवारा नहीं करना चाहते.
ऐसे शुरू हुई थी यहूदी देश की कहानी
इसमें एक और बात जोड़ी जाती है. इतिहासकारों के मुताबिक, 1000 ईसा पूर्व यानी करीब सवा दो हजार साल पहले डेविड ने इजरायल पर राज किया. यहूदियों के इस वैभवशाली दौर का जिक्र हिब्रू बाइबिल में मिलता है. येरूशलम किंग डेविड की राजधानी थी. आगे चलकर उनके बेटे सोलोमन ने सत्ता संभाली, और पिता के नाम पर मंदिर भी बनवाया. इसके बाद के वक्त में कई बदलाव आए. सत्ता बनी-बिगड़ी.
अब बात करते हैं मुस्लिमों की
वे दावा करते हैं कि 7वीं सदी में पैगंबर ने मक्का से जेरूशलम की यात्रा एक रात में की थी. यही उनका आखिरी पड़ाव था. इतनी अहम घटना के बाद मुसलमानों के लिए भी ये पवित्र जगह बन गई. इस बीत इजरायल पर हमले चलते रहे, लेकिन सबसे बड़ा बदलाव असीरियन रूलर्स के आने से हुआ. उन्होंने कथित तौर पर यहूदियों को अपनी ही जमीन से खदेड़ना शुरू कर दिया.
उन्होंने डेविड मंदिर को भी तोड़फोड़ दिया. अब इसकी केवल एक दीवार बाकी है, जिसपर माथा टेककर यहूदी प्रार्थना करते हैं. इसे वेस्टर्न वॉल भी कहा जाता है.
कब बढ़ी मुसलमानों की आबादी
साल 1517 में ऑटोमन साम्राज्य आया. उसके बाद लंबे समय तक इजरायल पर मुस्लिम शासक बने रहे. यही वो समय रहा होगा, जब इस जमीन पर मुसलमानों का अधिकार बढ़ा. यहूदियों के कई कबीले पहले ही भगाए जा चुके थे. हालांकि ये सारी बातें दावे से नहीं कही जातीं. दोनों ही समुदाय अपने-अपने तर्क देते हैं.
वर्ल्ड वॉर से जुड़ा नया चैप्टर
यहां तक तो हुई पुरानी बात. पहले विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश और ज्यूइश लोगों के बीच एक समझौता हुआ. इसमें ब्रिटेन ने वादा किया कि अगर यहूदी उसका साथ दें तो वो उनका देश वापस लौटा देगा. यहूदियों ने लड़ाई में ब्रिटेन और मित्र देशों का जमकर साथ दिया लेकिन समझौता लागू नहीं हो सका. तत्कालीन ब्रिटिश सरकार मुस्लिम-बहुल मुल्क को छेड़ने से डरती रही.
फिर आया दूसरा वर्ल्ड वॉर. हिटलर अपनी कौम को सबसे शुद्ध मानता और ज्यूइश लोगों से नफरत करता. उसके आदेश पर लाखों लोगों को गैस चैंबर में मार दिया गया. तब जर्मनी और पोलैंड समेत पूरे यूरोप से ये समुदाय भाग-भागकर इजरायल में शरण लेने लगा.
युद्ध खत्म होने के बाद यूएन ने मध्यस्थता करते हुए यहूदियों को उनकी जमीन वापस दिला दी. फिलिस्तीन का बड़ा हिस्सा भी इसमें शामिल था, जो तब ब्रिटेन के अधीन था. हालांकि वहां बसे हुए लोगों ने यूएन के फैसले को स्वीकार नहीं किया. दूसरी तरफ अपनी मेहनत के बूते ज्यूइश आगे बढ़ने लगे. यहीं से फसाद खिंचता चला गया.
अब हमास क्या चाहता है
इसका हिसाब बिल्कुल साफ है. वो पूरे के पूरे फिलिस्तीन को मुस्लिम देश बनाने की फेर में है. इसमें गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक ही नहीं, बल्कि येरूशलम समेत तमाम इजरायल आ जाता है. वैसे फिलहाल ये लोग गाजा स्ट्रिप की ही बात कर रहे हैं. चरमपंथियों का ये भी कहना है कि यहूदियों के साथ हिंसा पश्चिमी देशों ने की थी तो उसकी भरपाई भी वे ही करें, न कि फिलिस्तीनी.
पड़ोसी देश क्या कहते हैं
1959 में अरब लीग रिजॉल्यूशन 1547 लागू हुआ था. ये कहता है फिलिस्तीनियों को 'उनके अपने देश ' की नागरिकता दिलवाने के लिए अरब देशों को सपोर्ट करना चाहिए. अरब ये तर्क देते हैं कि अगर उन्होंने अपने देशों में फिलिस्तीन के लोगों को नागरिक अधिकार देना शुरू कर दिया, तो ये एक तरह से फिलिस्तीन को खत्म करने जैसा होगा. लोग बाहर बस जाएंगे और अपनी जमीन यहूदियों के लिए छोड़ जाएंगे.