
अरुणाचल प्रदेश से सटी सीमा पर अपने इलाके में चीन गांव बसा रहा है. लिहाजा अब भारत ने भी 'वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम' शुरू किया है. गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को अरुणाचल के किबिथू गांव में इस प्रोग्राम को शुरू किया. इसका मकसद एलएसी से सटे गांवों को विकसित करना और वहां बुनियादी ढांचे को मजबूत करना है. हालांकि, अमित शाह के इस दौरे पर चीन भड़क गया है. चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि इस दौरे से चीन की क्षेत्रीय संप्रभुता का उल्लंघन हुआ है. चीन अरुणाचल प्रदेश को 'जांगनान' कहता है और उसे अपना हिस्सा बताता है.
क्या है वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम?
-मोदी सरकार ने सीमावर्ती गांव के डेवलपमेंट के लिए 'वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम' शुरू किया है. इस प्रोग्राम के तहत अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और लद्दाख के गांवों की पहचान की गई है.
-केंद्र सरकार के मुताबिक, लद्दाख के अलावा इन चार राज्यों के 19 जिलों के 2 हजार 967 गांवों को डेवलप किया जाएगा. शुरुआत में 662 गांवों की पहचान की गई है.
-प्राथमिकता के आधार पर जिन 662 गांवों की पहचान की गई है, उनमें 455 गांव अरुणाचल प्रदेश के हैं. इनके अलावा हिमाचल प्रदेश (75), उत्तराखंड (51) सिक्किम (46) और लद्दाख (35) के गांव हैं.
गांवों में क्या-क्या होगा?
1. गांव का आर्थिक विकास, ताकि लोगों को रोजगार के साधन मिल सकें.
2. रोड कनेक्टिविटी बढ़ाना.
3. गांवों और घरों का इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत करना.
4. पारम्परिक या सौर ऊर्जा के जरिए गांवों में अक्षय ऊर्जा पहुंचाना.
5. आईटी बेस्ड कॉमन सर्विस सेंटर बनाना. साथ ही गांवों में दूरदर्शन और कम्युनिकेशन कनेक्टिविटी को स्थापित करना.
6. पर्यटन और संस्कृति को बढ़ावा देना.
7. स्किल डेवलपमेंट और एंटरप्रेन्योरशिप बढ़ाना.
8. स्थानीय स्तर पर सहकारियों समितियों का विकास, ताकि गांव में कृषि, बागवानी, औषधीय पौधे और जड़ी बूटी की खेती जैसे अजीविका के अवसरों का प्रबंधन कराया जा सके.
इन सबमें कितना खर्चा आएगा?
- केंद्र सरकार ने इस प्रोग्राम के लिए 2022-23 से 2025-26 तक के लिए 4,800 करोड़ रुपये का फंड रखा है, जिसमें से 2,500 करोड़ रुपये सिर्फ रोड कनेक्टिविटी के लिए है.
पर इस प्रोग्राम की जरूरत क्यों?
- भारत और चीन सीमा 3,488 किलोमीटर लंबी है. जम्मू-कश्मीर से 1,597 किमी, अरुणाचल प्रदेश से 1,126 किमी, उत्तराखंड से 345 किमी, हिमाचल प्रदेश से 200 किमी और सिक्किम से 220 किमी लंबी सीमा चीन की लगती है.
- इन सभी राज्यों की सीमाओं से सटे बहुत सारे गांव ऐसे हैं जो वीरान हो चुके हैं. लोग रोजगार की तलाश में गांव छोड़कर शहर चले गए.
- सीमा पर बसे ये गांव भारतीय सेना के लिए रणनीतिक महत्व के हैं. यहां के गांववाले सेना के लिए फर्स्ट इंटेलिजेंस हैं. इन्हें सेना की आंख और कान कहा जाता है. इसके अलावा ये सीमा पर जरूरी सामान पहुंचाने में भी मदद करते हैं.
- ऐसे में खाली होते गांव बड़ी समस्या बन रहे हैं. इसलिए इन वीरान पड़े गांवों को फिर से बसाने के लिए केंद्र सरकार ने वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम शुरू किया है. इसके तहत गांव के लोगों को उसी गांव या आसपास के गांवों में रोजगार दिया जाएगा. स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा दिया जाएगा.
-इस प्रोग्राम का एक मकसद ये भी है कि एलएसी से सटे इन गांवों में अभी जो लोग रह रहे हैं, वो पलायन न करें.
कितना खास है किबिथू?
- किबिथू अरुणाचल प्रदेश का पहला गांव है जिसे वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम के तहत विकसित किया जाएगा. 1962 में जंग शुरू हुई थी, तो किबिथू उन जगहों में से एक था जहां चीनी सैनिकों ने सबसे पहला कब्जा कर लिया था.
- ये गांव अरुणाचल प्रदेश के हवाई जिले में स्थित जिला मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर दूर है. यहां से चीन की सीमा तकरीबन 15 किलोमीटर दूर है. ये गांव भारत-चीन-म्यांमार के ट्राई-जंक्शन दीपू पास से लगभग 40 किलोमीटर दूर है.
- मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, किबिथू की मौजूदा आबादी दो हजार से भी कम है. यहां के 320 से ज्यादा परिवार ऐसे हैं जिनके दो या उससे ज्यादा सदस्य शहरी इलाकों या फिर राज्य या देश के दूसरे हिस्सों में रहते हैं.
चीन को कैसे मिलेगा जवाब?
- चीन ने एलएसी के पार सैकड़ों गांव बसा रखे हैं. इन गांवों को बसाने का काम 2017 में शुरू हुआ था, जो 2021 में पूरा हो गया था.
-रिपोर्ट्स दावा करती हैं कि चीन लद्दाख बॉर्डर से सटे अपने इलाके में बहुत तेजी से निर्माण कार्य कर रहा है. चीन इन इलाकों में बहुत सारे नए विलेज बसा रहा है.
- इन गांवों में चीन दूसरे इलाकों से लोगों को लाकर यहां बसा रहा है. इन्हें हथियार चलाने की ट्रेनिंग दी जा रही है. कहा जा रहा है कि चीन ने भारत की सीमा के आसपास 500 से ज्यादा गांव बसा दिए हैं. इन गांवों को चीन की सेना अपनी डिफेंस पोस्ट की तौर पर इस्तेमाल करती है.
- सितंबर 2021 में अमेरिकी रक्षा विभाग पेंटागन की एक रिपोर्ट आई थी. इस रिपोर्ट में दावा किया गया था कि चीन ने अरुणाचल के अपर सुबनसिरी जिले में गांव बना लिया है. यहां सेना की चौकी भी बना रखी है.
- ऐसे में जब एक ओर चीन सीमा से सटे अपने इलाकों में गांवों को बना रहा है. तो उसके जवाब में अब भारत भी अपनी ओर गांवों को दोबारा बसा रहा है. यहां बसाहट होने से सेना को काफी मदद मिलेगी.
चीन से क्यों बेहतर है भारत का मॉडल?
- पहली बात तो ये है कि अरुणाचल प्रदेश के साथ जो सीमा लगती है, वो चीन की नहीं बल्कि तिब्बत की है. चीन दावा करता है तिब्बत उसका हिस्सा है, जबकि तिब्बती खुद को आजाद बताते हैं.
- अरुणाचल सीमा से सटे इलाकों में चीन जो गांव बसा रहा है, वहां हान लोगों को बसाया जा रहा है. इसके पीछे चीन का एक मकसद ये भी है कि हान चीनी इन गांवों में बस जाए ताकि स्थानीय तिब्बतियों के विद्रोह का मुकाबला किया जा सके.
- इसके अलावा चीन ने इन गांवों में अपने भरोसेमंद तिब्बतियों को भी बसाया है, लेकिन उन पर वो पूरी तरह से भरोसा नहीं कर सकता. लिहाजा, एलएसी के पार गतिविधियों और भारतीय सेना पर नजर रखने के जिस मकसद से चीन ने इन गांवों को बसाया है वो पूरी तरह से सफल नहीं है.
- दूसरी ओर, भारत के इन गांवों को बसाने और विकसित करने का मकसद सिर्फ चीन ही नहीं है, बल्कि यहां के स्थानीय निवासियों का विकास करना और उनकी आजीविका सुधारना भी है. इन सबके बाद भारत का मकसद ये है कि यहां लोग बसें ताकि वो भारतीय सेना की आंख और कान बन सकें.
अरुणाचल प्रदेश पर चीन का क्या है दावा?
- चीन अरुणाचल प्रदेश के 90 हजार वर्ग किमी के हिस्से पर अपना दावा करता है. जबकि, लद्दाख का करीब 38 हजार वर्ग किमी का हिस्सा चीन के कब्जे में है. इसके अलावा 2 मार्च 1963 को हुए एक समझौते में पाकिस्तान ने पीओके की 5,180 वर्ग किमी जमीन चीन को दे दी थी.
- 1914 में जो मैकमोहन लाइन खींची गई थी, चीन उसे नहीं मानता है. दरअसल, 1914 में शिमला में हुए समझौते में तीन पार्टियां थीं- ब्रिटेन, चीन और तिब्बत. इस सम्मेलन में सीमा से जुड़े कुछ अहम फैसले हुए. उस समय ब्रिटिश इंडिया के विदेश सचिव हेनरी मैकमोहन थे. उन्होंने ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच 890 किमी लंबी सीमा खींची. इसे ही मैकमोहन लाइन कहा गया.
- इस लाइन में अरुणाचल प्रदेश को भारत का हिस्सा बताया गया था. आजादी के बाद भारत ने मैकमोहन लाइन को माना, लेकिन चीन ने इसे मानने से इनकार कर दिया. चीन ने दावा किया कि अरुणाचल दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा है और चूंकि तिब्बत पर उसका कब्जा है, इसलिए अरुणाचल भी उसका हुआ.
- चीन मैकमोहन लाइन को नहीं मानता है. उसका कहना है कि 1914 में जब ब्रिटिश इंडिया और तिब्बत के बीच समझौता हुआ था, तब वो वहां मौजूद नहीं था. उसका कहना है कि तिब्बत उसका हिस्सा रहा है, इसलिए वो खुद से कोई फैसला नहीं ले सकता. 1914 में जब समझौता हुआ था, तब तिब्बत एक आजाद देश हुआ करता था. 1950 में चीन ने तिब्बत पर अपना कब्जा कर लिया था.