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सदियों तक बौद्ध-बहुल ब्रुनेई 14वीं सदी के आखिर तक कैसे बदल गया इस्लामिक मुल्क में, अब कितनी धार्मिक आजादी?

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में ब्रुनेई का दौरा किया. इस छोटे-से एशियाई देश जाने वाले वे पहले भारतीय पीएम हैं. किसी समय ब्रुनेई में हिंदू और बौद्ध धर्म के अनुयायी थे. आखिरी राजा के धर्म बदलने के साथ ही इसका मजहबी स्वरूप भी तेजी से बदला.

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ब्रुनेई में लंबे वक्त तक बौद्ध शासन रहा. (Photo- Getty Images)
ब्रुनेई में लंबे वक्त तक बौद्ध शासन रहा. (Photo- Getty Images)

हाल ही में पीएम नरेंद्र मोदी ने ब्रुनेई का दौरा किया, जिसमें कई जगहों पर साझेदारी की बात हुई. सुन्नी मेजोरिटी वाले इस देश में शरिया कानून चलता है. यहां इस्लाम के अलावा किसी और मजहब के प्रचार या धर्म परिवर्तन पर भी रोक है. ये सब तक है जबकि लगभग पंद्रहवीं सदी तक यहां हिंदू और बौद्ध आबादी ज्यादा थी. जानें, कैसे हुआ इतना बड़ा धार्मिक बदलाव. 

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एशियाई देश ब्रुनेई की आबादी लगभग साढ़े चार लाख है. मलय भाषा बोलने वाले देश में छठीं सदी से हिंदू-बौद्ध साम्राज्य का राज था. कई इतिहासकार इसपर बात करते हैं. ब्रिटिश लेखक ग्राहम सौंडर्स की किताब अ हिस्ट्री ऑफ ब्रुनई में विस्तार से बताया गया है कि कैसे यहां इस्लाम धर्म फैला. 

इन साम्राज्यों का था प्रभाव

जब तक के प्रमाण मिलते हैं, तब से यहां श्रीविजय और मजापहित राजवंशों का शासन था. ये हिंदू-बौद्ध साम्राज्य थे, जो दक्षिण-पूर्व एशिया में फैले हुए थे. इनका शासन सुमात्रा, जावा और फिलीपींस तक था. श्रीविजय की बात करें तो ये समुद्री व्यापार पर चलने वाली बेहद ताकतवर सल्तनत थी, जो व्यापार के जरिए ही फैल रही थी. ब्रुनेई तक काफी छोटा स्टेट था. चूंकि समुद्री रास्तों पर श्रीविजय के व्यापारियों का शासन था, जो कि हिंदू-बौद्ध बहुल थे, तो ब्रुनेई पर भी उसका असर हुआ. कहा जा सकता है कि व्यापारिक सहयोग और मेलजोल के बीच धर्म ने इस देश में पैठ बना ली. 

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how did brunei turn into a muslim country from buddhism pm narendra modi visit  photo Getty Images

सबसे पहले कौन सा धर्म था

छठीं-सातवीं सदी से पहले यहां कौन सा धर्म था, इसपर कोई पक्की बात नहीं मिलती. दस्तावेजों के अभाव के चलते माना जाता है कि यहां आदिवासी धार्मिक मान्यताएं रही होंगी. 

शिल्प पर अब भी छाप

हिंदू-बौद्ध साम्राज्य चूंकि व्यापारिक और सांस्कृतिक तौर पर मजबूत था, तो इसका असर ब्रुनेई पर भी हुआ. उसके लिए बड़े देशों जैसे भारत, चीन और दूसरे दक्षिण एशियाई देशों के साथ व्यापार के रास्ते खुले. विदेशी व्यापारियों और जहाजों की आवाजाही से यहां के बंदरगाह संपन्न होने लगे. सांस्कृतिक समृद्धि की बात करें तो इसका असर कला, स्थापत्य, और शिल्पकला पर पड़ा. आज भी इमारतों से लेकर कला पर इसका असर दिखता है. 

इस तरह बढ़ा इस्लामिक प्रभाव

13वीं सदी के आसपास दक्षिण-पूर्व एशिया में मुस्लिम व्यापारियों की आवाजाही बढ़ी. व्यापारी वर्ग से होते हुए आम लोगों तक भी धर्म का असर बढ़ा. धीरे-धीरे इस्लाम का प्रभाव फैलने लगा. 14वीं सदी में ब्रुनेई के राजा अवांग अलक बेतातार ने भी इस्लाम अपना लिया. उनका नया नाम था- सुल्तान मुहम्मद शाह. इसके बाद ही ये देश आधिकारिक तौर पर इस्लामिक मुल्क बन गया. बाद के शासक भी धर्म प्रचार करते रहे और बड़ी आबादी ने बौद्ध धर्म छोड़ दिया. 

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मलक्का सल्तनत से क्या है संबंध

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कहीं-कहीं जिक्र मिलता है कि मलेशिया स्थित मलक्का सल्तनत से भी यहां इस्लाम बढ़ा. बता दें कि इस सल्तनत की नींव 13वीं सदी में एक हिंदू राजा ने की थी, जो श्रीविजय साम्राज्य के पतन के बाद भागकर मलक्का पहुंचे थे. बाद में इस राजा ने भी इस्लाम धर्म अपना लिया. व्यापारिक संबंधों के दौरान यहां से भी इस्लाम का असर ब्रुनेई पर पड़ा. 

अब कितनी धार्मिक स्वतंत्रता

फिलहाल ब्रुनेई में 80 फीसदी से ज्यादा सुन्नी मुस्लिमों के बीच केवल 6 से 7 फीसदी ही बौद्ध आबादी बाकी है. ये भी स्थानीय नहीं, बल्कि चीनी मूल के लोग हैं, जो लंबे समय से ब्रुनेई में रह रहे हैं. वे यहां रहते हुए अपने धर्म की प्रैक्टिस तो कर सकते हैं लेकिन निजी तौर पर. वे अपने धर्म का प्रचार नहीं कर सकते, न ही किसी धार्मिक इवेंट को बड़े स्तर पर मना सकते हैं. यहां कुछ ही बौद्ध मंदिर बाकी हैं, जहां अल्पसंख्यकों की आवाजाही है. 

साल 2014 में ही ब्रुनेई में पूरी तरह से शरिया कानून लागू हो गया. इस्लामिक कानून के तहत यहां कई अलग नियम तो हैं ही, साथ ही यहां रहने वालों के लिए इस्लामिक पढ़ाई अनिवार्य है. अफगानिस्तान या ईरान की तर्ज पर यहां धार्मिक पुलिस है, जो नजर रखती है कि लोग इस्लामिक कानून का पूरी तरह से पालन कर रहे हों. 

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