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भड़काऊ भाषण से क्यों उन्मादी हो जाती है भीड़, हेट क्राइम का दिमाग के किस हिस्से पर होता असर?

हरियाणा में दो समुदायों के बीच हुए तनाव के चलते हालात अब भी तनावपूर्ण बने हुए हैं. इस बीच दोनों समुदाय एक-दूसरे पर हेट स्पीच का आरोप लगा रहे हैं. वैसे हेट स्पीच किसी भी रैली या प्रदर्शन से कहीं ज्यादा असर करती है, और सुनने वाले तुरंत मारकाट पर राजी हो जाते हैं. इक्का-दुक्का नहीं, इतिहास में ऐसे ढेरों उदाहरण हैं, जिसमें हेट स्पीच की वजह से नरसंहार हुआ.

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इतिहास में ऐसे ढेरों उदाहरण हैं, जिसमें हेट स्पीच की वजह से नरसंहार हुआ. सांकेतिक फोटो (Unsplash)
इतिहास में ऐसे ढेरों उदाहरण हैं, जिसमें हेट स्पीच की वजह से नरसंहार हुआ. सांकेतिक फोटो (Unsplash)

यहूदी नरसंहार या होलोकास्ट भी यही है. दूसरे वर्ल्ड वॉर के दौरान 60 लाख से ज्यादा यहूदियों को खौफनाक मौत दी गई. ज्यादातर लोगों को गैस चेंबर में भरकर मार दिया गया. ये मौत एकाएक नहीं हुई. ऐसा नहीं था कि जर्मन्स यहूदियों से हमेशा से नफरत करते थे. ये नफरत सिलसिलेवार ढंग से जगाई गई. असल में तब जर्मनी पर नाजी शासन था. हिटलर के कहने पर पूरा का पूरा मीडिया यहूदियों के खिलाफ आग उगलने लगा. मकसद यही था कि आम जर्मन भी उनसे दूर होने लगें. ऐसा ही हुआ. यहां तक कि वे लोग खुद यहूदियों को सजा दिलाने में मदद करने लगे. 

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ऐसी ढेरों मिसालें हैं, जब दो तबकों को जो पहले दोस्त हुआ करते थे, नफरती भाषणों ने हमेशा के लिए अलग कर दिया. कम्बोडिया, रवांडा, बोस्निया, म्यांमार में रोहिंग्याज- ये सबके सब हेट स्पीच की वजह से मारे या भगाए गए. 

क्या है हेट स्पीच?

आम भाषा में इसे भड़काऊ भाषण भी कह सकते हैं. ये किसी खास शख्स, समुदाय, जेंडर या नस्ल को टारगेट करता हुआ होता है. यूनाइटेड नेशन्स स्ट्रेटजी एंड प्लान ऑफ एक्शन्स के अनुसार संवाद का कोई भी तरीका, जो किसी की पहचान, उसके देश, भाषा, तौर-तरीके, जाति-धर्म, रंग को बुरा बताता हो, वो हेच स्पीच है. ये बोलने तक सीमित नहीं, लिखने या इशारों से भी ये होता है. 

how hate speech provokes brain to commit hate crime- photo Getty Images

किस इरादे से की जाती हैं ऐसी बातें?

हेट स्पीच का मसकद हेट क्राइम को उकसाना है. यानी एक शख्स, जाति, नस्ल या जेंडर के लोग या तो खत्म हो जाएं, या फिर एकदम दबकर रहें. लिंचिंग, नरसंहार, मास रेप ये सारी चीजें हेट स्पीच की देन हैं. अक्सर ये वॉर के दौरान होते रहे, लेकिन अब सामान्य माने जाते हालातों में भी हेट क्राइम दिखता है. 

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क्या कहती है नफरत पर स्टडी?

नफरत अपने-आप में सबसे मजबूत इमोशन्स में से है. साल 2018 में यूनिवर्सिटी ऑफ एम्सटर्डम के मनोवैज्ञानिकों ने माना कि एक-दूसरे से नफरत इंसानी स्वभाव ही है. ये प्यार जितना ही स्वाभाविक है. प्यार भले तेजी से न फैले, लेकिन नफरत जैसा निगेटिव इमोशन ज्यादा तेजी से असर करता है. 

हेटर्स का भी बन जाता है समूह

एक्सपर्ट्स के मुताबिक, नफरत लोगों को ज्यादा जल्दी समूह में लाती है. जैसे एक खास तबके से नफरत करने वाले दो लोग आपस में आसानी से कनेक्ट हो जाएंगे. ये लोग आपस में मदद करने लगेंगे. और आपसी मदद के लिए ही दूसरे ग्रुप को परेशान करने लगेंगे. इसे यूक्रेन के उदाहरण से समझ सकते हैं. रूस से लड़ाई छिड़ने पर इस देश के लोग भागकर बाहरी मुल्कों में शरण लेने लगे. इसपर पोलैंड ने सीधे कह दिया कि वो वाइट यूक्रेनियों को ही अपने यहां पनाह देगा, ब्लैक और खासकर मुसलमानों की उसके यहां कोई जगह नहीं.  यूनाइटेड नेशन्स के कहने के बाद भी उसने अपनी बात नहीं छोड़ी. 

नेशनल परोकिएलिज्म इज यूबिक्विटस अक्रॉस 42 नेशन्स नाम से ये स्टडी नेचर कम्युनिकेशन्स में छपी. 

how hate speech provokes brain to commit hate crime - photo Pixabay

हेट स्पीच कैसे बदलती है हेट क्राइम में

इसमें पहला स्टेप है- स्टिमुलेशन. ये दिमाग के एमिग्डाला को उकसाता है. ये बादाम की तरह का स्ट्रक्चर है जो भावनाओं पर कंट्रोल करता है. एमिग्डाला से ही प्यार जैसी भावना आती है, और गुस्से-नफरत जैसी भी. 

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इस दौरान एक बदलाव और होता है. दिमाग का फ्रंटल कॉर्टेक्स कुछ समय के लिए लगभग डीएक्टिवेट हो जाता है. इस हिस्से का काम सही-गलत का फैसला लेना है. जब हम हेट स्पीच सुनते हैं, दिमाग सुनकर कुछ गलत करने को उकसाता है और हम बिना सोचे-समझे कर बैठते हैं. 

मस्तिष्क में एमिग्डाला और प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स के बीच गेटवे की तरह काम करने वाला हिस्सा वेंट्रल स्ट्रिएटम भी भड़काऊ भाषण सुनने के बाद हमें उकसाता है. किसी से मारपीट करने के बाद जो शांति दिमाग को मिलती है, वो भी इसी गेटवे का नतीजा है. 

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