अपनी सीमा से सटे लगभग सभी देशों से चीन का तनाव चला आ रहा है, ताइवान इसमें सबसे ऊपर है. हाल में इस देश ने आरोप लगाया कि चीनी लड़ाकू विमान उसकी सीमा के भीतर घुस आए. ये आरोप पहली बार नहीं. अप्रैल में भी तााइवान ने इसपर नाराजगी जताई थी. चीन अपने बॉर्डर फैलाने को लेकर काफी आक्रामक रहा है. यहां तक पीपल्स लिबरेशन आर्मी के सैनिक रोज असली लड़ाई की नकली प्रैक्टिस करते रहते हैं ताकि वाकई में जंग छिड़ जाए तो चीनी सैनिक कम न पड़ें.
कैसा है नकली जंग का मैदान
ये इनर मंगोलिया ऑटोनॉमस रीजन में है, जिसे पीपल्स लिबरेशन आर्मी का सबसे बड़ा ट्रेनिंग कैंप माना जाता है. करीब 1,066 स्क्वैयर किलोमीटर में फैला ये एरिया हांगकांग जितना बड़ा है. इसे जुरिहे ट्रेनिंग बेस भी कहा जाता है. वैसे तो साल 1957 में इसे टैंक ट्रेनिंग बेस की तरह तैयार किया गया, लेकिन फिर चीनी अधिकारियों ने तय किया कि भीतर की तरफ होने के कारण ये ट्रेनिंग सेंटर हर तरह की लड़ाई की ड्रिल के लिए सबसे सही जगह है. इसके बाद इसे हाई-टेक युद्ध के मैदान की तरह डेवलप किया गया.
पहाड़-मैदान सबकुछ है यहां पर
यहां मैदानों में ही सैनिक नहीं लड़ते, बल्कि पहाड़ों और रेतीले इलाकों में भी लड़ाई की प्रैक्टिस चलती रहती है. अलग-अलग जगहों और अलग-अलग तरीकों से लड़ाई की प्रैक्टिस के पीछे चीन का साफ इरादा है कि दुनिया के मुश्किल से मुश्किल इलाके में भी उनके सैनिक लड़ने के लिए ट्रेंड रहें.
ताइवान के राष्ट्रपति भवन की नकल
लड़ाई की मॉक ड्रिल तो लगभग सभी देशों के सैनिक करते हैं, लेकिन जुरिहे में कुछ बातें अलग हैं. जुलाई 2016 में यहां की एक सैटेलाइट इमेज में चौंकाने वाली चीज नजर आई. यहां एक इमारत ताइवान के राष्ट्रपति भवन की नकल है. सैनिक उसपर हमला करते और मॉक इनवेजन की प्रैक्टिस करते हैं. इमेज जारी होने पर ताइवानी सरकार ने पीपल्स लिबरेशन आर्मी की इस हरकत पर काफी नाराजगी भी जताई थी. लेकिन बात यहीं नहीं रुकी. जुरिहे में ताइवान के वेस्टर्न कोस्टल शहर के सैन्य एयरपोर्ट का भी रेप्लिका तैयार हो गया.
चीनी सेना और कथित दुश्मन सेना की ट्रेनिंग अलग-अलग
रियलिस्टिक लड़ाई का रूप देने के लिए सैनिकों को दो टुकड़ों में बांट दिया जाता है. वे अलग-अलग रंगों की यूनिफॉर्म पहनते हैं. जैसे दुश्मन देश की सेना (नकली) को नीला रंग दिया जाता है, जबकि कम्युनिस्ट देश चीन के सैनिक लाल रंग की यूनिफॉर्म पहनते हैं. अधिकारी रोज अलग-अलग जगहें चुनते हैं, जहां ये दोनों टुकड़ियां युद्ध करती हैं. कभी ये पहाड़ी इलाकों में होता है, तो कभी तेज बारिश के दौरान. ये सब कुछ इसलिए होता है ताकि कैसे भी हालात चीन की सेना के आगे रुकावट न बनें.
किस तरह के हथियारों का इस्तेमाल?
लड़ाई को असल युद्ध की शक्ल देने के लिए वो सारे वेपन इस्तेमाल होते हैं, जो असल युद्ध में होते हैं, जैसे टैंक, हथियारबंद गाड़ियां, और आर्टिलरी. इस दौरान सेनाएं एक-दूसरे के साथ पर्याप्त हिंसक होती हैं. खुद चीन के सरकारी मीडिया ने कई बार रिपोर्ट किया था कि सैनिक एक-दूसरे के कमांडरों को अगवा कर लेते हैं ताकि दुश्मन टुकड़ी पर समर्पण का दबाव बन सके.
वैसे तो दोनों ही टुकड़ियां चीन की होती हैं, लेकिन इन्हें अलग-अलग ट्रेनिंग मिलती है. जैसे ब्लू फोर्स, जो वेस्ट या दुश्मन सेना का प्रतीक है, उसे वही प्रशिक्षण मिलता है, जो वेस्ट में कॉमन है. ये नाटो फोर्स की तरह काम करती है. वहीं रेड फोर्स की अलग ट्रेनिंग होती है. ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक चीन उन सभी देशों की सैन्य रणनीतियों की स्टडी करता है, जिससे उसके अच्छे ताल्लुुक नहीं. इसी हिसाब से अपनी फौज को ट्रेनिंग देता है.
चिप के जरिए ब्रेन में बदलाव तक के लगे आरोप
जीतने के लिए चीन पर किसी भी हद तक जाने के आरोप अक्सर लगते रहे. अमेरिकी नेशनल इंटेलिजेंस ने करीब दो साल पहले आरोप लगाया था कि चीन अपने सैनिकों से जीन्स में बदलाव कर रहा है ताकि उन्हें ज्यादा क्रूर बनाया जा सके. तकनीक के जरिए कथित तौर पर उन्हें ऐसी मशीन में बदल दिया जाएगा जो बिना रुके हफ्तों लड़ाई कर सके. जिन्हें किसी पर दया न आए और जो सिर्फ कत्लेआम मचाएं. वैसे ब्रेन-चिप मर्जिंग के नाम से जाती जाती इस तकनीक पर चीन अकेला घिरा हुआ नहीं, बल्कि कई देश एक-दूसरे पर आरोप लगाते हैं.
क्या है चीन-ताइवान का मसला?
चीन ताइवान को अपना हिस्सा मानता है लेकिन ताइवान खुद को संप्रभु राष्ट्र मानता है. वहां का अपना संविधान है और लोगों की चुनी हुई सरकार है. इसी को लेकर चीन और ताइवान के बीच विवाद चल रहा है. दोनों के बीच ये विवाद 70 सालों से ज्यादा समय से चल रहा है.