मोदी 3.0 में भी ओम बिरला ही लोकसभा के स्पीकर होंगे. उन्हें ध्वनि मत से स्पीकर चुन लिया गया है. विपक्षी INDIA ब्लॉक ने के. सुरेश को मैदान में उतारा था. हालांकि, विपक्ष ने ही डिविजन नहीं मांगा, जिस वजह से स्पीकर का फैसला ध्वनि मत से ही हो गया.
ये पांचवीं बार है जब किसी लोकसभा स्पीकर को दोबारा चुना गया है. ओम बिरला से पहले एमए आयंगर, जीएस ढिल्लों, बलराम जाखड़ और जीएमसी बालयोगी ही दोबारा स्पीकर चुने गए हैं. हालांकि, अब तक सिर्फ बलराम जाखड़ ही एकमात्र ऐसे हैं, जिन्होंने लगातार दो बार स्पीकर का कार्यकाल पूरा किया है.
स्पीकर तो चुन लिया गया है और अब बारी डिप्टी स्पीकर की है. पिछली मोदी सरकार में डिप्टी स्पीकर का पद खाली रहा था. विपक्ष की मांग है कि परंपरा के मुताबिक डिप्टी स्पीकर का पद उसे मिलना चाहिए. हालांकि, अब तक डिप्टी स्पीकर के पद को लेकर कुछ साफ नहीं हुआ है. डिप्टी स्पीकर के पद की संवैधानिक बाध्यता नहीं है. डिप्टी स्पीकर का चुनाव कब होगा, ये स्पीकर तय करेंगे.
लोकसभा स्पीकर का पद संवैधानिक पद होता है. सदन का सबसे प्रमुख व्यक्ति स्पीकर ही होता है. सदन में स्पीकर की मंजूरी के बिना कुछ नहीं हो सकता. सदन की कार्यवाही स्पीकर की देखरेख में ही होती है. अगर स्पीकर नहीं हैं तो डिप्टी स्पीकर सदन की कार्यवाही चलाते हैं.
लोकसभा स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का पद कैसे आया? ये जानते हैं, लेकिन उससे पहले जानेंगे कि देश में लोकसभा कैसे बनी?
1919 का वो कानून
साल 1919 में ब्रिटिश इंडिया में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट पास हुआ. इस कानून के जरिए ही संसद का गठन हुआ था. कानून के तहत, संसद के दो सदन बनाए गए. पहला- सेंट्रल लेजिस्लेटव असेंबली जो निचला सदन था. और दूसरा- काउंसिल ऑफ स्टेट जो ऊपरी सदन था.
संसद के दो सदनों को बनाने की सिफारिश मोंट-फोर्ड रिफॉर्म्स ने की थी. ब्रिटिश इंडिया में तत्कालीन विदेश सचिव एडविन मोंटागू और वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड ने 1918 में एक रिपोर्ट तैयार की थी. इसी रिपोर्ट के आधार पर गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट लागू किया गया था.
शुरुआत में सेंट्रल लेजिस्लेटव असेंबली में 142 सदस्य थे, जिनमें से 101 चुने जाते थे, जबकि 41 को नामित किया जाता था. जिन 101 सदस्यों को चुना जाता था, उनमें से 52 सामान्य, 29 मुस्लिम, 2 सिख, 7 यूरोपियन, 7 जमींदार और 4 कारोबारी हुआ करते थे. बाद में तीन सीटें- दिल्ली, अजमेर-मेवाड़ और नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रॉविंस जोड़ी गईं. सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली के लिए पहला चुनाव नवंबर 1920 में हुआ था.
आजादी के बाद जब इंडियन इंडिपेंडेंस एक्ट 1947 लागू हुआ तो सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली को भंग कर दिया गया. इसके बाद 1950 में संविधान लागू होने के बाद सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली का नाम लोकसभा और काउंसिल ऑफ स्टेट का नाम राज्यसभा रखा गया.
ऐसे आया स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का पद
जब सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली बनी, तब उसमें स्पीकर या डिप्टी स्पीकर का पद नहीं हुआ करता था. तब प्रेसिडेंट और डिप्टी प्रेसिडेंट कहा जाता था.
1921 में गवर्नर जनरल ने फ्रेडरिक व्हाइट को सेंट्रल लेजिस्लेटिव असेंबली का प्रेसिडेंट नियुक्त किया. सच्चिदानंद सिन्हा डिप्टी प्रेसिडेंट चुने गए.
असेंबली के प्रेसिडेंट पद के लिए 24 अगस्त 1925 को चुनाव हुए थे. उस चुनाव में स्वराज पार्टी के उम्मीदवार विट्ठलभाई पटेल ने टी रंगाचारियार को हराया था. विट्ठलभाई पटेल इस पद पर 28 अप्रैल 1930 तक बने रहे. उनके बाद मोहम्मद याकूब प्रेसिडेंट बने.
असेंबली के प्रेसिडेंट (स्पीकर) पद के लिए 1925 से 1946 के बीच छह बार चुनाव हुए थे. आखिरी बार 24 जनवरी 1946 को चुनाव हुआ था. तब कांग्रेस उम्मीदवार जीवी मावलंकर प्रेसिडेंट चुने गए थे. आजादी के बाद जब असेंबली को भंग किया गया तो मावलंकर को अनंतिम संसद का स्पीकर बनाया गया. 17 अप्रैल 1952 को जब पहली लोकसभा का गठन हुआ तो मावलंकर को ही स्पीकर चुना गया.
और इस तरह से स्पीकर और डिप्टी स्पीकर का पद आया. आजादी के बाद पहले स्पीकर जीवी मावलंकर थे. तब डिप्टी स्पीकर एमए आयंगर थे. फरवरी 1956 में मावलंकर के निधन के बाद आयंगर लोकसभा के स्पीकर बने.
आजादी से अब तक हमेशा सत्तारूढ़ पार्टी या गठबंधन का सांसद ही लोकसभा स्पीकर बना है. जबकि, अब तक 18 डिप्टी स्पीकर हुए हैं, जिनमें से 10 बार ही विपक्षी पार्टी या गठबंधन के सांसद को ये जिम्मेदारी मिली है.