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2 साल में 4 हजार से ज्यादा हमले, केरल में क्यों खूंखार हो रहे हाथी? सरकार ने की वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट में बदलाव की मांग

केरल में बीते दो साल के भीतर करीब 9 हजार पशुओं ने इंसानों पर हमला किया. इसमें आधे से ज्यादा अटैक हाथियों ने किए थे. हालात ये हैं कि राज्य वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट में बदलाव चाहता है ताकि जानवरों को कंट्रोल किया जा सके. ये अंदेशा भी जताया जा रहा है कि जल्द ही इंसानों और पशुओं के बीच टकराव अपने चरम पर पहुंच जाएगा.

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केरल ने वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट में बदलाव की मांग की है. (Photo- Unsplash)
केरल ने वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट में बदलाव की मांग की है. (Photo- Unsplash)

जंगली हाथियों के हमले का मुद्दा केरल के वायनाड में गरमाया हुआ है. इस दौरान न्याय यात्रा बीच में ही छोड़कर कांग्रेस ली़डर राहुल गांधी पीड़ित परिवारों से मिलने पहुंचे. कुछ ही समय में यहां एक के बाद एक कई लोग हाथियों के हमले में जान गंवा बैठे हैं. मुआवजे के अलावा स्थानीय लोग इसके स्थाई हल की मांग कर रहे हैं. इस बीच केरल सरकार ने भी वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन कानून में ढिलाई की मांग की. 

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आधे से ज्यादा मौतें हाथियों के हमले में

केरल सरकार ने एक डेटा जारी किया, जिसमें साल 2022-23 में जानवरों और इंसानी लड़ाई में मौतों का जिक्र है. दो साल के भीतर 8,873 जंगली पशुओं ने इंसानों पर हमला किया. इसमें 4193 हमले अकेले हाथियों ने किए थे. लगभग डेढ़ हजार हमले जंगली भालू, जबकि दो सौ के लगभग टाइगर अटैक थे. हमलों में कुल 98 जानें गई, जिसमें से 27 मौतें हाथियों के अटैक से हुई थीं. ये रिपोर्टेड मौतें हैं. हो सकता है कि संख्या इससे ज्यादा भी हो, क्योंकि हमले में बहुत से लोग गंभीर रूप से घायल भी हुए. सीधे नुकसान के अलावा अप्रत्यक्ष नुकसान भी हुआ. जैसे खेती का नुकसान, या रात में बाड़े में आकर गाय-बैल को मार देना. 

ये जिला है सबसे ज्यादा प्रभावित

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वायनाड केरल से सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में से है, जहां 36 प्रतिशत से ज्यादा जंगल है. इसके अलावा कन्नूर, पलक्कड और इदुक्की में भी हाथियों से लेकर बाकी जंगली जानवरों ने आतंक मचाया हुआ है. ये इलाके नागरहोल टाइगर रिजर्व, बांदीपुर नेशनल पार्क और बीआर टाइगर रिजर्व से सटे हुए हैं, जो कर्नाटक में है. यहां भी जंगली पशु केरल तक पहुंच जाते हैं. 

human-animal conflict kerala and demand of wildlife protection act photo Unsplash

जीपीएस लगाकर हो रही ट्रैकिंग

खूंखार हाथियों पर नजर रखने के लिए उन्हें रेडियो-कॉलर्ड बना दिया गया. इसके लिए उनमें एक छोटा ट्रांसमीटर फिट कर दिया गया, जो उनके आने-जाने या दूसरी गतिविधियों पर ट्रैक रख सके. GPS वाली ये ट्रैकिंग डिवाइस हाथियों के गले में बांध दी जाती है. इससे मूवमेंट के अलावा उनके व्यवहार का भी पता लगता रहता है कि वे कब ज्यादा आक्रामक हो रहे हैं. इसके बाद भी केरल में ह्यूमन-एनिमल कनफ्लिक्ट बढ़ता ही दिख रहा है. 

क्यों गुस्सैल हो रहे हाथी

साल 2018 में केरल में हाथियों के हमले का पैटर्न समझने के लिए पेरियार टाइगर कन्जर्वेशन फाउंडेशन ने एक स्टडी की. इसके अनुसार, 2 बड़ी वजहें हैं, जो हाथियों समेत बाकी पशु गुस्सैल हो रहे हैं. जंगलों को काटकर कमर्शिकल पेड़-पौधे लगाए जा रहे हैं, जैसे नीलगिरी और बबूल. इससे पशुओं को पेटभर खाना तो मिल ही नहीं रहा, साथ ही चूंकि ये स्पीशीज जमीन से पानी सोख लेते हैं तो आसपास पानी की कमी भी हो रही है.

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अकेले केरल में ही 30 हजार हैक्टेयर से ज्यादा फॉरेस्ट लैंड इस काम के लिए इस्तेमाल हो रहा है. स्टडी के बाद इन दोनों पेड़ों पर रोक लगा दी गई. हालांकि नुकसान की भरपाई अब भी नहीं हो सकी है. अब तक केवल एक हजार हैक्टेयर जंगल ही पहले जैसे हो सके हैं.

human-animal conflict kerala and demand of wildlife protection act photo Getty Images

क्यों आ रहे आबादी वाले इलाकों में

केरल में नारियल और अनानास की खेती हो रही है. तो होता ये है कि जंगलों में खाने की कमी से परेशान हाथी ऐसी फसलों की तरफ चले आते हैं. चूंकि ये खेत गांवों के आसपास होते हैं तो इंसानों से उनका टकराव हो ही जाता है. कई बार ऐसे मामलों में हाथियों की भी मौत हो जाती है. जैसे मई 2020 में वहां एक प्रेग्नेंट हथिनी को पटाखों से भरा अनानास खिला दिया गया. बुरी तरह घायल जानवर राहत के लिए नदी में घुस गया. पानी में खड़े-खड़े ही उसकी मौत हो गई. तब भी ये बात उठी थी कि वहां हाथियों को लेकर लोग क्रूर हो रहे हैं. उन्हें लगता है कि हाथी उनके इलाके में घुस रहे हैं, जबकि है इसका उल्टा. 

इसलिए बढ़ रहा विरोध

जंगली हाथी गांव में पहुंच रहे हैं, या फिर बस्तियों पर हमले कर रहे हैं ताकि उनका पेट भर सके. ये एक तरह से जिंदा रहने की लड़ाई है, जिसकी वजह कहीं न कहीं इंसान ही हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन की शोधकर्ता ब्रायना अब्राहम्स ने इसपर एक पेपर लिखा, जो साइंस जर्नल में छपा. ये कहता है कि वक्त के साथ ह्यूमन-वाइल्डलाइफ कन्फ्लिक्ट बढ़ता ही जाएगा, अगर हमने उनके हैबिटेट के पास जाना न छोड़ा तो. ये बिल्कुल वैसा ही है कि अगर कोई हमारे घर पर कब्जा करना चाहे तो हम उसका विरोध करेंगे. 

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केरल में हाथियों की स्थिति और खराब

यहां 700 से ज्यादा हाथी धार्मिक संस्थाओं ने पास रहते हैं. चूंकि केरल की संस्कृति में इस पशु को काफी शुभ माना जाता है, तो अलग-अलग त्योहारों पर ये हाथी किराए पर भी लिए जाते हैं. उन्हें लंबे समय तक भीड़-भाड़ में खड़ा रहना होता है. आसपास पटाखे चलते रहते हैं, या कई बार वे आग के पास रखे जाते हैं. अक्सर उन्हें छोटी गाड़ियों में डालकर राज्य के एक से दूसरी जगह ले जाता है. लोगों के बीच शांति से रहने की ट्रेनिंग के दौरान हाथियों पर बुरी तरह से हिंसा की जाती है, जैसे नशा देना या मारपीट करना. इससे उनकी प्रीमैच्योर डेथ की खबरें भी आ रही हैं.  

human-animal conflict kerala and demand of wildlife protection act photo Getty Images

हुई एक्ट में बदलाव की डिमांड

इंसानों और पशुओं के बीच टकराव के बीच ही केरल में वाइल्डलाइफ एक्ट में बदलाव की मांग हो रही है. केरल विधानसभा में सभी पार्टियों की सहमति से प्रस्ताव भी लाया जा चुका. वे सेंटर से मांग कर रहे हैं कि कानून में थोड़ी ढिलाई मिले, जिससे इंसानों को राहत मिल सके. 

क्या कहता है एक्ट

- वाइल्डलाइफ प्रोटेक्शन एक्ट, 1972 के तहत जंगली पशुओं के अलावा पेड़-पौधौं की स्पीशीज का भी प्रोटेक्शन किया जाता है.

- एक्ट में कई ऐसे नियम हैं जो पशुओं को सुरक्षा देने के लिए बनाए गए.

- वन्यजीवों पर अटैक करने वालों को 3 से 7 साल की सजा हो सकती है. साथ ही 10 से 25 हजार तक का जुर्माना भी लगाया जा सकता है. 

- कोई टाइगर रिजर्व में शिकार करे, या उन्हें नुकसान पहुंचाने की कोशिश करता दिखे तो उसे सजा के अलावा बड़ा जुर्माना देना होगा.

- शिकार या वाइल्डलाइफ को नुकसान पहुंचाने के दौरान जब्त हुआ सामान, गाड़ियां या हथियार सरकार जब्त कर लेती है. 

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क्यों चाहता है राज्य इसमें बदलाव 

यहां ह्यूमन-एनिमल कनफ्लिक्ट लगातार बढ़ रहा है. केरल सरकार का कहना है कि एक्ट में बदलाव होना चाहिए ताकि इंसानों को नुकसान पहुंचा रहे जीवों पर काबू पाया जा सके. साथ ही खासकर ऐसे पशुओं पर कंट्रोल हो सके, जिनकी आबादी तेजी से बढ़ती है. इसमें खेती को नुकसान पहुंचाने वाले जानवर, जैसे जंगली सुअरों के शिकार की छूट भी मांगी जा रही है, जब उनकी आबादी ज्यादा हो जाए.

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