इजरायल और हमास का युद्ध लंबा खिंचता लग रहा है. इस बीच दोनों तरफ कई देश जमा हो चुके हैं, जो उछल-उछलकर जंग की आग को उकसा रहे हैं. हालांकि गाजा पट्टी के साथ अलग ये हो रहा है कि उसके लोगों के साथ सबकी संवेदना तो है, लेकिन कोई भी उन्हें रिफ्यूजी की तरह अपनाने को राजी नहीं. यहां तक कि पड़ोसी मुस्लिम मुल्कों ने उनके लिए दरवाजे बंद कर रखे हैं.
इस बीच स्कॉटलैंड के पहले मंत्री हमजा युसुफ का बयान आया कि उन्हें शरण दे सकते हैं. लेकिन इसमें भी पेंच है. स्कॉटिश लोग बिना ब्रिटिश मर्जी के कुछ नहीं कर सकते. वे ब्रिटेन का हिस्सा हैं, और जब तक ब्रिटेन के पीएम सुनक इसे मंजूरी नहीं देते, युसुफ की बात हवा-हवाई ही रहेगी. लेकिन यहां कई सवाल आते हैं.
स्कॉटलैंड को आखिर आजादी क्यों चाहिए. क्यों ये मामला अटका हुआ है. और दुनिया के कई देशों में बंटवारा की आग लगाने वाले ब्रिटेन में आखिर कितने हिस्से अलगाव चाहते हैं.
सबसे पहले ब्रिटेन का बेसिक समझें
इसका पूरा नाम यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन एंड नदर्न आयरलैंड है. इसमें ब्रिटेन, उत्तरी आयरलैंड, वेल्स और स्कॉटलैंड शामिल हैं. ये चारों शॉर्ट में यूके कहलाते रहे. ब्रिटेन, स्कॉटलैंड और वेल्स की यूनियन को ग्रेट ब्रिटेन कहते हैं. ये अलग प्रांत तो हैं, लेकिन देश एक ही है. और इनकी फॉरेन पॉलिसी से लेकर सारे बड़े फैसले ब्रिटेन की संसद करती है.
कब फूटा अलगाव का अंकुर
ब्रिटेन बनाम स्कॉटलैंड की शुरुआत 1296 ईसवीं से होती है. तब इंग्लैंड के राजा एडवर्ड फर्स्ट ने स्कॉटलैंड पर कब्जा कर लिया. खुद को इंग्लैंड से बेहतर मानते स्कॉटिश इसपर नाराज हो गए. विद्रोह की आग भड़की, जो लंबे समय तक बुझ नहीं सकी. इसके बाद भी चिंगारी बाकी रही. यहां तक कि इसके लिए कई बार जनमत संग्रह तक कराया गया. ये अलग बात है कि ज्यादातर स्कॉटिश खुद को यूके का हिस्सा मानते हैं और अलग होने से इनकार कर दिया.
स्कॉटलैंड क्यों चाहता है आजादी?
इसका जवाब नूडल्स से भी ज्यादा उलझा हुआ है. बाहर से अगर हम जैसे लोग देखें तो दोनों जगहें एक ही हैं. दोनों एक जैसी भाषा बोलते हैं, दोनों जगहों का मौसम लगभग एक सा है. और रंग भी एक जैसा है. लेकिन करीब से देखा जाए तो दोनों में काफी फर्क है. अंग्रेजी की बात करें तो स्कॉटिश और ब्रिटिश लोग आपस में एक-दूसरे की अंग्रेजी नहीं समझ पाते. दोनों की खानें और शराब की पसंद अलग है. यहां तक कि स्कॉटलैंड के पास अलग झंडा तक है.
अब क्या अलग है
स्कॉटलैंड के नाम ऑटोनॉमी है. उसका अलग फ्लैग, राजधानी और अलग संसद है. यहां तक कि वे अपना कानून भी बना सकते हैं, लेकिन जिनपर वो कानून बनाएंगे, उसका दायरा बहुत लिमिटेड है. वे खेती, हेल्थ, एजुकेशन जैसी बातों पर तो फैसले ले सकते हैं, लेकिन फॉरेन पॉलिसी, डिफेंस और इमिग्रेशन जैसी चीजें अब भी ब्रिटेन के पास हैं.
हमसा युसुफ के आने से क्या बदल सकता है
युसुफ को इसी मार्च में स्कॉटलैंड का फर्स्ट मिनिस्टर चुना गया. ये एक तरह से प्रधानमंत्री का पद है. पाकिस्तानी मूल के युसुफ ने आते ही कहा कि वो अपने देश को आजादी दिलाकर रहेंगे. फिलहाल ऐसा हुआ नहीं है, लेकिन ये बड़ा वादा है. अगर वे इसे पूरा कर सकें तो स्कॉटलैंड के साथ-साथ ब्रिटेन का भी चेहरा बदल जाएगा.
युसुफ मुस्लिमों के लिए ज्यादा उदार दिखते हैं. हो सकता है कि वे अपनी विदेश नीति में उन्हें ज्यादा जगह दें. गाजा पट्टी के लोगों को न्यौता देकर उन्होंने इसकी शुरुआत भी कर दी है.
तोड़ने वाले कई आंदोलन चल रहे
भारत का बंटवारा करने वाले ब्रिटेन के अपने ही भीतर कई अलगाववादी आंदोलन हो रहे हैं. स्कॉटलैंड के अलावा आयरलैंड, वेल्स भी इससे आजादी की मांग करते रहे. यहां तक कि कॉर्नवॉल जैसा छोटा हिस्सा भी अलग होना चाहता है. सबसे दिलचस्प चीज लंदन की आजादी की बात है. राजधानी लंदन में भी खुद को देश बनाने की डिमांड होती रही.
लंदन को क्यों चाहिए आजादी
लंदन की आबादी लगभग 90 लाख है. यहां केवल ब्रिटेन नहीं, बल्कि दुनियाभर के लोग रहते हैं. इसका इकनॉमिक साइज भी बाकी ब्रिटेन से काफी बड़ा रहा. मिसाल के तौर पर, इसकी GDP सिंगापुर से ज्यादा है. लंदन को अलग देश बनाने वालों का ये तर्क है कि उसकी चुनौतियां बाकी देश की चुनौतियों से अलग हैं, ऐसे में उसे फोकस तभी मिलेगा, जब वो अलग मुल्क बन जाए.
साल 2014 और 2016 में एक मार्केट रिसर्च कंपनी यूगव ने इसपर सर्वे भी किया. इसमें पाया गया कि लंदन की लगभग 20 प्रतिशत आबादी आजादी चाहती है. ऐसा सोचने वालों में 25 से 34 साल के लोग ज्यादा थे.