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भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में फैला है अवैध शराब का बाजार, 25 फीसदी गड़बड़झाला, जानिए- कैसे हो जाती है शराब जहरीली?

तमिलनाडु में जहरीली शराब पीने से 34 लोगों की मौत हो गई, जबकि 60 की हालत नाजुक बताई जा रही है. आमतौर पर अवैध शराब ही जहरीली साबित होती है. इसका मार्केट भारत ही नहीं, पूरी दुनिया में फैला हुआ है. यूएन ट्रेड एंड डेवलपमेंट की मानें तो दुनियाभर में बन रहे अल्कोहल का 25 फीसदी अवैध रूप से तैयार होता है.

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तमिलनाडु के कल्लाकुरिची जिले में जहरीली शराब से 30 से ज्यादा मौतें हो गईं. (Photo- Reuters)
तमिलनाडु के कल्लाकुरिची जिले में जहरीली शराब से 30 से ज्यादा मौतें हो गईं. (Photo- Reuters)

तमिलनाडु के कल्लाकुरिची जिले में जहरीली शराब पीने से हुई 34 मौतों का मामला गरमाया हुआ है. मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के जांच के आदेश के बीच कहा जा रहा है कि शराब  अवैध थी. अवैध अल्कोहल का मामला देश के कई राज्यों से तो अक्सर ही आता है, लेकिन ये यहीं तक सीमित नहीं. यूरोप से लेकर अफ्रीका तक अवैध और मिलावटी शराब का बड़ा बाजार फैला हुआ है. 

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क्या कहता है डेटा

यूएन की शाखा- संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास सम्मेलन ने साल 2022 में एक रिपोर्ट जारी की, जो दावा करती है कि दुनिया में शराब उत्पादन का एक चौथाई अवैध तौर पर ही होता है. यानी हर चार बोतल में एक बोतल अल्कोहल अवैध. ये कानूनी नियमों और लाइसेंसिंग को नजरअंदाज करते हुए बनाई जाती है ताकि शराब बनाने वालों और बेचने वालों को टैक्स न देना पड़े और ज्यादा से ज्यादा फायदा हो सके. 

किसे कहते हैं अवैध शराब

कई बार लोगों को ये भ्रम रहता है कि अवैध शराब का मतलब है देसी शराब, लेकिन ऐसा है नहीं. देसी शराब के उत्पादन के लिए भी सरकार बाकायदा लाइसेंस देती है. इसे पूरी प्रोसेस के साथ बनाया जाता है ताकि पीने पर सेहत को सीधा खतरा न हो. दूसरी तरफ, अवैध शराब देसी या इंग्लिश दोनों ही हो सकती है, लेकिन ये होगी बगैर लाइसेंस की. चूंकि अवैध होने की वजह से इसकी लागत कम रहती है, इसलिए ये सस्ती भी पड़ती है. यही वजह है कि अक्सर कम आयवर्ग के लोग इसके फेर में पड़कर जान गंवा देते हैं. 

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illicit liquor market in world amid tamil nadu hooch tragedy photo PTI

इस तरह बनती है शराब

हर देश में अवैध शराब बनाने की अलग प्रक्रिया है, जो वहां के लोगों के स्वाद पर निर्भर करती है, लेकिन कुछ चीजें इसमें एक सी हैं. हमारे यहां कच्ची शराब के लिए गुड़ के एक बायप्रोडक्ट, पानी और यूरिया का उपयोग होता है. गुड़ फर्मेंट हो सके, इसके लिए खतरनाक केमिकल भी डाले जाते हैं. कई बार इसमें यूरिया भी मिलता है ताकि नशा गहरा हो. इन सबको मिलाकर शराब बनाने के दौरान तापमान का खास महत्व है. जरा भी घटबढ़ हुई कि केमिकल्स शराब को जहरीला बना देते हैं. 

भारत में छोटे कस्बों या गांवों में अवैध शराब बनती है. प्रशासन की नजरों से बचने और लागत कम से कम रखने के लिए शराब में सस्ती क्वालिटी वाले उत्पाद मिला दिए जाते हैं जिससे खतरा और बढ़ जाता है. इसके बाद पैकेजिंग में भी गड़बड़ी होती है. इसे आमतौर पर पॉलिथीन पैकेट में बेचा जाता है ताकि पैसे बचें. 

शराब की हो रही तस्करी

दुनिया की बात करें तो अवैध शराब के लिए तस्करी भी जमकर हो रही है. इसमें सीधे बने हुए अल्कोहल के अलावा कच्चे माल जैसे इथेनॉल की भी स्मगलिंग होती है. मार्केट रिसर्च पर काम करने वाली इंटरनेशनल संस्था यूरोमॉनिटर के अनुसार, अवैध शराब की तस्करी और भी कई तरीकों से होती रही. जैसे ब्रांडेड अल्कोहल की खाली बोतलों में इन्हें भर दिया जाना. सरोगेट यानी इंसानी उपयोग से इतर अल्कोहल की भी तस्करी होती है, जैसे माउथवॉश, दवा या परफ्यूम में काम आने वाला अल्कोहल.

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illicit liquor market in world amid tamil nadu hooch tragedy photo Unsplash

कितना फायदा है अल्कोहल इंडस्ट्री में

शराब की अलग-अलग किस्मों से अच्छा-खास रेवेन्यू बनता है. यूएन की रिपोर्ट में ऑक्सफोर्ड इकनॉमिक्स के हवाले से कहा गया कि साल 2019 में शराब इंडस्ट्री से 70 देशों को 262 बिलियन डॉलर का मुनाफा हुआ था. साथ ही 23 मिलियन से ज्यादा लोगों को नौकरियां मिली थीं, जिससे अलग फायदा हुआ. ये डेटा बड़े देशों का है. विकासशील देशों को शराब से और भी ज्यादा फायदा हुआ. 

हमारे यहां अल्कोहल पर क्या है नियम

भारत में अल्कोहल पर भारी टैक्स लगता है. अक्सर ये कर, खरीद मूल्य का 50 प्रतिशत होता है. इसके पीछे ये तर्क है कि जैसे स्मोकिंग के शौकीन चाहे जितनी महंगी हो, सिगरेट खरीदेंगे ही, वैसे ही पीने का शौकीन शराब खरीदेगा. चूंकि ये बेसिक जरूरत की चीज नहीं, केवल शौक है इसलिए इसपर टैक्स भी भारी-भरकम है. ज्यादातर राज्यों में कुल रेवेन्यू का 10 प्रतिशत यही टैक्स होता है. कुल मिलाकर वैध शराब इतनी महंगी पड़ जाती है कि कम आय वाले लोग अवैध शराब की तरफ बढ़ जाते हैं जो कई बार जानलेवा साबित होती है. 

क्यों बिगड़ती है हालत, होती है मौत

शराब में इस्तेमाल होने वाला इथेनॉल एक नशीला एजेंट है. अल्कोहल बनाने के दौरान इसी तरह का एक और लिक्विड मेथेनॉल भी पैदा होता है. वैसे तो इंसान लगातार इसके संपर्क में आते रहते हैं लेकिन अगर मात्रा ज्यादा हो जाए तो ये बेहद खतरनाक हो सकते हैं. मिसाल के तौर पर सेब की बात करें तो इसके औसत साइज के जूस के गिलास में लगभग 0.2 प्रतिशत मेथेनॉल रहता है. लेकिन अगर शुद्ध मेथेनॉल लिया जाए, या उसका 10 मिली भी शरीर के भीतर पहुंचे तो इंसान स्थाई तौर पर ब्लाइंड हो सकता है, या जान जा सकती है. 

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illicit liquor market in world amid tamil nadu hooch tragedy photo Reuters

शराब बनाने वाले मेथेनॉल को हटाने में काफी सावधानी रखते हैं लेकिन कई बार इसकी कुछ मात्रा छूट जाती है. कई शराब निर्माता सोचते हैं कि मेथेनॉल से नशा ज्यादा होगा तो इसलिए भी वे इस केमिकल को हटाते नहीं. मेथेनॉल और इथेनॉल का ये मेल भी जानलेवा हो सकता है. 

क्या हैं मेथेनॉल पॉइजनिंग के लक्षण

इसके शुरुआती लक्षण नशे की तरह ही होते हैं. पीने वाले को कोई अलग अहसास नहीं होता. 10 या इससे ज्यादा घंटे बीतने पर असर दिखता है. पीनेवाले सिरदर्द, पेट में दर्द, उल्टी आना, धुंधला दिखना और उनींदेपन की शिकायत करते हैं. एक बार लक्षण दिखने के बाद हालात बिगड़ते ही चले जाते हैं. पॉइजनिंग से दिल का दौरा पड़ने और कोमा में चले जाने से लेकर मौत भी हो सकती है. 

क्या सरकार के पास है रोक लगाने का अधिकार

भारत उन कुछ देशों में है, जिसके संविधान में भी मादक/नशीले पेय पदार्थों पर प्रतिबंध का जिक्र है. हालांकि ये स्टेट पॉलिसी के तहत आता है. इसका आर्टिकल 47 राज्यों से कहता है कि हेल्थ के लिए खतरनाक नशीली चीजें, जो दवाओं में काम आ सकें, उन्हें छोड़कर बाकी सबपर रोक लगाई जा सकती है. लेकिन ये केवल निर्देश है, राज्य अपनी मर्जी से तय कर सकते हैं कि उन्हें शराबबंदी करनी है या नहीं. पिछले कुछ सालों में, कई राज्यों (तमिलनाडु समेत) ने शराबबंदी की कोशिश की है, लेकिन गुजरात के अलावा सबने इसे वापस ले लिया.

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