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क्या जजों के खिलाफ भी लाया जा सकता है महाभियोग प्रस्ताव, क्या है प्रोसेस, कौन करता है कार्रवाई?

इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक जज के विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में दिए भाषण पर विवाद हो रहा है. उनके खिलाफ महाभियोग की भी बात हो रही है. पहले भी कई जजों के खिलाफ ये प्रस्ताव लाया जा चुका. लेकिन निजी मौकों पर हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज क्या बोलें, क्या इसे लेकर कोई गाइडलाइन है? अगर नहीं, तो किस आधार पर महाभियोग लाया जाता है?

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इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक जज के बयान पर विवाद हो रहा है. (Photo- AFP)
इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक जज के बयान पर विवाद हो रहा है. (Photo- AFP)

इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शेखर कुमार याादव विश्व हिंदू परिषद के एक प्रोग्राम में दिए अपने बयान को लेकर घिरे हुए हैं. उन्हें हटाने की मांग करते हुए महाभियोग प्रस्ताव लाने की बात हो रही है. जस्टिस यादव ने समान नागरिक संहिता पर बात करते हुए कथित तौर पर बोला था कि कानून बहुमत के अनुसार हो. इसी बात पर पार्टियां हमलावर हो रही हैं. यहां तक कि मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट से इसपर जानकारी मांगी. फिलहाल इस बारे में और जानकारी नहीं आ सकी लेकिन जजों के खिलाफ महाभियोग का केस पहली बार नहीं सुनाई पड़ रहा. बेहद ताकतवर इस पद पर बैठे लोग भी कई बार घिर चुके. 

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देश में हाईकोर्ट जज के खिलाफ महाभियोग लाना मुमकिन है. संविधान के अनुच्छेद 124(4) और अनुच्छेद 217 के तहत, जजों को पद से हटाने की प्रोसेस तय की गई है. वैसे यह काफी मुश्किल प्रक्रिया तो है लेकिन अगर जज पर गलत व्यवहार या क्षमता की कमी जैसे आरोप लगें तो ऐसा कदम उठाया जा सकता है. 

किस कहा जाता है गलत व्यवहार या अक्षमता

इसकी कोई सीधी परिभाषा नहीं है. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने जजों के लिए आचरण और नैतिकता से जुड़ी गाइडलाइन जारी की, जिसे ज्यूडिशियल एथिक्स कहते हैं. काफी अंदाजा इससे हो जाता है. इसके अलावा संबंधित जज अगर रिश्वतखोरी जैसे आरोपों से घिरा हो, या फिर उसका कैरेक्टर भ्रष्ट दिखे तो यह बातें भी इसी श्रेणी में आती हैं. हाई कोर्ट जज अगर किसी ऐसी बीमारी का शिकार हो जाएं, जिसमें उनकी फैसले लेने की क्षमता पर असर हो, या फिर वे कानून की उतनी समझ न रखते हों तो भी ये प्रस्ताव लाया जा सकता है. 

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impeachment motion demand amid justice shekhar kumar yadav controversial statement at VHP event

क्या है पूरी प्रोसेस 

महाभियोग का प्रस्ताव संसद के किसी एक सदन में पेश किया जाता है. 

इसपर लोकसभा में कम से कम 100 या राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों का सपोर्ट मिलना चाहिए. 

प्रस्ताव पेश होने के बाद, तीन सदस्यीय समिति बनती है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट के एक जज भी होंगे. 

अगर समिति आरोपों को सही पाए तो प्रस्ताव संसद के दोनों सदनों में पेश होता है. 

प्रस्ताव का दो-तिहाई बहुमत से पारित होना जरूरी है. 

इसके बाद राष्ट्रपति संबंधित जज को पद से हटाने का आदेश दे सकते हैं. 

क्या निजी मौकों पर बोलने को लेकर अलग से कुछ दिशानिर्देश है

ऐसी कोई आचारसंहिता नहीं है. इस बारे में अक्सर बात भी होती है. लेकिन हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में सबसे ऊंचे पदों पर बैठे जजों को उनके हरेक शब्द का मतलब पता होता है, ये माना जाता है. ऐसे में उनसे बिना गाइडलाइन के ही उम्मीद की जाती है कि वे सार्वजनिक जीवन में, भले ही वो किसी निजी मौके पर जमा भीड़ के बीच हों, सोच-समझकर बोलें. इसके साथ ही अदालत में चल रहे मामलों पर भी जज बाहर कोई टिप्पणी नहीं कर सकते. या फिर वे ऐसा कोई बयान नहीं दे सकते, जिससे अदालत का कोई फैसला प्रभावित हो. संवेदनशील मामलों पर भी उनका कुछ बोलना प्रतिबंधित है, जब तक कि बात अदालत के भीतर न हो रही हो. 

जस्टिस यादव मामले में सुप्रीम कोर्ट क्या कर सकता है

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में सूत्रों के हवाले से बताया गया कि एससी ने इसपर ब्योरा मांगा है. वो इस जानकारी को समझने के लिए अपने कुछ जजों की कमेटी तैयार कर सकता है. और इसके बाद रिपोर्ट संसद को भेज दी जाएगी. एससी खुद इसपर कोई सीधा एक्शन नहीं ले सकता. 

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impeachment motion demand amid justice shekhar kumar yadav controversial statement at VHP event photo Reuters

साबित होने पर क्या एक्शन

अगर महाभियोग पास हो जाए तो राष्ट्रपति संबंधित जज को पद से हटाने का आदेश जारी करेंगे. यह एक संवैधानिक कार्रवाई है. इसके बाद जज सरकारी सेवाएं नहीं ले सकते. अगर महाभियोग में कोई आपराधिक मामला भी शामिल है तो सामान्य ढंग से जांच चलती है. 

तो क्या जजों के पास बोलने की आजादी सीमित

संविधान जजों को भी खुद को अभिव्यक्त करने की उतनी ही आजादी देता है, जितना आम लोगों को, लेकिन पद की जिम्मेदारियां उनपर कुछ बंदिशें लगाती हैं. अनुच्छेद 19(1) के तहत फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन है, वहीं अनुच्छेद 19(2) इसपर सही प्रतिबंध लगाने की भी बात करता है. इसका मतलब है कि एक बार जब कोई मामला कोर्ट तक पहुंच जाए तो उसपर सार्वजनिक कमेंट या ऐसा कोई काम नहीं किया जा सकता, जिससे मामले पर असर पड़े. 

कब-कब आया महाभियोग प्रस्ताव

- नब्बे की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट के जज वी रामास्वामी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों पर महाभियोग लाया गया था लेकिन यह लोकसभा में पास नहीं हो सका. 

- कोलकाता हाई कोर्ट के जज सौमित्र सेन के खिलाफ पैसों को लेकर ये प्रस्ताव आया लेकिन उन्होंने पहले ही इस्तीफा दे दिया.
 
- साल 2018 में विपक्षी दलों ने दुर्व्यवहार का आरोप लगाते हुए तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर महाभियोग प्रस्ताव लाना चाहा लेकिन तत्कालीन राज्यसभा सभापति ने उसे खारिज कर दिया. 

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