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चीन की कथनी और करनी में कितना अंतर है, इसका अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि पहले तो खुद बातचीत की पेशकश करता है और फिर खुद ही इसे खारिज भी कर देता है.
ब्रिक्स समिट से इतर गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मुलाकात हुई थी. इसके बाद चीन के विदेश मंत्रालय ने दावा किया कि ये बातचीत भारत के अनुरोध पर हुई थी. लेकिन भारत ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा कि चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग और पीएम मोदी के बीच द्वीपक्षीय बैठक का अनुरोध चीन की ओर से आया था.
लेकिन, चीन की कथनी-करनी में अंतर सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है. ये सीमा पर भी साफ नजर आता है. गुरुवार को ही चीन के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा था कि पीएम मोदी से मुलाकात में राष्ट्रपति जिनपिंग ने सीमा पर क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखने पर जोर दिया था.
लेकिन कुछ ऐसी तस्वीरें सामने आईं हैं, जो चीन की करतूतों को उजागर करती हैं. इन तस्वीरों में दिख रहा है कि पश्चिमी सीमा पर चीन किस तरह से इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ा रहा है.
सैटेलाइट तस्वीरों में दिख रहा है कि चीन कितनी तेजी से अक्साई चिन में मिलिट्री इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ा रहा है. अमेरिकी स्थित कंपनी मैक्सार टेक्नोलॉजी से मिली तस्वीरों में 250 हेक्टेयर इलाके में सर्विलांस रडार, सड़कें और अंडर-कंस्ट्रक्शन इन्फ्रास्ट्रक्चर दिख रहा है. ये सबकुछ एलएसी से सिर्फ 65 किलोमीटर दूर बन रहा है. इतना ही नहीं, ये सारा इन्फ्रास्ट्रक्चर हाल के महीनों में बना है. ये वो वक्त था, जब दोनों देश सीमा विवाद सुलझाने के लिए बातचीत की टेबल पर साथ आए थे.
सैटेलाइट तस्वीरों को देखकर ऐसा लगता है कि जैसे इस साल बर्फ पिघलने के बाद चीन ने यहां इन्फ्रास्ट्रक्चर बनाना शुरू किया है. 18 अगस्त को ली गई तस्वीर में चीन की सेना के YLC-4 और YLC-8 को देखा जा सकता है. ये दोनों लंबी दूरी के सर्विलांस रडार हैं.
इस जगह पर कई ऐसे प्रतिष्ठान भी हैं, जो अंडरग्राउंड बने हुए हैं. चीन की सेना के लिए ये रणनीतिक लिहाज से काफी अहम हैं. अगर भविष्य में तनाव बढ़ता है तो चीन इसका इस्तेमाल कर सकता है. लिहाजा, स्थायी सैन्य परिसरों का विकास एलएसी पर शांति की संभावनाओं के बारे में चिंता पैदा करता है.
तस्वीरों में दिखता है कि अक्साई चिन में चीन ने सड़कें, स्टोरेज फैसेलिटीज, रेसिडेंशियल यूनिट और एडमिनिस्ट्रेटिव बिल्डिंग्स बना लीं हैं. पिछले हफ्ते की तस्वीरों में मशीनरी और बड़े-बड़े ट्रक भी नजर आ रहे हैं, जो दिखाता है कि यहां कंस्ट्रक्शन का काम अभी जारी है. ये सबकुछ समुद्र से पांच हजार मीटर की ऊंचाई पर हो रहा है.
ये सब दिखाता है कि चीन एलएसी के पास अपनी तैयारियां मजबूत कर रहा है. मई 2020 में भारत और चीन की सेना के बीच गतिरोध हुआ था. इसके बाद चीन ने तैयारियां और तेज कर दीं, ताकि यहां के दुर्गम वातावरण और भयानक ठंड में भी उसके सैनिकों को ज्यादा परेशानियां न हों. ऐसी संभावना है कि चीन आसपास स्थायी सैन्य परिसर बना सकता है.
सैटेलाइट तस्वीरें ये भी दिखाती हैं कि चीन यहां कनेक्टिविटी के लिए सड़कें बना रहा है. पिछले तीन-चार महीनों में ये गतिविधियां और तेज हो गईं हैं. ये तस्वीरें एलएसी पर स्थायी शांति की संभावनाओं पर शक खड़ा करती हैं.
इन सब तस्वीरों से साफ होता है कि गतिरोध वाली जगहों से सैनिकों की संभावित वापसी के बावजूद, यहां चीन के सैनिक अपनी मौजूदगी बनाए रखेंगे. ऐसी भी संभावना है कि सैनिकों की संख्या मई 2020 की तुलना में और ज्यादा होगी.