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एक वक्त पर फिलिस्तीन का पक्का हिमायती था भारत, फिर कब दिखने लगा पॉलिसी शिफ्ट?

कांग्रेस से वायनाड की सांसद प्रियंका गांधी संसद में फिलिस्तीन के सपोर्ट वाला बैग लेकर पहुंची. बैग पर कबूतर और तरबूज भी बना था, जिसे फिलिस्तीनी एकता का प्रतीक माना जाता है. इसके बाद से उनकी आलोचना हो रही है. एक वक्त पर भारत प्रो-फिलिस्तीन था, फिर इजरायल-फिलिस्तीन संघर्ष के दौरान क्या बदला?

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फिलिस्तीन और इजरायल पर हमारी डिप्लोमेसी में कई पड़ाव आए. (Photo- Getty Images)
फिलिस्तीन और इजरायल पर हमारी डिप्लोमेसी में कई पड़ाव आए. (Photo- Getty Images)

ऐतिहासिक रूप से भारत का झुकाव फिलिस्तीन की तरफ ज्यादा रहा. वो पहला नॉन-अरब देश था, जिसने फिलिस्तीन की आजादी के लिए लड़ने वाले गुट फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन को जनता के वैध प्रतिनिधि के तौर पर मान्यता दी. हम लंबे समय से गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक के पक्ष में बोलते रहे. यहां तक कि इजरायल को मान्यता देने के बाद भी हमारे उससे कूटनीतिक रिश्ते उतने खुले हुए नहीं थे, जितने फिलिस्तीन के साथ थे. लेकिन पिछले साल अक्टूबर में हमास और इजरायल की जंग से लेकर अब तक हमारी कूटनीति में कई पड़ाव आए. 

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अभी क्यों हो रहा जिक्र

हाल में कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी फिलिस्तीन लिखा हुआ बैग लेकर लोकसभा पहुंची. इसके बाद से बीजेपी उनपर हमलावर है. विरोध करने वालों का कहना है कि बांग्लादेश में बसे हिंदुओं पर हिंसा पर उनकी वैसी संवेदना नहीं, जैसी दूर-दराज के फिलिस्तीन से है. इससे पहले शपथग्रहण के मौके पर ओवैसी भी फिलिस्तीन का नारा लगाने पर घिरे थे. तो क्या भारत कूटनीतिक तौर पर फिलिस्तीन से दूरी बना रहा है, या प्रो-इजरायली नीति के चलते ऐसा लग रहा है? 

फिलिस्तीन के करीब दिखता रहा

इजरायल और हमास की जंग शुरू होने के बाद से भारत के कूटनीतिक रिश्तों में कई उतार-चढ़ाव आए. वो फिलिस्तीन को हमेशा से समर्थन देता रहा, लेकिन साथ ही इजरायल से उसके रिश्ते गहरा रहे हैं. इसके बीच वो संतुलन बना रहा है. फिलिस्तीन से रिश्तों की शुरुआत तब हुई, जब महात्मा गांधी ने फिलिस्तीन से सटकर यहूदी देश बनने का विरोध किया था. जब यूनाइटेड नेशन्स में फिलिस्तीन के बंटवारे की बात हुई, तब भी भारत ने अरब देशों के साथ मिलकर इसके खिलाफ वोट किया. यहां तक कि हमने यूनाइटेड नेशन्स में इजरायल के आने के खिलाफ भी बात की थी. 

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india diplomatic stance on israel palestine conflict photo Pexels

इजरायल के साथ संबंध सीमित क्यों थे

देश गुटनिरपेक्ष आंदोलन चला रहा था, जो किसी भी एक पाले में जाने से बचता है. तेल अवीव को चूंकि अमेरिकी सपोर्ट मिला हुआ था, इसलिए देश उससे कुछ दूरी ही रखता रहा. अरब देशों के साथ हमारे व्यापारिक रिश्ते मजबूत रहे. ऐसे में हम फिलिस्तीन का समर्थन करके अरबों की गुड बुक में भी रह रहे थे. 

लेकिन ये तो हुआ इतिहास. मौजूदा समय में कई चीजें बदल चुकीं. 

कब दिखने लगा पॉलिसी शिफ्ट

साल 1992 में देश ने इजरायल के साथ कंप्लीट डिप्लोमेटिक रिश्ते बनाए. लेकिन इसके साथ ही देश फिलिस्तीन के मुद्दे पर सपोर्ट भी कर रहा था. ये एक तरह का संतुलन बनाए रखने की कोशिश थी, ताकि अरब देशों से भी संबंध न बिगड़ें, और इजरायल के साथ भी मजबूती बनी रहे. देश की राजनयिक नीतियां नेशनल इंट्रेस्ट से प्रेरित होती हैं, जिसमें अरब और इजरायल दोनों ही शामिल हैं. इसे डिप्लोमेसी की भाषा में बहुपक्षीय कूटनीति भी मान सकते हैं. 

फिलहाल हमारे इजरायल के साथ मजबूत राजनयिक और व्यापारिक संबंध हैं. दोनों देश लगातार आतंकवाद-रोधी और सैन्य अभ्यास भी करते हैं. वहीं, फिलिस्तीन को भारत सरकार लगातार मानवीय सहायता दे रही है. इसके अलावा फिलिस्तीनी शरणार्थियों के लिए भी देश ने यूनाइटेड नेशन्स रिलीफ एंड वर्क्स एजेंसी को भारी-भरकम फंडिंग की. 

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india diplomatic stance on israel palestine conflict photo AP

यूनाइटेड नेशन्स में देश ने अपना रुख हमेशा साफ रखा. उसने साल 2017 में अमेरिका और इजरायल के उस प्रस्ताव के खिलाफ वोट किया, जिसमें यरुशलम को इजरायल की राजधानी बनाने की बात थी. हालांकि, वो फिलिस्तीन के नाम पर हो रहे आतंकी हमलों के भी खिलाफ बोलता रहा. 

टू-स्टेट सॉल्यूशन, जिसके नाम पर फिलिस्तीन और इजरायल में ठनी रही, उस मुद्दे पर देश हमेशा यूएन के साथ रहा, यानी फिलिस्तीन को अलग देश के तौर पर देखता रहा. पीएम नरेंद्र मोदी ने साल 2018 में फिलिस्तीनी दौरे के दौरान ये बात कही थी कि देश इस मामले में दोनों का सम्मान और सुरक्षा चाहता है. वो उम्मीद करता है कि दोनों दो देशों के तौर पर शांति से रहें. 

क्या फिलिस्तीन के लिए सपोर्ट दिखाना मुसीबत ला सकता है

हाल में कई मामले हुए, जिसमें दावा किया गया कि फिलिस्तीन के पक्ष में नारेबाजी या उसका झंडा दिखाने पर कार्रवाई हुई. हालांकि ऐसा नहीं है. देश में किसी भी दूसरे देश का समर्थन करने पर कोई सजा नहीं है, जब तक कि बात पब्लिक सिक्योरिटी या राष्ट्रीय हित पर न आ जाए. कुछ कुछ मामलों में इसे गलत या आपराधिक माना जा सकता है. मसलन, कोई ऐसे देश के लिए सपोर्ट दिखाए जिससे भारत का तनाव या संघर्ष चल रहा हो. अगर फिलिस्तीन का समर्थन करते हुए कोई शख्स कुछ ऐसा करे जो देश के लिए नफरत उकसाता हो तो भी ये अपराध है. आतंकी संगठनों या चरमपंथी गुटों के लिए एकजुटता दिखाना भी इसी श्रेणी में आता है. 

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