इटली के पुलिया में 15 जून तक G7 समिट चलेगा, जिसमें हिस्सा लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी पहुंचे हुए हैं. वैसे भारत जी7 देशों का हिस्सा नहीं, लेकिन उसके शिखर सम्मेलन में वो ज्यादातर समय बुलाया जाता रहा. ये अपने-आप में उपलब्धि है. लेकिन कई कारण हैं, जिनके चलते हम दुनिया के सबसे अमीर इन सात देशों के क्लब से आधिकारिक तौर पर अब भी बाहर हैं.
साल 2023 में जापान के हिरोशिया में जी7 मीट हुई थी, जिसमें भारत इनवाइटेड था. इससे पहले 2019 में फ्रांस ने भी हमें बुलाया, और अमेरिका भी आमंत्रित कर चुका. ऐसा ज्यादातर मौकों पर हो रहा है कि बेहद अहम कहलाने वाली जी7 बैठक में मेजबान देश भारत को भी गेस्ट की तरह बुलाते हैं. ये बात अलग है कि हमारा देश अब भी जी7 के गुट में नहीं आ सका.
क्या है जी7
G7 या ग्रुप ऑफ सेवन दुनिया के कुछ सबसे समृद्ध लोकतांत्रिक देशों का समूह है, जिसमें अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली और जापान शामिल हैं. इन देशों का पहला जमावड़ा सत्तर के दशक में हुआ था, जब दो लड़ाइयों के बाद दुनिया महंगाई और डर से जूझ रही थी. पहली बैठक में कई बातों को लेकर सातों देश समान ग्राउंड पर आए, जिसका फायदा भी दिखा. इसके बाद से जी7 समिट होने लगी. तब इसमें रूस भी शामिल था, लेकिन 2014 में विस्तारवादी नीतियों के हवाले से उसे इससे बाहर कर दिया गया.
मेजबान देश को ये हक होता है कि वो ग्रुप के सदस्यों के अलावा कुछ और देशों को भी बुला सके. इटली ने भारत के साथ यूक्रेन, ब्राजील, अर्जेंटिना, तुर्की, यूएई, केन्या, अल्जीरिया और ट्यूनिशिया को भी गेस्ट की तरह बुलाया है. उनके अलावा वर्ल्ड बैंक, आईएमएफ और यूएन के चीफ भी आमंत्रित हैं.
सदस्य न होने पर भारत को क्यों बार-बार बुलावा
जी7 भले ही दुनिया की सबसे उन्नत इकनॉमीज का गुट माना जाता रहा लेकिन ये पुराने समय की बात है. फिलहाल हमारी जीडीपी ढाई ट्रिलियन डॉलर से भी ज्यादा के साथ तीन जी7 देशों- कनाडा, फ्रांस और इटली की संयुक्त जीडीपी से ज्यादा है. वेस्ट में जहां इकनॉमिक ग्रोथ की संभावना ठहर चुकी, वहीं भारत में ये लगातार ऊपर जा रहा है. यही वजह है कि जी7 देश इसे अपने से जोड़े रखना चाहते हैं.
भारत को मिलते लगातार आमंत्रणों को देखते हुए अमेरिकी थिंक टैंक हडसन इंस्टीट्यूट ने कहा था बीते कुछ सालों में ये देश जी7 का स्थाई गेस्ट बन चुका है. फिलहाल यूनाइटेड नेशन्स सिक्योरिटी काउंसिल जैसे शक्तिशाली संगठन की भी ताकत उतनी नहीं रही. ऐसे में जी7 से काफी उम्मीद की जा रही है, लेकिन भारत जैसे देश को बाहर रखकर ये संभव नहीं. यही वजह है कि यूएनएससी की तरह ही बार-बार इस गुट में भी भारत की सदस्यता की चर्चा छिड़ रही है. हालांकि फिलहाल ये मुमकिन नहीं दिखता, जिसकी वजह काफी हद तक भारत की अपनी नीतियां हैं.
क्यों भारत से गुट से बाहर
- कोल्ड वॉर के दौरान भारत गुटनिरपेक्ष आंदोलन का सदस्य था, जो सुपर पावर्स की आपसी लड़ाई से दूर रहने की बात करता था. ये कारण अब भी है. इस गुट से जुड़ने का मतलब होगा, रूस या दूसरे ऐसे देशों से विचारधारा की दूरी आ जाना. भारत ये नहीं चाहता.
- इंडो-पैसिफिक इलाके में हमारे संबंध, जी7 सदस्य देशों से काफी अलग हैं. ऐसे में एक संगठन का हिस्सा बनना, पुराने और अच्छे रिश्तों में दरार डाल सकता है.
- हम ह्यूमन डेवलवमेंट इंडेक्ट के मामले में ग्रुप ऑफ सेवन से पीछे हैं. यह वो इंडेक्स है जो जीवन काल, पढ़ाई और इनकम जैसे कारकों को देखता है. ये फर्क भी एक कारण है कि जी7 देशों के गुट से भारत बाहर रहा.
- हमारे यहां प्रति व्यक्ति आय भी सात देशों के क्लब से कहीं कम है. इकनॉमिक बूम के बाद भी कहीं न कहीं आय की ये असमानता आड़े आ जाती है.