क्या अब हमारे देश का एक ही नाम होने वाला है. अब तक इसके दो नाम थे- 'इंडिया' और 'भारत'. लेकिन अब चर्चा है कि 'इंडिया' को हटा दिया जाएगा. इसके बाद देश का नाम सिर्फ 'भारत' ही रहेगा.
हालांकि, ये ऐसे ही नहीं हो जाएगा. इसके लिए संविधान संशोधन करना होगा. संविधान में ही देश का नाम 'इंडिया' और 'भारत' रखा गया है. संविधान के अनुच्छेद-1 में इसका जिक्र है. अनुच्छेद-1 कहता है, 'इंडिया दैट इज भारत, जो राज्यों का संघ होगा.'
अब अगर केंद्र सरकार देश का नाम सिर्फ 'भारत' करना चाहती है तो उसे संविधान संशोधन के लिए बिल लाना होगा.
ये संशोधन होगा कैसे?
अनुच्छेद-368 संविधान में संशोधन करने की अनुमति देता है. कुछ संशोधन साधारण बहुमत यानी 50% बहुमत के आधार पर हो सकते हैं. तो कुछ संशोधन के लिए 66% बहुमत यानी कम से कम दो-तिहाई सदस्यों के समर्थन की जरूरत पड़ती है.
ये फॉर्मूला अनुच्छेद-1 में संशोधन करने पर भी लागू होगा. यानी, अनुच्छेद-1 में संशोधन करने के लिए केंद्र सरकार को कम से कम दो-तिहाई बहुमत की जरूरत होगी.
लोकसभा में इस समय 539 सांसद हैं. लिहाजा अनुच्छेद-1 में संशोधन के बिल को पास करने के लिए 356 सांसदों का समर्थन चाहिए होगा. इसी तरह राज्यसभा में 238 सांसद हैं तो वहां बिल पास कराने के लिए 157 सदस्यों के समर्थन की जरूरत होगी.
क्या इससे हो जाएगा काम?
इससे संविधान में तो संशोधन हो जाएगा. लेकिन इतने भर से काम नहीं होगा. लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी अचारी ने न्यूज एजेंसी से कहा कि जहां-जहां इंडिया का इस्तेमाल होता है, वहां-वहां जाना होगा.
उन्होंने कहा, देश के लिए सिर्फ एक ही नाम रख सकते हैं. एक देश के दो नाम नहीं हो सकते, क्योंकि इससे न सिर्फ देश में बल्कि बाहर भी भ्रम की स्थिति बनी रहेगी.
उन्होंने बताया, संयुक्त राष्ट्र में 'रिपब्लिक ऑफ इंडिया' है और कल को अगर इसे 'रिपब्लिक ऑफ भारत' करना होगा तो वहां मैसेज भेजना होगा और बताना होगा कि हमारा नाम बदल गया है.
आगे क्या होगा?
सिर्फ संयुक्त राष्ट्र ही नहीं, बल्कि बाकी वो सारे अंतरराष्ट्रीय संगठन जहां देश का नाम 'इंडिया' के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, वहां केंद्र सरकार को लेटर भेजना होगा.
सरकार की ओर से लेटर मिलने के बाद ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम 'भारत' होगा. कुल मिलाकर, तब जाकर ही 'भारत' को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिलेगी.
इंडिया और भारत... कैसे पड़े दो नाम?
भारत के कई सारे नाम रहे हैं. मुगलों के काल में इसे 'हिंदुस्तान' कहा जाता था. अंग्रेज इसे 'इंडिया' बुलाते थे. अंग्रेजों के शासन में इसका नाम 'ब्रिटिश इंडिया' था.
आजादी के बाद संविधान सभा में देश के नाम को लेकर तीखी बहस हुई थी. ये बहस 18 सितंबर 1949 को हुई. बहस की शुरुआत संविधान सभा के सदस्य एचवी कामथ ने की. उन्होंने अनुच्छेद-1 में संशोधन का प्रस्ताव दिया.
अनुच्छेद-1 कहता है- 'इंडिया दैट इज भारत'. उन्होंने प्रस्ताव रखा कि देश का एक ही नाम होना चाहिए. उन्होंने 'हिंदुस्तान, हिंद, भारतभूमि और भारतवर्ष' जैसे नाम सुझाए.
कामथ के अलावा सेठ गोविंद दास ने भी इसका विरोध किया. उन्होंने कहा था, 'इंडिया यानी भारत' किसी देश के नाम के लिए सुंदर शब्द नहीं है. इसकी बजाय हमें 'भारत को विदेशों में इंडिया नाम से भी जाना जाता है' लिखना चाहिए. उन्होंने पुराणों से लेकर महाभारत तक का जिक्र किया. साथ ही चीनी यात्री ह्वेन सांग के लेखों का हवाला देते हुए कहा कि देश का मूल नाम 'भारत' ही है.
बीएम गुप्ता, श्रीराम सहाय, कमलापति त्रिपाठी और हरगोविंद पंत जैसे सदस्यों ने भी देश का नाम सिर्फ भारत ही रखे जाने का समर्थन किया था. उस दिन देश के नाम को लेकर कमलापति त्रिपाठी और डॉ. बीआर अंबेडकर के बीच तीखी बहस भी हुई थी. त्रिपाठी ने कहा था, 'देश हजारों सालों तक गुलामी में था. अब इस आजाद देश को अपना नाम फिर से हासिल होगा.' तभी अंबेडकर ने उन्हें टोकते हुए कहा, 'क्या ये सब जरूरी है?'
हालांकि, ये सारी बहस का कुछ खास नतीजा नहीं निकला. और जब संशोधन के लिए वोटिंग हुई तो इसके पक्ष में 38 और विरोध में 51 वोट पड़े. प्रस्ताव गिर गया और अनुच्छेद-1 ही बरकरार रहा. और इस तरह से 'इंडिया दैट इज भारत' बना रहा.