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हिंदुस्तान में अल्पसंख्यकों का दर्जा मिला हुआ है यहूदियों को, सीख चुके मराठी और तेलुगु भाषा

आम सोच है कि यहूदी आबादी सिर्फ इजरायल में बसी हुई है, या फिर पश्चिमी देशों में. लेकिन भारत में भी यहूदी कम्युनिटी रहती है. बंगाल से लेकर केरल तक फैला ये समुदाय 1940 के दशक में अच्छी-खासी संख्या में था, लेकिन धीरे-धीरे ये घटकर काफी कम रह गए. यहां तक कि इन्हें हिंदुस्तान की सबसे छोटी माइनोरिटी में गिना जाता है.

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भारत में भी यहूदी बसे हुए हैं. सांकेतिक फोटो (Unsplash)
भारत में भी यहूदी बसे हुए हैं. सांकेतिक फोटो (Unsplash)

आज से करीब 3 हजार साल पहले यहूदियों ने केरल के मालाबार तट से भारत में एंट्री ली. उस दौर का यहूदी राजा सोलोमन, जिसे सुलेमान भी कहा जाता था, हिंदुस्तान के साथ व्यापार में खासी दिलचस्पी रखता. यहूदियों को भारत से मसाले और रेशम चाहिए था. बदले में वे सोना देने को तैयार थे. धीरे-धीरे ये रिश्ता मजबूत होता लगा. यहां तक कि बाद में जब दुनिया के सारे यहूदी एक जगह इकट्ठा होने लगे, तब भी हिंदुस्तान में काफी सारे लोग बचे रह गए. उनका धर्म और रीति-रिवाज भले अलग थे, लेकिन वे इसे अपना देश मानने लगे. 

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साल 1940 के दौरान भारत में इनकी संख्या करीब 50 हजार थी. देश में तब आजादी के लिए संघर्ष चल रहा था. इसी दौर में ज्यादातर यहूदी अमेरिका, कनाडा, यूनाइटेड किंगडम और इजरायल की तरफ जाने लगे. 

फिलहाल कौन से यहूदी बाकी हैं

बेने इजराइल- इसका मतलब है इजराइल के बच्चे. ये करीब 22 सौ साल पहले जुडिया से भारत आए शरणार्थी हैं. तब वहां रोमन शासक आ गए थे, और मूल निवासियों को परेशान किया हुआ था. भारत पहुंचे रिफ्यूजी महाराष्ट्र में जाकर बस गए. अब भी इस समुदाय के करीब साढ़े 3 हजार लोग मुंबई समेत महाराष्ट्र के कई इलाकों में रहते हैं. ये भारत में इनकी सबसे बड़ी आबादी है. 

indian jews of israel amid israel hamas gaza conflict photo Pixabay

कोचीन के यहूदी

ये टुकड़ा भारत कैसे और कब आया, इसपर इतिहासकार अलग-अलग बातें करते हैं. ज्यादातर का मानना है कि ये लोग व्यापार के लिए मालाबार तट से आए थे, और यहीं बस गए. धीरे-धीरे इन्होंने हिब्रू भाषा के साथ लोकल भाषा भी सीख ली और मलयालम भी तेजी से बोलने लगे. अब यहां लगभग 100 यहूदी ही होंगे, जबकि बाकी लोग इजरायल पलायन कर चुके. 

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एक समूह बगदादी यहूदियों का 

ये भी व्यापार के इरादे से हिंदुस्तान आए, लेकिन अपने यहां चलती उथल-पुथल की वजह से यहीं ठहर गए. ज्यादातर लोग 18वीं सदी में मुंबई में बसे. इन्होंने तेजी से लोकल भाषाएं सीखीं और व्यापार में आगे निकल गए. हालांकि ये दूसरी कम्युनिटी से मेलजोल कम ही रखते हैं. 

indian jews of israel amid israel hamas gaza conflict photo Pixabay

हिंदुस्तानी यहूदी कौन हैं 

चौथा ग्रुप हिंदुस्तानी यहूदियों का है, जिन्हें बेने एफ्रेम और बेने मेनाश कहा जाता है. बेने मेनाश को नॉर्थ-ईस्ट इंडियन यहूदी भी कहते हैं. ये मिजोरम और मणिपुर में बसे हुए हैं. वहीं बेने एफ्रेम आंध्रप्रदेश के रहने वाले हैं. ये लोग खुद को तेलुगु ज्यू भी मानते हैं. इनका यकीन है कि इनके पुरखे काफी पहले भारत आए, और यहीं बस गए. हालांकि इजरायल से इनका सीधा कनेक्शन लगभग नहीं के बराबर है. 

क्या कश्मीर में भी बसे थे ये लोग

यहूदियों की भारत में बसाहट पर कई विवादित बातें भी कही जाती हैं. मसलन, ईसा पूर्व लगभग 3 हजार साल पहले यहूदियों की बड़ी आबादी कश्मीर में आकर रहने लगी. तब कश्मीर में हिंदू धर्म हुआ करता था. उन्होंने यही धर्म अपना लिया और स्थानीय लोगों में घुल-मिल गए. बाद में उनका लगातार धर्म परिवर्तन होता गया गया. ये बात अलग-अलग इतिहासकार कहते हैं, लेकिन इसका कोई प्रमाण कहीं नहीं. 

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indian jews of israel amid israel hamas gaza conflict photo Unsplash

कुछ साल पहले माइनोरिटी में हुए शामिल

भारत के बाकी समुदायों से बहुत कम मेलजोल रखने वाली ये कम्युनिटी इतनी छोटी है कि सेंसस में कई बार ये शामिल भी नहीं हो पाते. साल 2016  में महाराष्ट्र सरकार ने इन्हें माइनोरिटी का दर्ज दिया, जबकि दो साल बाद गुजरात सरकार ने अपने यहां करीब 168 यहूदियों को माइनोरिटी माना. 

देश में कितने प्रार्थनास्थल

हर धर्म की तरह यहूदियों का भी प्रार्थनास्थल होता है, जिसे सिनेगॉग कहते हैं. कुछ दशकों पहले तक देश के कई शहरों में ये दिखता था, लेकिन आबादी कम होने के साथ ही सिनेगॉग भी घट गए. फिलहाल मुंबई में गेट ऑफ मर्सी, पुणे में ऑहेल डेविड, कोच्चि का कवुमभगम और अहमदाबाद में मेगन अब्राहम सिनेगॉग है. दिल्ली में इनका एक ही प्रार्थना स्थल बाकी है, जिसका नाम है-जूदाह ह्याम सिनेगॉग. साथ में एक लाइब्रेरी और यहूदियों का कब्रिस्तान भी मौजूद है. 

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