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क्यों असम में कुछ मुस्लिमों को स्वदेशी माना गया, जबकि कुछ बाहर छूट गए, कौन हैं मियां मुसलमान, जिन्हें लेकर विवाद?

असम में पांच मुस्लिम वर्गों की पहचान करके उन्हें स्वदेशी या देसी मुसलमानों का दर्जा दिया गया. ये सभी असमिया भाषा बोलने वाले हैं. वहीं बंगाली बोलने वाले मुस्लिम भी हैं, जो मियां मुसलमान कहलाते हैं. कथित तौर पर इनमें बड़ी आबादी बांग्लादेशी है. जल्द ही मूल मुसलमानों के लिए आर्थिक-सामाजिक सर्वे होने जा रहा है.

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असम में मूल मुस्लिम निवासियों पर चर्चा हो रही है. (Photo- Pixabay)
असम में मूल मुस्लिम निवासियों पर चर्चा हो रही है. (Photo- Pixabay)

असम कैबिनेट ने हाल ही में राज्य की स्वदेशी मुस्लिम आबादी के सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण को मंजूरी दी है. स्टेट ने साल 2022 में पांच समुदायों को 'स्वदेशी असमिया मुसलमानों' के रूप में मान्यता दी थी. इसी महीने के आखिर में इनपर सर्वे शुरू होने जा रहा है. ये वे लोग हैं, जो असम की भाषा बोलते हैं. दूसरी तरफ एक और समुदाय भी है, जो बांग्लाभाषी है, लेकिन इन्हें देसी मुसलमानों की तरह नहीं देखा जा रहा. 

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क्या वाकई बांग्लादेश से आए थे लोग

असम में मुस्लिम आबादी काफी है. इसे लेकर राज्य में अक्सर विवाद भी होता रहा. अलग-अलग समय पर सरकारें आरोप लगाती रहीं कि बॉर्डर होने के कारण असम में पड़ोसी देशों से मुस्लिम आ रहे हैं. वैसे उनके भागकर भारत में घुसपैठ करने की शुरुआत साठ के दशक से ही हो चुकी थी, जब पाकिस्तान से टूटकर बांग्लादेश बना भी नहीं था. पूर्वी पाकिस्तान के इन लोगों का आरोप था कि सरकार उनसे भेदभाव कर रही है. हर तरह से त्रस्त लोग भागकर भारत आने लगे. शुरुआत में इनसे कोई कड़ाई नहीं हुई. माना जा रहा था कि बांग्लादेश बनने के बाद वे वापस लौट जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बल्कि घुसपैठ अब तक जारी है. 

पांच उप-समूहों में बांटा गया

डेढ़ साल पहले हिमंत बिस्वा सरकार ने एक फिल्टर लगाने की बात की ताकि भारतीय मुस्लिमों को बाहरी से अलग किया जा सके. इसमें एक वर्ग वो था, जो असम की भाषा बोलने और उसी तरह का कल्चर फॉलो करने वाला था. माना गया कि ये स्वदेशी या देसी बिरादरी है. इनमें गोरिया, मोरिया, जोलाह, देसी और सैयद समुदाय हैं. 

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indigenous muslims assam amid miyan muslim controversy photo Getty Images

इस दौरान हुआ होगा धर्म परिवर्तन

ये सभी लोग भौगोलिक स्थिति के आधार पर पहचाने जा रहे हैं. जैसे मोरिया, जोलाह और गोरिया चाय बागानों के करीब बसी आबादी है. वहीं सैयद और देसी नीचे की तरफ बसे हुए हैं लेकिन ये कई पीढ़ियों से असमिया ही बोलते आए हैं. मौजूदा सरकार का मानना है कि ये लोग असम के मूल निवासियों में से हैं, और बांग्लादेश से इनका कोई संबंध नहीं. माना जाता है कि ये समुदाय 13वीं से 17वीं शताब्दी के मध्य इस्लाम में परिवर्तित हुए थे, और इनकी संस्कृति हिंदुओं से मिलती-जुलती है.

ब्रिटिश काल में असम के पहले प्राइम मिनिस्टर सैयद मुहम्मद सादुल्ला उन्हें छोटा नागपुर से लेकर आए थे. ट्री गार्डन में काम करने वाले जोलाह हो गए, जबकि सूफी संतों को मानने वाले सैयद कहलाने लगे. 

ये समुदाय लगातार विवादों में

फिलहाल जिस मियां समुदाय पर विवाद है, वो अच्छा-खासा वोट बैंक हैं. ये निचले असम या ब्रह्मपुत्र तट पर बसा हुआ है. यही वो वर्ग है जो निशाने पर है. राज्य की कुल आबादी में केवल 40 प्रतिशत ही पहले से यहां रहते मुस्लिम वर्ग का है, जबकि 60 प्रतिशत कथित तौर पर मियां मुस्लिमों का है, जो बाद में यहां आए. ये बंगाली बोलते हैं, और राजनैतिक तौर पर काफी मुखर रहे. हालांकि दोनों वर्गों के बीच संघर्ष के हालात बन रहे हैं. असमिया बोलने वाला वर्ग मानता है कि वे मूल निवासी होने के बाद पिछड़े रह गए, जबकि मियां मुस्लिम भी खुद को पीढ़ियों से यहीं रहता बताते हैं. 

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indigenous muslims assam amid miyan muslim controversy photo Pixabay

सरकार ने कैसे की पहचान 
पांच सब-कैटेगरी बनाने के लिए राज्य सरकार ने कई सब-कमेटी बनाईं. इनकी जांच और सिफारिश के आधार पर समुदाय को देसी और बाहरी माना गया.

आगे कैसे होगा सर्वे

सर्वेक्षण की कमान अल्पसंख्यक आयोग के पास होगी. ये घर-घर जाकर कुछ निश्चित चीजें देखेगा. इसमें दस्तावेज से लेकर बोली और पहनावा भी देखा जा सकता है. पीढ़ियों का रिकॉर्ड भी देखा जाएगा. लेकिन बाकी मुस्लिमों के बारे में कुछ तय नहीं. हलचल का एक कारण ये भी है कि देसी या बाहरी दोनों ही समुदायों में आपसी शादी-ब्याह भी हो रहे हैं. बहुत से मामले ऐसे भी होंगे, जिनमें देसी होने का कोई रिकॉर्ड नहीं होगा, सिवाय बोली के. 

सत्ता पक्ष का क्या है कहना

सरकार हालांकि इसपर भरोसा दिला रही है कि ये सर्वे सिर्फ इंडीजिनस मुस्लिमों को ज्यादा सुविधाएं देने के लिए किया जा रहा है, जो कि काफी पिछड़े हुए हैं. इस सारी उलझन के बीच राज्य के दक्षिणी हिस्से बराक घाटी में बसे मुस्लिमों ने गुवाहाटी कोर्ट में सरकारी सर्वे को चुनौती भी दे दी. यहां पंगल समुदाय के लोग बसे हुए हैं, जो मणिपुर से आए थे. वे खुद को उस सब-कैटेगरी में रखने की मांग कर रहे हैं, जिसे इंडीजिनस या स्वदेशी माना जा रहा है.

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