G20 की तैयारियों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आसियान (ASEAN) समिट के लिए इंडोनेशिया पहुंचे. वहां उन्होंने एक बार फिर वसुधैव कुटुंबकम की बात पर जोर दिया. पिछले साल पीएम ने इंडोनेशियाई दौरे के समय एक खास मंदिर के दर्शन किए थे. बाली स्थिति उलूवातु मंदिर काफी प्राचीन है और कहा जाता है कि मुस्लिम-बहुल देश इंडोनेशिया में हिंदू धर्म को बचाए रखने में इसका बड़ा रोल रहा.
इंडोनेशिया में हिंदू आबादी कितनी
ये दुनिया का तीसरा सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी वाला देश है. इसके बाद भी यहां हिंदू धर्म के मानने वाले बने हुए हैं, बल्कि बढ़े ही हैं. साल 2018 की जनगणना के मुताबिक देश में साढ़े 46 लाख से ज्यादा हिंदू रहते हैं, जबकि 2010 में ये करीब 40 लाख ही थे.
कितने हिंदू मंदिर हैं
इंडोनेशिया की हिंदू आबादी पर दक्षिण का असर दिखता है. खासकर यहां के मंदिर उसी तर्ज पर बने हुए हैं. माना जाता है कि छोटे-बडे़ सब मिलाकर हजार से लेकर डेढ़ हजार तक टेंपल्स यहां बने हुए हैं. इनमें बाली और सुमात्रा में सबसे ज्यादा मंदिर हैं. बाली में लगभग हर बड़ी हिंदू कॉलोनी में एक छोटा मंदिर है, जिसे संगाह कहते हैं.
क्या इंडोनेशिया पहले भारत का हिस्सा था
अक्सर ये बात होती है कि हमारे साथ एक समुद्री सीमा साझा करने वाले इस देश तक हिंदू पहुंचे कैसे, जबकि यहां मुस्लिम आबादी ज्यादा है. इसके पीछे इतिहासकार अलग-अलग बातें कहते हैं. सबसे पक्की दलील ये दी जाती है कि इंडोनेशिया पर एक समय में हिंदू राजा का ही शासन था. चोल साम्राज्य के राजाओं ने न केवल इंडोनेशिया, बल्कि श्रीलंका, मलेशिया और मालदीव पर भी शासन किया. चोल राजवंश के सबसे ताकतवर शासक राजराज ने सबसे लंबे समय तक यहां राज किया.
फिर ये देश मुस्लिम-बहुल कैसे बन गया
इसकी शुरुआत 8वीं सदी से हुई. अरब मुस्लिम व्यापारी मसाले खरीदने के लिए इंडोनेशिया आने लगे थे. धीरे-धीरे निचले तबके के लोग धर्म बदलने लगे, लेकिन 13वीं सदी तक ये सब खुलकर दिखाई नहीं दिया था. इसी दौरान हिंदू एलीट क्लास भी मजहब बदलने लगा. 13वीं सदी में चीनी सैलानी मार्को पोलो ने जब इस देश की यात्रा की तो लौटकर लिखा कि देश में कई शहर के शहर मुसलमान धर्म अपना रहे हैं. इसके बाद ही बड़े स्तर पर बदलाव दिखा.
इस तरह से हो रहा था बदलाव
कुल मिलाकर मुस्लिम व्यापारियों ने इंडोनेशिया की डेमोग्राफी बदलने में अहम भूमिका निभाई. 14वीं सदी तक जावा ही नहीं, आसपास के कई द्वीप देशों की बड़ी आबादी मुस्लिम धर्म अपना चुकी थी. 18वीं सदी में द्वीप का वैभव देखकर डच लोग भी आए. वे यहां पर ईसाई धर्म का प्रचार करने में जुट गए. लेकिन इसका असर उल्टा ही हुआ. मुस्लिम अपने धर्म को लेकर और कट्टर होने लगे.
पहले किसी देवी-देवता को नहीं मानते थे यहां के लोग
बेहद खूबसूरत इस देश के बारे में एक दिलचस्प बात ये है कि एक समय पर यहां कोई भी धर्म नहीं माना जाता था. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि इंडोनेशियाई लोग नास्तिक थे. वे एनिमिज्म यानी जीववाद को मानते थे. इसमें वे सभी पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों यानी तक कि बिजली-पानी तक की पूजा किया करते थे. ये बहुत कुछ हिंदू धर्म के रीति-रिवाजों से मिलता-जुलता था. यही वजह है कि हिंदुओं की बढ़त से यहां कोई खास टकराव जैसी स्थिति नहीं बनी.
कैसा है उलूवातु मंदिर
ये टेंपल तब बना था, जब देश में तेजी से मुस्लिम धर्म फैल रहा था. ऐसे में हिंदू आबादी ने अपने प्रतीकों और मान्यताओं को बचाने के लिए कई मंदिर खड़े किए. उलूवातु इसमें मुख्य माना जाता है. 11वीं सदी में वहां के हिंदू संन्यासी एंपू कतुरन ने इसका निर्माण करवाया था. ये संत पूरे बाली में खास रुतबा रखते. उनके आदेश पर मंदिर में कई देवी-देवताओं की प्रतिमा रखी गई. यहां तक कि यहां पर सरस्वती देवी की भी पूजा होती थी. ये चलन अब भी बना हुआ है.
क्यों है इसकी इतनी मान्यता
कहते हैं कि जब इंडोनेशिया में हिंदुओं पर इस्लाम धर्म अपनाने का दबाव बना तो कई हिंदुओं ने उलूवातु मंदिर में शरण ली और बाली में हिंदू धर्म को बनाए रखा. प्राचीनकाल की सुंदरता और वास्तुकला इस मंदिर के हर कोने पर दिखाई देती है. यहां पर हर दिन रामलीला पर आधारित एक नृत्य होता है. द्वीप के दक्षिणी हिस्से में बने इस मंदिर की लोकेशन इसे और भव्य बना देती है. किनारों से हर समय समंदर टकराता रहता है. अपने इतिहास और भव्यता के चलते ये मंदिर बाली के सबसे ज्यादा विजिट किए जाने वाले स्पॉट्स में से है.
राम-सीता की छाप हर जगह
हिंदू धर्म में भी सबसे ज्यादा माने जाने वाले देवता यहां श्रीराम हैं. राम-सीमा का असर यहां हर जगह दिखेगा. देश के कई इलाकों में रामायण के अवशेष और पत्थरों तक की नक्काशी पर रामकथा के चित्र आसानी से मिल जाते हैं. यहां तक कि इसके योग्यकार्ता शहर में रामायण बैले होता है. ये एक तरह की नृत्य नाटिका है, जो रामायण पर आधारित है.
इसमें हालांकि हिंदुस्तान में प्रचिलित रामायण से पात्रों के नाम कुछ बदल जाते हैं, लेकिन राम-सीता का असर वही रहता है. साल 1971 में रामायण बैले की शुरुआत हुई जो अब तक चली आ रही है. यहां तक कि गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने इसे दुनिया में सबसे लंबे समय तक चलने वाली नृत्य नाटिका के तौर पर शामिल किया.