दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में युद्ध चल रहा है. एक आंकड़े के अनुसार, दो देशों के बीच हो रहे युद्ध पहले औसतन 15 महीने ही खिंचते थे. अब ये वक्त लंबा हो रहा है. सत्तर के दशक से अब तक हुई लड़ाइयों पर नजर रखने वाली संस्था उपेसला कन्फ्लिक्ट डेटा प्रोग्राम (UCDP) का मानना है कि 25 लड़ाइयां सालभर के भीतर, जबकि 26 प्रतिशत महीनेभर में रुक जाती हैं, वहीं बाकी 49 प्रतिशत युद्ध काफी लंबे चलते हैं, या ऊपरी तौर पर थमे हुए लगें तो भी भीतर-भीतर चलते रहते हैं.
किन देशों में चल रहे युद्ध और गृहयुद्ध
- फिलहाल सबसे लंबा युद्ध रूस और यूक्रेन का माना जा रहा है, जो फरवरी 2022 से अब तक जारी है.
- अजरबैजान और आर्मेनिया में सितंबर 2020 को युद्ध शुरू हुआ. बाद में सीजफायर हुआ तो लेकिन बॉर्डर पर छुटपुट लड़ाइयां अब भी जारी.
- इजरायल और आतंकी गुट हमास का युद्ध पिछले अक्टूबर शुरू हुआ. माना जा रहा था कि इजरायली आक्रामकता के आगे ये जल्दी रुक जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
- यमन में हूती विद्रोहियों के खिलाफ युद्ध लंबे समय जारी. इसमें अमेरिका और ब्रिटेन भी मौजूदा सरकार का साथ दे रहे हैं ताकि मिलिटेंट्स को खत्म किया जा सके.
- सूडान, म्यांमार, इथियोपिया, सहेल (माली, नाइजर और बुर्किना फासो) समेत हैती में अंदरुनी जंग चल रही है.
क्या कहते हैं आंकड़े
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस एंड एसेसमेंट ने साल 1816 से 1985 के बीच चली लड़ाइयों की स्टडी की, और पाया कि अधिकतर जंग 15 महीनों के भीतर खत्म हो गई. लेकिन अब के डेटा बता रहे हैं आधी से कुछ कम लड़ाइयां अनिश्चित काल तक खिंच सकती हैं. और ये खत्म भी हो जाएं तो लड़ रही दोनों पार्टियां सिविल वॉर में घिर जाती हैं.
UCDP के अनुसार, 26% इंटरस्टेट वॉर महीनेभर से भी कम समय तक टिकते हैं, जबकि 25% एक साल चलते हैं. वहीं शेष 49 प्रतिशत वो लड़ाइयां हैं जो डेढ़ साल से लेकर और लंबे समय तक खिंच जाती हैं. किसी को नहीं पता होता कि ये कब रुकेंगी. ट्रेंड ये दिखा कि सालभर से ज्यादा खिंचने पर लड़ाई रुक भी जाए तो भी एक दशक तक सीमा पर छुटपुट झड़पें होती रहती हैं.
क्यों लंबी होती जा रही लड़ाइयां
सेंटर फॉर स्ट्रेटजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज का अध्ययन बताता है कि इसके कई कारण हैं, जिसमें सबसे बड़ी वजह ये है कि लड़ाई दो देशों के बीच नहीं रहती, बल्कि इसमें विदेशी दखल बढ़ा-चढ़ा होता है. मिसाल के तौर पर रूस से लड़ रहे यूक्रेन को अमेरिका समेत कई बड़े देशों से लगातार आर्थिक और सैन्य मदद मिल रही है. वहीं हमास के बारे में कहा जा रहा है कि मध्यस्थता कर रहे मुस्लिम-बहुल देश पीछे से उसे सपोर्ट कर रहे हैं.
स्थानीय झगड़ों में इंटरनेशनल तड़का लग रहा है. जैसे सीरिया या अफ्रीकी देशों को देश लें तो वहां दो विदेशों ताकतें मदद के बहाने अपनी सेनाएं उतारती और खुद ही लड़ने-भिड़ने लग जाती हैं. ये देश केवल युद्ध का मैदान होते हैं, जहां असल में इंटरनेशनल लड़ाई चल रही होती है.
कैसे रुकते हैं ज्यादातर युद्ध
इनका कोई तयशुदा पैटर्न नहीं. काफी लंबे समय तक देखा गया कि एक देश की आर्मी सरेंडर कर देती है, जिसके बाद ही दूसरा देश रुकता है. अब इसकी जगह नेगोसिएशन ने ले ली है. चूंकि कोई भी देश अकेला नहीं, सबके हित एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं तो इंटरस्टेट जंग में काफी लोग मध्यस्थता की कोशिश करते हैं. कई बार ये कामयाब होती हैं.
युद्ध के बाद आम है गृहयुद्ध का होना
दो देशों का युद्ध भले ही रुक जाए, लेकिन उसके बाद आशंका रहती है कि दोनों पार्टियों या एक देश में कन्फ्लिक्ट ट्रैप के हालात बनेंगे. ये गृहयुद्ध है तो लड़ाई से उपजी महंगाई, गरीबी के चलते पैदा होता है. कई छोटे-बड़े गुट बन जाते हैं जो सत्ता पाने के लिए आपस में लड़ते-भिड़ते हैं. चुनी हुई सरकारें गिरती-बनती रहती हैं. अक्सर पहले से गरीबी से जूझते देशों में ये स्थिति ज्यादा बनती है. जैसे सूडान-साउथ सूडान में हुआ, या जैसा सीरिया में अब तक जारी है.