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मर्डर की धारा 101, मॉब लिंचिंग के लिए फांसी की सजा तक... IPC-CRPC में क्या-क्या बदलने जा रहा है?

आईपीसी, सीआरपीसी और इंडियन एविडेंस एक्ट में बदलावों को लेकर लाए गए बिल पर संसदीय समिति ने रिपोर्ट राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को सौंप दी है. अगर ये बिल कानून बनते हैं तो धाराएं और सजा में काफी बदलाव हो जाएगा.

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आईपीसी में कई सारी धाराएं बदलने वालीं हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर)
आईपीसी में कई सारी धाराएं बदलने वालीं हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर)

अंग्रेजों के दौर में बने तीन कानून बदलने जा रहे हैं. इन्हें बदलने के लिए लोकसभा में बिल पेश कर दिया गया है. बाद में इसे संसदीय समिति के पास रिव्यू के लिए भेजा गया था. समिति ने ये रिपोर्ट अब राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को सौंप दी है.
 
पर बदलने क्या जा रहा है? इंडियन पीनल कोड (आईपीसी), कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर (सीआरपीसी) और इंडियन एविडेंस एक्ट. 

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1860 में बनी आईपीसी को भारतीय न्याय संहिता, 1898 में बनी सीआरपीसी को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और 1872 के इंडियन एविडेंस एक्ट को भारतीय साक्ष्य संहिता के नाम से जाना जाएगा. इन तीनों के सिर्फ नाम ही नहीं बदलेंगे, बल्कि बहुत कुछ बदल जाएगा.

इनमें सबसे अहम बदलाव आईपीसी में होगा. आईपीसी की बहुत सी धाराएं बीएनएस में नहीं होंगी. और अब तक मर्डर के जो दफा 302 लगती थी, उसकी जगह अब धारा 101 लगा करेगी. मॉब लिंचिंग के लिए भी सजा होगी, जो आईपीसी में नहीं है. सामूहिक दुष्कर्म में भी फांसी की सजा का प्रावधान होगा.

क्या-कुछ बदल जाएगा?

- मर्डर के लिए दफा 302 नहीं, 101 होगी

आईपीसी में धारा 302 में मर्डर की सजा है. इसके तहत, दोषी पाए जाने पर आजीवन कारावास और मौत की सजा का प्रावधान है. साथ ही जुर्माना भी लगाया जाता है. 

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जबकि, बीएनएस में धारा 302 में 'स्नेचिंग' का प्रावधान है. प्रस्ताविस बीएनएस में मर्डर के लिए धारा 101 में सजा का प्रावधान है. इसमें दो सब-सेक्शन हैं. धारा 101(1) कहती है, अगर कोई व्यक्ति हत्या का दोषी पाया जाता है तो उसे आजीवन कारावास से लेकर मौत की सजा तक हो सकती है. साथ ही उसपर जुर्माना भी लगाया जाएगा.

वहीं, धारा 101(2) में मॉब लिंचिंग के लिए सजा का प्रावधान है. इसके तहत, पांच या उससे ज्यादा लोग जाति, नस्ल या भाषा के आधार पर हत्या करते हैं, तो सात साल से लेकर फांसी की सजा तक का प्रावधान है.

इसके अलावा, हत्या की कोशिश के मामले में आईपीसी की धारा 307 के तहत सजा का प्रावधान है. बीएनएस में इसके लिए धारा 107 होगी.

- रेप के मामलों में क्या बदलेगा?

आईपीसी में धारा 375 है. इसमें रेप को परिभाषित किया गया है. साथ ही वो 7 परिस्थितियां भी बताई गईं हैं, जब सेक्सुअल इंटरकोर्स को रेप माना जाता है. वहीं, धारा 376 में रेप के लिए सजा का प्रावधान है. 

प्रस्तावित बीएनएस में धारा 63 और 64 है. धारा 64 में इन अपराधों के लिए सजा बताई गई है. और कोई बदलाव नहीं किया गया है. 

रेप के मामलों में दोषी पाए जाने पर कम से कम 10 साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान है. इसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है.

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18 साल से कम उम्र की नाबालिग से गैंगरेप के मामले में अभी दोषी व्यक्ति को 20 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है. प्रस्तावित बीएनएस की धारा 70(2) के तहत, नाबालिग से दुष्कर्म के दोषी को मौत की सजा का प्रावधान है.

16 साल से कम उम्र की लड़की से दुष्कर्म के लिए सजा बढ़ाकर 20 साल कर दी गई है. नाबालिग से दुष्कर्म में मौत की सजा का भी प्रावधान है. 12 साल से कम उम्र की नाबालिग से दुष्कर्म पर कम से कम 20 साल जेल की सजा या मौत की सजा होगी.

- धारा 377 खत्म!

आईपीसी में धारा 377 थी. इसमें किसी पुरुष, महिला या जानवर से अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने पर 10 साल से लेकर उम्रकैद की सजा का प्रावधान है. 

सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 के एक हिस्से को अपराध की श्रेणी से हटा दिया था. इससे सहमति से बने समलैंगिक संबंध अपराध के दायरे से बाहर हो गए थे. प्रस्तावित बीएनएस में धारा 377 को पूरी तरह से हटा दिया गया है.

हालांकि, संसदीय समिति ने समलैंगिकता में असहमति से बने यौन संबंध को अपराध बनाने का सुझाव दिया है. 

- राजद्रोह की धारा 124A खत्म!

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आईपीसी में धारा 124A में राजद्रोह का जिक्र है. इसके मुताबिक, अगर कोई व्यक्ति बोलकर या लिखकर या इशारों से या फिर चिह्नों के जरिए या किसी और तरीके से घृणा या अवमानना या उत्तेजित करने की कोशिश करता है या असंतोष को भड़काने का प्रयास करता है तो वो राजद्रोह का आरोपी है.

ये एक गैर-जमानती अपराध है और इसमें दोषी पाए जाने पर तीन साल की कैद से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है. साथ ही जुर्माना भी लगाया जा सकता है. 

प्रस्तावित बीएनएस में धारा 124A नहीं है. बल्कि, धारा 150 में 'राजद्रोह' से जुड़ा प्रावधान किया गया है. धारा 150 में इसे 'भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्य' के रूप में शामिल किया गया है.

बीएनएस में ऐसा करने पर दोषी पाए जाने पर 7 साल की सजा से लेकर आजीवन कारावास तक का प्रावधान है. साथ ही जुर्माना भी लगाया जाएगा.

और क्या-क्या नया होगा?

- आत्महत्या की कोशिश अपराध नहींः आईपीसी की धारा 309 के तहत, आत्महत्या की कोशिश करना अपराध था. बीएनएस में ऐसा प्रावधान नहीं है. हालांकि, इसमें धारा 224 है, जो कहती है कि जो कोई किसी लोकसेवक को काम करने के लिए मजबूर करने या रोकने के मकसद से आत्महत्या की कोशिश करता है, तो उसे एक साल तक की सजा और जुर्माना लगाया जा सकता है.

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- आतंकवाद की परिभाषाः बीएनएस के बिल में आतंकवाद की परिभाषा तय की गई है. आईपीसी में ये नहीं थी. इसके मुताबिक, जो कोई भारत की एकता, अखंडता, और सुरक्षा को खतरे में डालने, आम जनता या उसके एक वर्ग को डराने या सार्वजनिक व्यवस्था को बिगाड़ने के इरादे से भारत या किसी अन्य देश में कोई कृत्य करता है तो उसे आतंकवादी कृत्य माना जाएगा. बीएनएस में धारा 111 में इसके लिए सजा का प्रावधान है. इसके तहत, उम्रकैद तक की सजा हो सकती है.

- कथित लव जिहाद पर सजाः बीएनएस के बिल में धोखाधड़ी या झूठ बोलकर किसी महिला से शादी करने या फिर शादी का झांसा देकर यौन संबंध बनाने पर भी सजा का प्रावधान किया गया है. ऐसे मामलों में दोषी पाए जाने पर 10 साल तक की जेल और जुर्माने की सजा का प्रावधान होगा.

- भगोड़े अपराधियों पर ट्रायलः अब तक किसी भी अपराधी या आरोपी पर ट्रायल तभी शुरू होता था, जब वो अदालत में मौजूद हो. पर अब फरार घोषित अपराधी के बगैर भी मुकदमा चल सकेगा. फरार आरोपी पर आरोप तय होने के तीन महीने बाद ट्रायल शुरू हो जाएगा. इससे दाऊद इब्राहिम जैसे फरार अपराधियों के खिलाफ ट्रायल शुरू हो सकेगा. और उन्हें सजा सुनाई जा सकेगी.

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- कहीं भी जीरो एफआईआरः बीएनएस के बिल में एक प्रावधान जीरो एफआईआर से भी जुड़ा है. अब देश में कहीं भी जीरो एफआईआर दर्ज करवा सकेंगे. इसमें धाराएं भी जुड़ेंगी. अब तक जीरो एफआईआर में धाराएं नहीं जुड़ती थीं. 15 दिन के भीतर जीरो एफआईआर संबंधित थाने को भेजनी होगी.

जल्दी इंसाफ मिलने का दावा

सरकार का दावा है कि इन नए बिलों के कानून बनने के बाद लोगों को जल्दी इंसाफ मिल सकेगा. इसके लिए बिल में कई प्रावधान किए गए हैं.

प्रावधानों के तहत, छोटे-छोटे मामलों और तीन साल से कम सजा के अपराधों के मामलों में समरी ट्रायल किया जाएगा. इससे सेशन कोर्ट में 40% से ज्यादा मामले खत्म होने की उम्मीद है.

पुलिस को 90 दिन में चार्जशीट दाखिल करनी होगी. परिस्थिति के आधार पर अदालत 90 दिन का समय और दे सकती है. 180 दिन यानी छह महीने में जांच पूरी कर ट्रायल शुरू करना होगा.

अदालत को 60 दिन के भीतर आरोपी पर आरोप तय करने होंगे. सुनवाई पूरी होने के बाद 30 दिन के अंदर फैसला सुनाना होगा. अदालत के फैसले या आदेश की कॉपी सात दिन के अंदर ऑनलाइन अपलोड करनी होगी.

किसमें क्या बदलेगा?

- आईपीसीः कौन सा कृत्य अपराध है और उसके लिए क्या सजा होगी? ये आईपीसी से तय होता है. इसका नाम बदलकर भारतीय न्याय संहिता रखने का प्रस्ताव है. आईपीसी में 511 धाराएं हैं. अब 356 बचेंगी. 175 धाराएं बदलेंगी. 8 नई जोड़ी जाएंगी. 

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- सीआरपीसीः गिरफ्तारी, जांच और मुकदमा चलाने की प्रक्रिया सीआरपीसी में लिखी हुई है. सीआरपीसी में 533 धाराएं हैं. 160 धाराओं को बदला जाएगा. 9 नई जुड़ेंगी और 9 धाराएं खत्म होंगी. 

- इंडियन एविडेंस एक्टः केस के तथ्यों को कैसे साबित किया जाएगा, बयान कैसे दर्ज होंगे, ये सब इंडियन एविडेंस एक्ट में है. इसका नाम भारतीय साक्ष्य बिल रखा जाएगा. पहले 167 धाराएं थीं, अब 170 होंगी. 23 धाराओं को बदला जाएगा. एक नई धारा जुड़ेगी.

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