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कभी पश्चिमी मुल्कों से भी ज्यादा 'बोल्ड' था ईरान, पढ़ें- कैसे एक क्रांति से बन गया कट्टर इस्लामिक मुल्क

इजरायल पर ईरान के हमले के बाद मध्य पूर्व में तनाव गहरा गया है. ईरान ने इजरायल के साथ-साथ अमेरिका को भी चेतावनी दी है. ईरान आज कट्टर इस्लामिक मुल्क है, लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब वहां पश्चिमी मुल्कों से भी ज्यादा खुलापन था. आइए पढ़ते हैं बोल्ड ईरान के कट्टर बनने की कहानी...

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ईरान में अयातुल्ला खामेनेई सुप्रीम लीडर हैं. (फाइल फोटो)
ईरान में अयातुल्ला खामेनेई सुप्रीम लीडर हैं. (फाइल फोटो)

लगभग साढ़े 16 लाख वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैले ईरान की वजह से मध्य पूर्व में तनाव बढ़ गया है. ईरान ने रविवार रात इजरायल पर तीन सौ से ज्यादा मिसाइलों और ड्रोन से हमला कर दिया. हालांकि, इजरायल ने ईरान की 99 फीसदी मिसाइलें और ड्रोन को मार गिराने का दावा किया है.

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ईरान ने ये हमला 1 अप्रैल को सीरिया की राजधानी दमिश्क में ईरानी कॉन्सुलेट पर हुए हवाई हमले के जवाब में किया. 14 अप्रैल को इजरायल पर हमले के बाद ईरान ने कहा कि उसका मकसद पूरा हो गया है और अब आगे और हमले करने की जरूरत नहीं है.

हालांकि, तनाव अब बढ़ता जा रहा है. संयुक्त राष्ट्र में ईरानी राजदूत ने कहा कि अगर इजरायल की तरफ से एक और गलती हुई, तो ईरान की प्रतिक्रिया काफी गंभीर होगी.

ईरान ने सिर्फ इजरायल ही नहीं, बल्कि अमेरिका को भी धमकी दी है. ईरान ने कहा कि ये लड़ाई उसकी और इजरायल की है, और इस सबसे अमेरिका को दूर रहना चाहिए. 

हालांकि, आज ईरान जैसा है, कुछ दशकों पहले तक वो ऐसा नहीं था. ईरान की इजरायल से भी अच्छी दोस्ती थी. और अमेरिका से भी. इतना ही नहीं, एक समय ऐसा था जब ईरान अमेरिका और यूरोपीय देशों की तरह खुले विचारों वाला था. लेकिन आज वो एक कट्टर इस्लामिक मुल्क है, जहां हिजाब न पहनने पर भी सजा दे दी जाती है. 

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ईरान ने 14 अप्रैल की रात को इजरायल पर हमला किया था. (फोटो-AP)

कभी ऐसा हुआ करता था ईरान

70 के दशक में ईरान इतना बोल्ड हुआ करता था, जितना आज पश्चिमी देश हैं. यहां पश्चिमी सभ्यता का बोलबाला था. लोगों के पहनावे और खानपान पर कोई रोकटोक नहीं था. 

ईरान की इस बोल्डनेस की वजह यहां के शासक रेजा शाह पहलवी थे. 1936 में पहलवी वंश के रेजा शाह ने हिजाब और बुर्का पर बैन लगा दिया था. महिलाओं की आजादी के लिहाज से ये बहुत क्रांतिकारी कदम था.

उनके बाद उनके बेटे रेजा पहलवी ईरान के शासक बने. लेकिन 1949 में नया संविधान लागू हो गया. 1952 में मोहम्मद मोसद्दिक प्रधानमंत्री बने, लेकिन 1953 में ही उनका तख्तापलट हो गया. इसके बाद रेजा पहलवी ही देश के सर्वेसर्वा बन गए.

रेजा पहलवी के दौर में भी हिजाब और बुर्के पर बैन तो था ही, लेकिन फिर पुरुषों ने महिलाओं का घर से निकलना बंद कर दिया. उन्होंने इस नियम में थोड़ी छूट जरूर दी, लेकिन वो पश्चिमी सभ्यता के पक्षधर थे.

लेकिन इन सबका नतीजा ये हुआ कि रेजा पहलवी को जनता अमेरिका की 'कठपुतली' कहने लगी. उस समय उनके विरोधी थे- अयातुल्ला रुहोल्ला खामेनेई. 1964 में पहलवी ने खामेनेई को देश निकाला दे दिया.

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फिर हुई इस्लामी क्रांति...

साल 1963 में ईरान के शासक रेजा पहलवी ने श्वेत क्रांति का ऐलान किया. आर्थिक और सामाजिक सुधार के लिहाज से ये बड़ा ऐलान था. लेकिन ईरान को पश्चिमी मूल्यों की तरफ ले जा रहा था, इसलिए जनता ने इसका विरोध शुरू कर दिया.

1973 में अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें गिरने लगीं. इससे ईरान की अर्थव्यवस्था चरमराने लगी. 1978 का सितंबर आते-आते जनता का गुस्सा फूट पड़ा. पहलवी के खिलाफ बड़े पैमाने पर प्रदर्शन होने लगे थे. इनकी अगुवाई मौलवियों ने की. कहा जाता है कि इन मौलवियों को फ्रांस में बैठे अयातुल्ला रुहोल्ला खामेनेई से निर्देश मिल रहे थे.

कुछ ही महीनों में हालात बद से बदतर होने लगे. आखिरकार 16 जनवरी 1979 को रेजा पहलवी अपने परिवार के साथ अमेरिका चले गए. जाते-जाते उन्होंने विपक्षी नेता शापोर बख्तियार को अंतरिम प्रधानमंत्री बना दिया.

ईरान में रेजा पहलवी के खिलाफ लोग सड़कों पर उतर आए थे. (फाइल फोटो- Getty)

ईरान में खामेनेई की वापसी

शापोर बख्तियार ने खामेनेई को ईरान लौटने की इजाजत दे दी. लेकिन एक शर्त भी ऱकी. उन्होंने शर्त रखी कि खामेनेई वापस भी आ जाएंगे तो भी प्रधानमंत्री बख्तियार ही रहेंगे. फरवरी 1979 में खामेनेई ईरान वापस आ गए.

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बख्तियार के प्रधानमंत्री बनने के बाद भी प्रदर्शन थमने का नाम नहीं ले रहे थे. इस बीच खामेनेई ने मेहदी बाजारगान को अंतरिम प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया. अब देश में दो-दो प्रधानमंत्री हो गए थे. 

धीरे-धीरे सरकार कमजोर होती जा रही थी. सेना में भी फूट पड़ चुकी थी. लेकिन धीरे-धीरे सेना से लेकर जनता तक, हर कोई खामेनेई के आगे झुकने लगा.

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रातोरात बदला ईरान

1979 के मार्च में ईरान में जनमत संग्रह हुआ. इसमें 98 फीसदी से ज्यादा लोगों ने ईरान को इस्लामिक रिपब्लिक बनाने के पक्ष में वोट दिया. इसके बाद ईरान का नाम 'इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान' हो गया.

खामेनेई के हाथों में सत्ता आते ही नए संविधान पर काम शुरू हो गया. नया संविधान इस्लाम और शरिया पर आधारित था. विपक्ष ने इसका विरोध किया, लेकिन खामेनेई ने साफ कहा कि नई सरकार को '100% इस्लाम' पर आधारित कानून के तहत काम करना चाहिए. लाख विरोध के बावजूद 1979 के आखिर में नए संविधान को अपना लिया गया.

नए संविधान के बाद ईरान में शरिया कानून लागू हो गया. कई सारी पाबंदियां लगा दी गईं. महिलाओं की आजादी छीन ली गई. अब उन्हें हिजाब और बुर्का पहनना जरूरी था. 1995 में वहां ऐसा कानून बनाया गया, जिसके तहत अफसरों को 60 साल तक की औरतों को बिना हिजाब निकलने पर जेल में डालने का अधिकार है. इतना ही नहीं, ईरान में हिजाब न पहनने पर 74 कोड़े मारने से लेकर 16 साल की जेल तक की सजा हो सकती है.

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इसने ईरान को पूरी तरह से बदल दिया. 1980 के दशक से पहले ईरान में उतना ही खुलापन था, जितना पश्चिमी देशों में था. महिलाओं को अपनी पसंद के कपड़े पहनने की आजादी थी. वो पुरुषों के साथ घूम सकती थीं. लेकिन इस्लामिक क्रांति ने ईरान को पूरी तरह बदल दिया. इसने 'खुले' ईरान को 'बंद' कर दिया.

1979 में ईरान में अमेरिकी दूतावास की घेराबंदी कर ली गई थी. (फाइल फोटो-Getty Images)

अमेरिका में पड़ गया था कमजोर!

ईरान में जब इस्लामिक क्रांति चल रही थी, तब एक ऐसी घटना भी हुई, जिसने अमेरिका में कमजोर कर दिया. हुआ ये कि ईरान के शासक रेजा पहलवी अमेरिका चले गए थे. ईरान के लोग रेजा पहलवी की वापसी और उनको सजा देने की मांग पर अड़े थे. 

4 नवंबर 1979 को तेहरान में स्थित अमेरिकी दूतावास के बाहर इस्लामी छात्र जमा हो गए. उन्होंने अमेरिकी दूतावास की घेराबंदी कर ली. खौमेनी ने भी इस घेराबंदी का समर्थन किया. प्रदर्शन करने वाले अमेरिका से रेजा पहलवी को वापस भेजने की मांग कर रहे थे, लेकिन अमेरिका ने इसे ठुकरा दिया. 

दिन गुजरते जा रहे थे, लेकिन प्रदर्शनकारी दूतावास से हटने को राजी नहीं हो रहे थे. संयुक्त राष्ट्र ने भी पहल की, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. दूतावास में उस समय 52 अमेरिकी बंधक थे. 

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इस घेराबंदी के लगभग एक साल बाद रेजा पहलवी का मिस्र में निधन हो गया. उन्हें वहीं दफना दिया गया. लेकिन दूतावास की घेराबंदी जारी रही. अमेरिका ने अपनी पूरी ताकत आजमा ली. अमेरिका में ईरानी लोगों की संपत्तियां भी जब्त कर ली गईं, लेकिन कुछ काम नहीं आया. 

आखिरकार अमेरिका में चुनाव हुए और रोनाल्ड रीगन नए राष्ट्रपति बने. फिर अल्जीरिया में अमेरिका और ईरान में समझौता हुआ. तब जाकर बंधक रिहा हुए. प्रदर्शनकारियों ने अमेरिकी दूतावास के अधिकारियों को 444 दिन तक बंधक बना रखा था.

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