ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी की मौत हो गई है. उनका हेलिकॉप्टर रविवार को क्रैश हो गया था. इस दुर्घटना में ईरान के विदेश मंत्री होसैन अमीर अब्दुलहियान की भी मौत हो गई है.
रईसी 2021 में ईरान राष्ट्रपति बने थे. ईरान का वो राष्ट्रपति चुनाव काफी विवादों भरा रहा था, क्योंकि ज्यादातर उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने ही नहीं दिया गया था.
इब्राहिम रईसी की मौत के बाद दुनियाभर से मिली-जुली प्रतिक्रियाएं सामने आ रही हैं. ईरान में भी दो धड़े बंट गए हैं. एक धड़ा ऐसा है जो रईसी की मौत पर खुशी मना रहा है. दरअसल, रईसी कट्टरपंथी मौलवी थे, जिन्होंने अपने कार्यकाल में महिलाओं के लिए सख्त ड्रेस कोड और हिजाब को जरूरी कर दिया था. पिछले साल 22 साल की महसा अमीनी की मौत के बाद पूरे ईरान में जबरदस्त प्रदर्शन हुए थे.
राजनीति में आने से पहले रईसी एक वकील थे और बाद में जज भी बने. इसी दौरान वो उस कमेटी में भी शामिल हुए, जिसने हजारों राजनैतिक कैदियों को मौत की सजा दी. और यहीं से उनके विरोधी उन्हें 'तेहरान का कसाई' बुलाने लगे.
...वो डेथ कमेटी
जुलाई 1988 में ईरान के तब के सुप्रीम लीडर अयातुल्ला रुहोल्ला खामेनेई ने एक सीक्रेट ऑर्डर पास किया. इसे फतवा भी कहा जाता है. इसके जरिए एक चार सदस्यों की एक कमेटी बनी. इस कमेटी को बाद में 'डेथ कमेटी' भी कहा जाने लगा.
इस सीक्रेट आदेश में रुहोल्ला खामेनेई ने पीपुल्स मुजाहिदीन ऑफ ईरान (MeK) के समर्थकों को 'मोहरेब' यानी अल्लाह के खिलाफ युद्ध छेड़ने वाले और कम्युनिस्टों को 'मुर्तद' यानी इस्लाम को त्यागने का दोषी माना और उन्हें मौत की सजा देने का निर्देश दिया.
इस कमेटी में होसैन अली नय्येरी, इब्राहिम रईसी, मुस्तफा पोरमोहम्मदी और मुर्तजा इशराकी शामिल थे.
इस कमेटी ने कुछ ही मिनटों में ट्रायल करके बंदियों को मौत की सजा सुना दी गई. ये वो लोग थे, जिन्होंने इस्लामिक क्रांति का विरोध किया था.
'सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स इन ईरान' की 2017 की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि कथित डेथ कमेटी ने जिन लोगों को सजा सुनाई, उन्हें अपना बचाव करने या पक्ष रखने का मौका भी नहीं दिया गया. इन्हें वकील भी नहीं दिए गए. कमेटी के सामने सिर्फ उन्हीं वकीलों को पेश होने की इजाजत थी, जिन्हें कमेटी ने खुद चुना था.
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कितने लोग मारे गए थे?
इसे लेकर कोई आधिकारिक या ठोस आंकड़ा नहीं है. अलग-अलग अनुमानों के हिसाब से इस कमेटी ने ढाई हजार से लेकर 30 हजार लोगों तक को मौत की सजा दी थी.
ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट के मुताबिक, 1988 में ईरान में 2,800 से 5,000 राजनैतिक बंदियों को मौत की सजा सुनाई गई थी. वहीं, अमेरिका के इस्टीट्यूट ऑफ पीस (USIP) का अनुमान है कि इस दौरान ईरान के 32 शहरों में 4 से 5 हजार लोग मारे गए थे.
अमेरिकी लेखक डेन स्मिथ ने अपनी किताब 'द स्टेट ऑफ द मिडिल ईस्टः एन एटलस ऑफ कॉन्फ्लिक्ट एंड रिसॉल्यूशन' में 30 हजार मौतों का अनुमान लगाया है.
बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, परिवारों को तो ये भी नहीं पता चला कि उनके लोगों को मारने के बाद कब, कहां और कैसे दफनाया गया.
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जब रईसी ने इस सबको सही ठहराया
एमनेस्टी इंटरनेशनल के मुताबिक, ईरान की इस डेथ कमेटी ने हजारों बंदियों का ट्रायल मनमाने तरीके से किया और उन्हें मौत की सजा सुनाई.
2021 में जब इब्राहिम रईसी से 1988 के उस कथित नरसंहार को लेकर सवाल किया गया तो उन्होंने इसे सही ठहराया था. उन्होंने कहा था, 'अगर एक जज और एक वकील लोगों की सुरक्षा का ख्याल रखते हैं तो उनकी तारीफ की जानी चाहिए. मैं अब तक जिस भी पद पर रहा, वहां मानवाधिकारों की रक्षा की और मुझे इस पर गर्व है.'
सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स इन ईरान के एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर हादी गमी ने न्यूज एजेंसी रॉयटर्स से कहा, 'रईसी एक ऐसे सिस्टम का पिलर थे, जो सरकार की नीतियों का विरोध करने वालों को जेल में डाल देता है, उन्हें टॉर्चर करता है और फिर मार देता है.'
हालांकि, ईरान हमेशा इन आरोपों को खारिज करता रहा है. फरवरी 1989 में ईरान के तत्कालीन राष्ट्रपति अकबर हाशी रफसंजानी ने दावा किया था कि कमेटी ने हजार से भी कम लोगों को मौत की सजा दी है.