सोमवार को स्टॉकहोम में संसद के बाहर दो प्रदर्शनकारियों ने कुरान के पन्ने फाड़े और उन्हें जला दिया. हाल में ये चीजें लगातार हो रही हैं. यहां तक कि बहुत से देश स्वीडन के खुले विरोध में उतरकर उसके प्रोडक्ट का बायकॉट भी करने लगे. इसी बीच स्वीडिश प्रधानमंत्री उल्फ क्रिस्टर्सन ने पहली बार चुप्पी तोड़ी. उन्होंने कहा कि प्रोटेस्टर्स के ऐसा करने से स्वीडन आतंकियों के टारगेट पर आ सकता है.
स्वीडन पहले भी आतंकवादियों के निशाने पर रह चुका. ऐसे में सवाल ये है कि इतनी मुश्किलों के बाद भी ये देश प्रदर्शनकारियों को मना क्यों नहीं कर पा रहा!
क्या स्वीडन में धार्मिक ग्रंथ जलाना अपराध है?
नहीं. इस देश में ऐसा कोई पक्का कानून नहीं, जो धार्मिक ग्रंथों को जलाने या फाड़ने पर रोक लगाता हो. ज्यादातर पश्चिमी देशों में ऐसा ही है, जब तक कि इससे किसी और को शारीरिक नुकसान न होता हो. या फिर किसी प्रॉपर्टी को नुकसान न पहुंचे. उसका कहना है कि कोई अगर किसी बात पर नाराजगी जताना चाहे तो उसे रोका नहीं जाएगा, जब तक कि कोई नुकसान न हो रहा हो.
हमेशा से ही ऐसा नहीं था स्वीडन
19वीं सदी के आखिर-आखिर तक यहां ईशनिंदा अपराध थी. यहां तक कि इसपर मौत की सजा भी दी जाती थी. तब इस देश में ईसाई आबादी ज्यादा थी. इस मजहब से अलग कोई भी बात ब्लासफेमी के दायरे में आ जाती. आबादी में अलग-अलग धर्म के लोगों के बढ़ने के साथ ईशनिंदा पर सख्ती घटी. साल 1970 में इससे जुड़ा आखिरी कानून भी हटा लिया गया. इसके बाद से यहां हर वो अभिव्यक्ति की आजादी की श्रेणी में आती है, जिससे किसी इंसान, पशु या संपत्ति को नुकसान न पहुंचता हो.
क्या स्वीडिश अधिकारी चाहें तो धार्मिक ग्रंथों का जलाया जाना रोक सकते हैं?
कम से कम सरकार ने अपने पास ये अधिकार नहीं रखा. अगर कोई फ्रीडम ऑफ स्पीच की बात करते हुए झंडा फाड़ने या किताब जलाने की बात करे तो खुद स्वीडन की पुलिस उसे सुरक्षा देते हुए प्रोटेस्ट करने देती है. हालांकि स्टॉकहोम पुलिस के पास ये हक भी है कि वो ग्रंथ जलाने को रोक सके. इसी साल फरवरी में भी कुरान जलाने को लेकर कई रिक्वेस्ट आईं, लेकिन उन्हें इजाजत नहीं दी गई.
स्वीडन में हेट स्पीच के खिलाफ नियम हैं!
कई लोगों का कहना है कि कुरान या कोई भी मजहबी ग्रंथ जलाना हेट स्पीच के तहत रखा जाए ताकि लोग इससे बचें. वहीं एक दलील ये है कि प्रोटेस्टर किसी धर्म को टारगेट कर रहे हैं, न कि लोगों की आस्था को. लिहाजा ये हेट स्पीच नहीं, बल्कि किसी बात के लिए अपनी भावना जताने जैसा है. आमतौर पर कुरान जलाने वाले लोग मिडिल ईस्ट से आ रहे हैं, जो लंबे समय तक अपने ही यहां तकलीफ झेलते रहे. ऐसे में अगर वे किसी बात पर नाराज हैं तो उन्हें इसे जताने की आजादी मिलनी चाहिए.
दुनिया के दूसरे हिस्सों में क्या हैं ब्लासफेमी के मायने?
ईशनिंदा को बहुत से, खासकर मुस्लिम-बहुल देश अपराध मानते हैं. प्यू रिसर्च सेंटर ने एक सर्वे में पाया कि साल 2019 में 198 में से 79 देशों के यहां कोई न कोई नियम-कानून है, जिसमें ब्लासफेमी की बात है. 7 देशों- अफगानिस्तान, नाइजीरिया, पाकिस्तान, सऊदी अरब, ईरान, ब्रुनई, और मॉरिटेनिया (अफ्रीकी मुस्लिम-बहुल देश) में इसपर मौत की सजा मिलती है. इंडोनेशिया में एक महिला मस्जिद में पालतू कुत्ता लेकर पहुंच गई, इसे धर्म का अपमान मानते हुए उसे मौत की सजा दी गई.
क्या कहता है अलग-अलग देशों का कानून?
- अलग-अलग कल्चर से मिलकर बने देश अमेरिका में फ्रीडम ऑफ स्पीच के तहत कई बातें आती हैं, इसमें धार्मिक ग्रंथ को जलाना या फाड़ना अपराध नहीं.
- भारत में इसके लिए कोई सीधा लॉ नहीं. लेकिन IPC में ऐसी कई धाराएं हैं, जो दोषी को 1 से 3 सा तक के लिए जेल भेज सकती हैं.
- ऑस्ट्रेलिया ने नब्बे के दशक में ईशनिंदा को अपराध मानना बंद कर दिया, लेकिन वहां के कई राज्य अब भी ब्लासफेमी के लिए सजा देते हैं.
- कई देशों में ईशनिंदा की बजाए हेट स्पीच पर सजा की बात की गई. ये वे देश हैं, जो ज्यादातर मामलों में उदार हैं, लेकिन जहां की आबादी मिक्स्ड कल्चर वाली है.