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Israel-Hamas War: पहले रूस-यूक्रेन की जंग और अब इजरायल-हमास में युद्ध. डर है कि कहीं तेल की कीमत न बढ़ जाए. बढ़ने भी लगी हैं.
इसे ऐसे समझिए कि 6 अक्टूबर को तेल की कीमत प्रति बैरल 84.58 अमेरिकी डॉलर थी. 7 अक्टूबर को हमास ने इजरायल पर हमला किया और जंग शुरू हो गई. इसके बाद जब 9 अक्टूबर को पहला सोमवार आया, तब तेल की कीमत बढ़कर 88.15 डॉलर प्रति बैरल हो गई. आज की तारीख में ये कीमत बढ़कर 90 डॉलर प्रति बैरल के पार जा चुकी है.
इसका मतलब हुआ कि इजरायल और हमास में जंग शुरू होने के बाद से अब तक अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमत साढ़े सात फीसदी तक बढ़ चुकी है.
यही वजह है कि मध्य पूर्व में इस तरह की जंग दुनिया के लिए नया खतरा खड़ा कर देती है. ठीक 50 साल पहले 1973 में जब इजरायल और अरब देशों की जंग हुई थी, तब तेल का खतरनाक संकट खड़ा हो गया था. इसे दुनिया का पहला तेल संकट बताया जाता है. खैर उस संकट के बारे में आगे बात करेंगे. पहले समझते हैं कि क्या इजरायल और हमास की जंग नया तेल संकट खड़ा कर सकती है?
क्या नया संकट खड़ा होगा?
इजरायल और हमास की जंग शुरू होने के बाद से अब तक तेल की कीमत प्रति बैरल 6 डॉलर से ज्यादा बढ़ चुकी है.
तेल की कीमत फिलहाल तो बहुत ज्यादा बढ़ने की संभावना नहीं है. लेकिन दो फैक्टर ऐसे हैं जो तेल की कीमत में 'आग' लगा सकते हैं. पहला- ईरान और दूसरा- सऊदी अरब.
इजरायल का आरोप है कि ईरान, हमास का समर्थन कर रहा है. ईरान इससे इनकार कर रहा है. अगर हमले में सीधे तौर पर ईरान का नाम सामने आता है और अमेरिका उस पर कुछ प्रतिबंध लगाता है तो तेल की कीमत बढ़ सकती है.
दूसरा- इजरायल और सऊदी अरब के बीच रिश्ते सामान्य बनाने के लिए अमेरिका एक सौदा करवा रहा है. डील के तहत, इजरायल, सऊदी अरब को डिफेंस सेक्टर में मदद करेगा. और उसके बदले में सऊदी अरब तेल का उत्पादन बढ़ाएगा. डर है कि इजरायल और हमास की जंग के कारण इस डील में देरी न हो जाए. ऐसा होता है तो उससे भी तेल की कीमत पर असर पड़ेगा.
सऊदी अरब और रूस ने कुछ महीने पहले ही तेल उत्पादन में कटौती का ऐलान कर दिया था, जिससे सितंबर में तेल की कीमतें इस साल के सबसे उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थीं. 27 सितंबर को तेल कीमत करीब 95 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गई थी.
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क्या ईरान बढ़ाएगा मुश्किल?
वैसे तो ईरान में बहुत ज्यादा तेल का उत्पादन नहीं होता है, लेकिन फिर भी इसकी कीमतों को बढ़ाने-उतारने में इसका बड़ा हाथ है.
ईरान पर अमेरिका ने पहले से ही कई प्रतिबंध लगा रखे हैं. हालांकि, प्रतिबंध के बावजूद ईरान का कच्चे तेल का निर्यात बढ़ा ही है. ईरान की वजह से ही सऊदी अरब और रूस की ओर से लगाई गई कटौती की भरपाई हो सकी है.
ईरान पर इजरायल पर हमले करने में हमास का समर्थन करने का आरोप लग रहा है. हालांकि, ईरान इसे खारिज कर रहा है. माना जा रहा है कि इस हमले में हमास का साथ देने का ईरान का सीधा हाथ होने की बात सामने आती है, तो उस पर प्रतिबंध और ज्यादा कड़े प्रतिबंध लग सकते हैं.
अमेरिकी ट्रेजरी सचिव जेनेट येलेन का कहना है कि अगर ईरान के शामिल होने के सबूत सामने आते हैं तो भी अभी इस बात की घोषणा नहीं की जा सकती कि अमेरिका उस पर प्रतिबंध लगाएगा या नहीं. उन्होंने कहा कि हालातों पर नजर रखी जा रही है और प्रतिबंधों को कड़ा करने के लिए जानकारी जुटाई जा रही है.
अगर ईरान पर और कड़े प्रतिबंध लगते हैं तो इससे न सिर्फ दुनियाभर में कच्चे तेल की सप्लाई पर असर पड़ेगा, बल्कि इससे इसकी कीमत भी काफी बढ़ जाएगी.
हालांकि, जानकारों का मानना है कि ऐसा होने की संभावना कम ही है, क्योंकि अमेरिका में अगले साल राष्ट्रपति चुनाव हैं और उससे पहले तेल की कीमतों को बढ़ाने का जोखिम जो बाइडेन नहीं उठाएंगे.
फिर भी अगर अमेरिका, ईरान पर कड़े प्रतिबंध लगाता है तो इससे तेल की कीमतें प्रति बैरल 100 डॉलर या उससे ज्यादा पहुंच सकती है.
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1973 जैसा संकट तो नहीं खड़ा हो जाएगा?
छह अक्टूबर 1973 को मिस्र और सीरिया ने मिलकर इजरायल पर हमला कर दिया. इसे योम किप्पुर युद्ध के नाम से जाना जाता है. मिस्र और सीरिया को अरब देशों का समर्थन हासिल था. वहीं, इजरायल के साथ अमेरिका खड़ा था.
अमेरिका के तब के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने इजरायल को 18 हजार करोड़ रुपये की मदद का ऐलान कर दिया. इससे अरब देश नाराज हो गए. उन्होंने अमेरिका और पश्चिमी देशों को दिए जाने वाले तेल में भारी कटौती कर दी.
नतीजा ये हुआ कि इससे दुनियाभर में तेल की कीमतें बढ़ने लगीं. 1973 की ये जंग तो तीन हफ्ते में खत्म हो गई. लेकिन ये प्रतिबंध मार्च 1974 तक जारी रहा. तब तक तेल की कीमत पांच गुना से ज्यादा बढ़ चुकी थी. इसे अब तक का सबसे खतरनाक तेल संकट माना जाता है.
हालांकि, मौजूदा इजरायल और हमास जंग से 1973 जैसे हालात बनने की संभावना कम ही है, क्योंकि तब से अब तक दुनिया बहुत बदल चुकी है.
1973 जैसा क्यों नहीं हो सकता अब?
इसकी कई सारी वजहें हैं. पहली तो यही है कि 1973 में अरब देश खुलकर मिस्र और सीरिया के समर्थन में आ गए थे. लेकिन अभी तक ज्यादातर खाड़ी देशों ने खुद को इस जंग से दूर ही रखा है.
दूसरी वजह ये है कि उस समय तेल की मांग काफी ज्यादा थी. देशों के पास रिजर्व तेल भी उतना नहीं हुआ करता था. लेकिन आज के समय में हर देश के पास कई हफ्तों-महीनों तक का रिजर्व तेल है. 1973 के संकट के बाद ही अमेरिका में तेल रिजर्व रखने को लेकर कानून बना था.
तीसरा कारण ये है कि अमेरिका के पास कहीं ज्यादा रिजर्व तेल है. अगर तेल उत्पादन में कटौती होती भी है तो अमेरिका रिजर्व तेल को बाजार में बेच सकता है.
लेकिन इन सबके बावजूद ईरान एक बहुत बड़ा प्लेयर है. उसका एक फैसला तेल की कीमतों में आग लगा सकता है. पर जानकार मानते हैं कि ईरान पर प्रतिबंध कड़े करने से रूस को फायदा होगा और अमेरिका ऐसा नहीं चाहेगा. प्रतिबंध के बावजूद ईरान का तेल निर्यात बढ़ा है और अमेरिका ने इसे नजरअंदाज किया है तो उसकी वजह यही है कि इससे रूस को नुकसान होता है.