इजरायली खुफिया अधिकारी रोनेन बार ने सीधे कहा कि IDF हमास को खत्म करके ही मानेगा. हवाई हमलों के बाद इलाके पर जमीनी हमले भी हो रहे हैं. इजरायल का दावा है कि उसने आतंकियों की बहुत सी सुरंगों को तबाह कर दिया. बता दें कि हमास ने पूरे गाजा में सैकड़ों टनल बना रखे थे, जहां से वो आतंकी गतिविधियों की तैयारी कर रहा था. अब इनके खात्मे के बाद बहुत मुमकिन है कि हमास की जड़ें कमजोर हो जाएं. लेकिन इसके बाद भी इजरायल के रास्ते पर फूल बिछे नहीं मिलने वाले.
अभी क्या है स्थिति
- शुक्रवार को होस्टेज डील खत्म होने के बाद से करीब ढाई सौ फिलिस्तीनी मारे गए.
- अब तक कथित तौर पर 15 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं.
- फिलहाल दक्षिणी गाजा की तरफ बमबारी हो रही है, खासकर खान युनुस की तरफ.
- ये वही इलाका है, जहां जंग शुरू होने के बाद लगभग डेढ़ मिलियन लोग शरण लेने पहुंचे थे.
- कथित तौर पर ब्रिटेन गाजा के भीतर कोई खुफिया सर्च ऑपरेशन चला सकता है ताकि बंधकों का पता लगा सके. बंधकों में ब्रिटिश नागरिक भी हैं.
- लगभग सारे देश इजरायल पर दबाव बना रहे हैं कि वो जंग रोक दे ताकि उनके बंधक छुड़ाए जा सकें.
इन सबके बाद भी IDF पूरी ताकत से अटैक कर रहा है. हाल में इजरायली पीएम बेंजामिन नेतन्याहू ने अपनी बात दोहराई कि वे गाजा पट्टी में अपने लक्ष्य को पाने से पहले नहीं रुकेंगे, मतलब हमास का खात्मा. लेकिन ये बात उतनी आसान नहीं, जितनी सुनने में लग रही है.
हमास को खत्म करना क्यों मुश्किल है
गाजा पट्टी में काफी घनी बस्ती है और आतंकी आम लोगों के बीच ही बसे हुए हैं. ऐसे में हमला करना मुश्किल है. टैररिस्ट आम नागरिकों को ह्यूमन शील्ड बना सकते हैं, ये पैटर्न अभी भी दिख रहा है. इससे पहले भी कई बार ग्राउंड अटैक के दौरान इजरायल को काफी नुकसान झेलना पड़ा था क्योंकि तब भी आतंकी रिहायशी इलाकों में छिप गए थे.
मिलिटेंट फैले हैं बहुत से देशों में
ISIS की तरह इसके मिलिटेंट भी कई देशों में बिखरे हुए हैं. अगर इन्हें गाजा पट्टी से हटा भी दिया जाए, तो ये पड़ोसी मुल्कों जैसे लेबनान, ईरान, जॉर्डन और कतर जैसे देशों में फलते-फूलते रहेंगे. वहां की सरकारें या फिर चरमपंथी लोग इन्हें पैसों से मदद करते रहेंगे ताकि इजरायल निशाने पर रहे.
क्या अपनी सेना को वहां तैनात कर देगा इजरायल?
एक ऑप्शन यह है कि गाजा पट्टी से इजरायल लंबे समय तक अपने सैनिक न हटाए. इससे गाजा में तो शांति आ जाएगी, लेकिन इजरायल पर काफी आर्थिक बोझ पड़ सकता है. साथ ही उसके सैनिक लगातार खतरे में जीते रहेंगे क्योंकि हमास भले ही सीधे-सीधे फिलिस्तीनियों का प्रतिनिधि न हो, लेकिन गाजावासी इजरायल की तुलना में उसे करीब ही पाते हैं.
ये भी हो सकता है कि हमास को कमजोर करने के बाद इजरायली सेना लौट आए. मगर, इससे पहले एक सिस्टम बना दे. मसलन, वेस्ट बैंक में सारा एडमिनिस्ट्रेशन तो फिलिस्तीन के पास है, लेकिन अंतिम फैसला इजरायल ही लेता है. ये भी आजमाया हुआ मॉडल है, जो काफी हद तक कारगर है.
इससे क्या फायदे-नुकसान हैं
इससे उस इलाके में हो रहे बदलाव की जानकारी तुरंत इजरायल को मिल जाएगी और हमास या कोई भी टैररिस्ट गुट पनप नहीं सकेगा. हालांकि, इस कदम का भी गाजा पट्टी के लोग काफी विरोध कर सकते हैं. संभव है कि इस दौरान वेस्ट बैंक के लोग भी भड़क जाएं.
वेस्ट बैंक को लेकर इजरायल अब तक काफी संभलकर काम करता रहा. इस इलाके में करीब 3.7 मिलियन फिलिस्तीनी नागरिक रहते हैं, जिन्हें इजरायल ने शेल्टर और कई सुविधाएं दी हुई हैं. वहां भी गाजा पट्टी के सपोर्ट में समर्थन हो रहे हैं, जो इजरायल के लिए अच्छा संकेत नहीं.
साल 2014 में भी इजरायल ने गाजा पट्टी के भीतर कुछ ही किलोमीटर की घुसपैठ में अपने 60 से ज्यादा सैनिकों को गंवा दिया था. लेकिन ज्यादा मुश्किल ये है कि इसमें 2 हजार फिलिस्तीनियों की मौत हुई थी, जिससे असंतोष और भड़का. अबकी बार मामला ज्यादा मुश्किल है. इसमें न केवल अरब देश, बल्कि बहुत से देश इजरायल के खिलाफ बोल रहे हैं. तो मामला इजरायल-फिलिस्तीन से बढ़कर ग्लोबल हो चुका. कुल मिलाकर, अभी का युद्ध दोनों ही तरफ के लोगों के लिए गले ही हड्डी बन चुका है.