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इजरायल और हमास के बीच युद्ध को बीस दिन होने वाले हैं. और अभी इस जंग के फिलहाल खत्म होने की कोई संभावना नहीं है. वो इसलिए क्योंकि इजरायल का कहना है कि जब तक हमास खत्म नहीं होता, तब तक जंग जारी रहेगी.
इस बीच इजरायल के राष्ट्रपति इसहाक हेर्जोग का कहना है कि अगर हिज्बुल्ला बीच में कूदता है तो लेबनान को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी.
हेर्जोग ने कहा, 'मुझे लगता है कि ईरान उनका समर्थन कर रहा है और मिडिल ईस्ट को अस्थिर करने के लिए दिन-ब-दिन काम कर रहा है. मैं साफ कर देना चाहता हूं कि हम उत्तरी सीमा पर किसी और के साथ टकराव नहीं चाहते हैं. हमारा ध्यान सिर्फ हमास को खत्म करने और अपने नागरिकों को वापस लाने पर है.'
उन्होंने आगे कहा, 'लेकिन अगर हिज्बुल्ला हमें इस युद्ध में घसीटेगा, तो ये साफ होना चाहिए कि लेबनान को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी.'
इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने भी कहा कि अगर हिज्बुल्ला इस लड़ाई में शामिल होने की गलती करता है तो उसे इसका पछतावा होगा.
बहरहाल, माना जा रहा है कि इजरायल के खिलाफ जंग में हिज्बुल्ला उसका साथ दे रहा है. इस जंग में इजरायली हमलों में हिज्बुल्ला के भी कई लड़ाके मारे गए हैं. मंगलवार को ही इजरायली सेना ने हिज्बुल्ला के कुछ ठिकानों पर हमला भी किया. दो दिन पहले हिज्बुल्ला ने दावा किया था कि दक्षिणी लेबनान के अयनाता गांव में इजरायली हमले में उसके एक सदस्य की मौत हो गई थी.
इजरायल और हिज्बुल्लाः एक-दूसरे के दुश्मन
इजरायल और हिज्बुल्ला एक-दूसरे के कट्टर दुश्मन हैं. जुलाई 2006 में हिज्बुल्ला ने दो इजरायली सैनिकों को बंधक बना लिया था. जवाब में इजरायल ने जंग छेड़ दी थी.
34 दिन तक चली इजरायल और हिज्बुल्ला की इस जंग में 1100 से ज्यादा लेबनानी नागरिक मारे गए थे. इजरायल के भी 165 नागरिकों की इसमें मौत हुई थी.
इस जंग में वैसे तो कोई नहीं जीता था, लेकिन सीधे तौर पर लेबनान को भारी नुकसान हुआ था.
इंटरनेशनल रेड क्रॉस कमेटी के मुताबिक, उस जंग में इजरायली सेना ने 30 हजार से ज्यादा घर या तो पूरी तरह तबाह कर दिए थे या फिर उन्हें क्षति पहुंचाई थी. 109 पुल और 78 मेडिकल फैसेलिटी को डैमेज कर दिया था.
रिपोर्ट्स के मुताबिक, उस समय हिज्बुल्ला के पास तीन से पांच हजार लड़ाके थे और कम दूरी की मिसाइलें ही थीं. लेकिन बीते 17 साल में न सिर्फ उसका संगठन बड़ा हुआ है, बल्कि हथियारों का जखीरा भी काफी बढ़ा है.
आज कितना मजबूत है हिज्बुल्ला?
ऐसा अनुमान है कि आज के समय में हिज्बुल्ला के पास 60 हजार से ज्यादा लड़ाके हैं. इतना ही नहीं, 2006 में उसके सिर्फ 14 हजार मिसाइलें थीं, जिनकी संख्या अब बढ़कर डेढ़ लाख से ज्यादा हो गई होगी.
हिज्बुल्ला के पास आज के समय कम दूरी में मार करने वाली मिसाइलें तो हैं ही. इनके अलावा उसके पास ईरानी मिसाइलें भी हैं जो 300 किलोमीटर की दूरी तक मार सकती हैं.
इसके अलावा हिज्बुल्ला की एक 'स्पेशल फोर्स' भी है, जिसे युद्ध के समय इजरायल में घुसपैठ करने के लिए खास ट्रेनिंग दी गई है.
जानकारों का मानना है कि सीरिया युद्ध ने हिज्बुल्ला को अपनी क्षमताओं में सुधार करने का मौका दिया. सीरिया में लंबे समय तक युद्ध चला था और इसने हिज्बुल्ला के अर्बन वॉरफेयर और इंटेलिजेंस में काफी सुधार किया.
क्या इजरायल को हरा सकता है हिज्बुल्ला?
अगर दोनों में जंग होती है तो हिज्बुल्ला के पास इजरायल को भारी नुकसान पहुंचाने की क्षमता जरूर है, लेकिन फिर भी वो कमजोर ही होगा.
जानकारों का मानना है कि इस जंग में हिज्बुल्ला इजरायल के अहम इन्फ्रास्ट्रक्चर और इलेक्ट्रिसिटी ग्रिड को निशाना बना सकता है. लेकिन आखिर में इजरायल लेबनान को मलबे में तब्दील कर सकता है.
मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट में कॉन्फ्लिक्ट एंड रेसोल्यूशन प्रोग्राम की डायरेक्टर रांडा स्लिम ने अल-जजीरा को बताया कि सीरिया का युद्ध अलग था. वहां हिज्बुल्ला की मदद बहुत सारे संगठन कर रहे थे. अरब देशों से फंडिंग हो रही थी. लेकिन इजरायली सेना की शक्तिशाली मशीनरी के सामने हिज्बुल्ला बहुत ज्यादा समय तक नहीं टिक पाएगा.
उन्होंने बताया कि अगर संघर्ष बढ़ता है तो इजरायल 'दहिया डॉक्ट्रिन' को लागू कर सकता है. असल में ये दक्षिणी बेरूत में हिज्बुल्ला के गढ़ का नाम है. अगर इजरायल दहिया डॉक्ट्रिन लागू करता है तो उसकी सेना नागरिक और सैन्य ढांचे को भारी नुकसान पहुंचा सकती है.
क्या इजरायल-हिज्बुल्ला में जंग हो सकती है?
कुछ कहा नहीं जा सकता है. लेकिन इजरायल और हमास की जंग में जिस तरह के हालात बन रहे हैं, उसे देखकर माना जा रहा है कि हिज्बुल्ला और ईरान भी इस युद्ध में शामिल हो सकता है.
जानकारों का मानना है कि अगर इजरायल हमास के सफाये पर उतारू होता है तो फिर हिज्बुल्ला इस जंग में खुलकर उतर सकता है.
हालांकि, इसके बावजूद कई एक्सपर्ट्स का ऐसा भी मानना है कि ईरान और हिज्बुल्ला, दोनों ही संयम बरतेंगे.
एक बड़ी वजह ये भी है कि अगर हिज्बुल्ला इस जंग में सीधे तौर पर उतरता है तो इससे लेबनान के हालात और बिगड़ जाएंगे, जो पहले से ही आर्थिक और राजनीतिक संकट से जूझ रहा है.
इसके अलावा हिज्बुल्ला के आलोचक और विरोधी पहले से ही संकटग्रस्त देश को युद्ध में घसीटने के लिए दोषी ठहरा सकते हैं.
हमास से कितना अलग है हिज्बुल्ला?
1982 में ईरान के रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स ने इस आतंकी संगठन को बनाया था. इसका मकसद ईरान में हुई इस्लामी क्रांति को दूसरे देश में फैलाना और लेबनान में इजरायली सेना के खिलाफ मोर्चा खड़ा करना था.
हमास और हिजबुल्ला, दोनों ही संगठनों का एक ही मकसद है और वो है- इजरायल का विनाश. हमास और हिज्बुल्ला, दोनों को ही अमेरिका ने आतंकी संगठन घोषित कर रखा है.
हिज्बुल्ला के पास ऐसे रॉकेट हैं, जो इजरायल के किसी भी हिस्से को टारगेट कर सकते हैं. अगर हमास और हिज्बुल्ला एकसाथ हमला करते हैं तो इजरायल के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी हो सकती है.
हिज्बुल्ला इजरायल के उत्तर में है तो हमास गाजा पट्टी में एक्टिव है. इनके पास रॉकेट, मिसाइलों, एंटी-टैंक मिसाइलों और एयर डिफेंस सिस्टम जैसे हथियार हैं. हिज्बुल्ला के पास किसी देश की सेना के बराबर क्षमता है.
हिज्बुल्ला अपने लड़ाकों को इजरायली सेना से करीबी मुकाबले के लिए छोटे और हल्के हथियारों को उपयोग करने के लिए ट्रेन्ड करता है. उन्हें एंटी-टैंक मिसाइलों का इस्तेमाल करने की भी ट्रेनिंग मिलती है.
हमास की जमीनी रणनीति भी हिज्बुल्ला जैसी ही है, लेकिन वो उतनी प्रभावी नहीं है. हमास के लड़ाके हिज्बुल्ला के लड़ाकों की तरह ट्रेन्ड नहीं हैं और उनके पास अत्याधुनिक हथियार भी नहीं हैं.