इसी 15 फरवरी को इजरायल की पार्लियामेंट में नया सिटीजनशिप लॉ लागू हुआ. ये नया कानून उन सभी लोगों की पहचान करेगा, जो टेररिस्ट गतिविधि का हिस्सा रह चुके या वर्तमान में हैं. साथ ही ऐसे लोगों को भी अलग किया जाएगा जो फिलीस्तीन के कट्टर समर्थक हैं और देखा जाएगा कि क्या वे किसी भी तरह से फिलीस्तीनी संगठनों से फंड पा रहे हैं. अगर ऐसा है तो उन लोगों की इजरायली नागरिकता छीन ली जाएगी और देश से निकाल दिया जाएगा.
क्यों किया इजरायल ने बदलाव?
आतंकी हरकतों के कारण जेल में पड़े और नागरिक बतौर बाहर रह रहे, दोनों ही तरह के लोगों पर कानून लागू होगा. देश के सिटीजनशिप लॉ 1954 में बदलाव के लिए आए इस प्रस्ताव को भारी समर्थन मिला. माना जा रहा है कि लंबे समय से चारों ओर युद्ध और खतरे को देखते हुए मौजूदा इजरायली सरकार ने ये फैसला किया ताकि कम से कम देश के भीतर आतंकी खत्म हो सकें. बता दें कि फिलीस्तीन सपोर्टर लगातार इजरायल के भीतर और चारों तरफ आतंक मचाए हुए हैं. हाल के दिनों में देश के भीतर आतंकी हमले बढ़े, जिसके तोड़ की तरह न्यू सिटीजनशिप लॉ आया है.
देश की लगभग 90 लाख की आबादी में करीब 20 प्रतिशत लोग मुस्लिम हैं और इनमें से ज्यादातर फिलीस्तीन सपोर्टर हैं. ऐसे लोग अब स्टेटलेस होने की कगार पर हैं.
क्या मतलब है नागरिक न होने का?
एक स्टेटलेस शख्स वो है, जो न तो किसी देश के कानून के तहत आता है, और न ही जिसपर कोई देश अपना कानून लागू कर सकता है. ये एक तरह से वैसा ही है, जैसे किसी के फिंगरप्रिंट का न होना. वो अपनी लगभग पहचान खो देता है. उसे किसी देश से खास सुविधा नहीं मिलती और न ही कोई देश उसपर अपनी सजाएं ही लागू कर सकता है.
क्यों कोई अनागरिक बन जाता है?
इसकी एक नहीं, कई वजहें हैं. एक बहुत कॉमन चीज है, शादी. जैसे कोई विदेशी मूल के शख्स से शादी करके उसके देश आए, और किसी वजह से उसे वहां की नेशनलिटी न मिल सके, और वो अपने देश की नागरिकता भी सरेंडर कर चुका हो. ऐसे में कुछ समय के लिए वो स्टेटलेस हो जाता है. बीच में भारत-नेपाल के बीच तनाव होने पर नेपाल ने भी कहा था कि वो भारत से आए बेटियों को नेपाली सिटिजनशिप नहीं देगा. रिफ्यूजियों की संतानें भी स्टेटलेस होने के खतरे में रहती हैं.
कई बार तकनीकी खामियां भी किसी की नागरिकता से छेड़छाड़ कर सकती हैं. जैसे कागजों में गड़बड़ी, या फिर बच्चे का जन्म के बाद रजिस्ट्रेशन न होना. सरोगेसी या फिर इंटरनेशनल अडॉप्शन में भी कई बार पेंच होने के कारण बच्चे को नागरिकता नहीं मिल पाती है.
कितने लोग स्टेटलेस हैं?
इसका कोई पक्का आंकड़ा नहीं. यूनाइटेड नेशन्स हाई कमिश्नर फॉर रिफ्यूजीस (UNHCR) के अनुसार नवंबर 2018 में दुनियाभर में लगभग 12 मिलियन लोगों के पास किसी देश की नागरिकता नहीं थी. संगठन का ये भी दावा है कि स्टेटलेस लोगों में 75 प्रतिशत से ज्यादा लोग माइनोरिटी समूहों से हैं और लगभग एक तिहाई बच्चे हैं. ये दुनिया के लगभग हर देश में हैं, जिनमें भारत भी शामिल है.
इससे क्या डर रहता है?
सबसे पहला डर है, किसी भी देश का वोटर न होना. ऐसे लोग चूंकि किसी देश की सरकार नहीं चुन सकते, तो उनमें किसी भी सरकार या पार्टी की दिलचस्पी भी नहीं होती है. वे देश में रह तो रहे होते हैं, लेकिन आमतौर पर बेसिक सुविधाओं से दूर रहते हैं, जैसे बिजली, पानी, घर, पढ़ाई और अस्पताल की सुविधा. स्टेटलेस व्यक्ति के साथ कोई दुर्घटना हो जाए या फिर मौत हो जाए तो भी खास फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि उनका कोई पक्का रिकॉर्ड नहीं. यही कारण है कि रिफ्यूजी की तरह रह रहे लोगों पर मानव तस्करी का खतरा ज्यादा रहता है, खासकर अगर वे बच्चे या महिला हों.
नागरिकता के बगैर रहते लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही
इसकी एक वजह है देशों में अस्थिरता. उदाहरण के तौर पर मिडिल ईस्ट के कई देशों में लगातार तनाव और गृह युद्ध जैसे हालात बने हुए हैं. या फिर रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच बहुत से लोग परेशान हैं. ऐसे में वे अपना देश छोड़कर जान बचाने के लिए दूसरे देश चले जाते हैं, फिर भले ही उनके पास नागरिकता रहे, न रहे.
साल 2015 में एक फोटो वायरल हुई थी, जिसमें एलन कुर्दी नाम का तीन साल का सीरियाई बच्चा अपने परिवार के साथ भागते हुए डूबकर मारा गया. कुर्दी का परिवार सीरियाई गृहयुद्ध से बचने के लिए सितंबर में नाव से तुर्की से ग्रीस जाने की कोशिश में था, लेकिन नाव पलटी और बच्चे की मौत हो गई. इसके बाद से लगातार देशों की अस्थिरता और शरणार्थियों पर बात होने लगी.
क्या स्टेटलेस और रिफ्यूजी एक है?
नहीं. दोनों में फर्क है. रिफ्यूजी वे लोग हैं, जो किसी डर से अपने देश लौटकर नहीं जाना चाहते, जैसे युद्ध, सरकार की अस्थिरता, या नस्लभेद. इनके पास नागरिकता तो होती है, लेकिन हमेशा नहीं. अधिकतर मामलों में शरणार्थी स्टेटलेस भी होते हैं. वे अपनी नागरिकता सरेंडर कर चुके होते हैं ताकि दूसरे देश उन्हें अपना लें.
क्या और कितनी सुरक्षा मिल पाती है?
सरकारें लगातार अपने-अपने यहां रहते स्टेटलेस लोगों की सुरक्षा के लिए कानून बना रही हैं. हर देश इस मामले में मानवीय हुआ, लेकिन इसके बाद भी वे कभी भी नागरिकों जितना अधिकार नहीं पा सकते. भारत की बात करें, तो हमारे यहां 1946 फॉरेनर्स एक्ट है, जो ऐसे लोगों की सुरक्षा पक्का करती है, जो विदेशी या फिर स्टेटलेस भी हैं. इसके अलावा शरणार्थियों के लिए भी कई कानून हैं, हालांकि इनके अधिकारों के लिए नए और पुख्ता नियम-कानून की लगातार बात होती रही.