क्या यीशु और उनके माता-पिता फिलिस्तीन के थे? ये बात अक्सर उठती रही है लेकिन ताजा विवाद नेटफ्लिक्स की बायोपिक मैरी पर है. इसमें मुख्य पात्रों को निभाने वाले सारे लोग इजरायली हैं. आलोचक इस बात से परेशान हैं कि तेल अवीव से जुड़े लोग उन ऐतिहासिक पात्रों के रोल में हैं, जिन्हें वे फिलिस्तीनी मानते हैं. फिलहाल इजरायल जिस तरह से गाजा पट्टी पर हमलावर है, उसमें ये कास्टिंग विरोधियों को पसंद नहीं आ रही.
सोशल मीडिया पर मचे बखेड़े पर फिल्म मेकर डीजे कारुसो ने सीधा जवाब दिया. उनका कहना है कि उन्होंने जानबूझकर इजरायली एक्टर्स को चुना ताकि फिल्म सच के ज्यादा करीब लगे. यीशु का जन्म बेथलेहम में हुआ, जो अब इजरायल और वेस्ट बैंक के बीच विवादित इलाका बन चुका. लेकिन उस वक्त इसकी क्या स्थिति थी? क्या जन्म स्थान के आधार पर यीशु और उनका परिवार फिलिस्तीनी थे?
ये बात बहुत बार उठती रही. हालांकि फिलहाल जो राजनैतिक, धार्मिक गुत्थी है, उस दौर में वो नहीं थी. बेथलहम अब फिलिस्तीनी इलाके के पश्चिम में वेस्ट बैंक में बसा शहर है, जिसपर इजरायल का काफी कंट्रोल है. यह यरूशलम से कुछ ही किलोमीटर दूर है. इस आधार पर आधुनिक थ्योरी में कहा जा सकता है कि यीशु फिलिस्तीन से थे. हालांकि बात यहीं खत्म नहीं होती, इसके साथ एक इतिहास भी है. धर्म से वे यहूदी थे, और उनका जन्म तब हुआ था, जब फिलिस्तीन कोई राजनैतिक बॉडी नहीं थी, देश तो दूर की बात.
उस दौर में आधुनिक फिलिस्तीन को जूडिया कहा जाता था. ये रोमन एंपायर का हिस्सा था. तब यहूदियों और फिलिस्तीनियों के बीच कोई विवाद नहीं था, बल्कि जूडिया में रोमन शासकों और यहूदियों के बीच संघर्ष रहा. ये तनाव धार्मिक और सांस्कृतिक था. असल में रोमन्स पॉलीथिस्ट थे, जो कई देवी-देवताओं को मानते. वहीं यहूदी एक ईश्वर को मानने वाले रहे.
रोमन एंपायर ने जब जूडिया पर शासन शुरू किया तो तनाव बढ़ने लगा. रोमन्स ने यहूदियों पर भारी टैक्स लगा दिया. वे उनपर कई धार्मिक पाबंदियां भी लगाने लगे. उनके पूजा के तरीकों में बदलाव की कोशिश हुई. इन बातों पर दोनों के बीच कई बार लड़ाइयां हुईं, खासकर ग्रेट ज्यूइश विद्रोह, जिसके बाद यहूदी आबादी जूडिया से घटकर दूसरी जगहों पर फैलने लगी.
यही वक्त था, जिसका तब रोमनों ने फायदा उठाया. उन्होंने जूडिया यानी जहां जूडियन्स या यहूदी रहते हों, उसका नाम ही बदल डाला. दूसरे विद्रोह के बाद आबादी घटने पर उन्होंने ने इस जगह का नाम फिलिस्तीन कर दिया. यह नाम उन लोगों के नाम पर था, जो काफी पहले इसके आसपास रह चुके थे.
नाम बदलने के इरादे के पीछे यहूदियों से जुड़ी पहचान को कमजोर बनाना था. मकसद था कि इसके बाद विद्रोही यहूदी अपने घर लौटने की बजाए नई जगहों पर ही बसे रहें. इसके बाद फिलिस्तीन ही आधिकारिक नाम बन गया. यही वो समय था, जिसके बाद से यीशु के फिलिस्तीनी होने की थ्योरी भी चल पड़ी. हालांकि ये सिर्फ भौगोलिक पहचान थी, जो नाम बदलने के साथ बनी.
रोमन एंपायर के खत्म होने के साथ फिलिस्तीन की पहचान भी गोलमोल होने लगी. चूंकि ये कोई राजनैतिक पहचान तो थी नहीं, लिहाजा भौगोलिक सीमाएं भी डगमगा गईं. ये अब तक चला आ रहा है.
विवाद में एक मोड़ ये भी आया कि यीशु को फिलिस्तीनी रिफ्यूजी कहा जाने लगा. 20वीं सदी में इजरायल के बनने के साथ काफी सारे फिलिस्तीनी विस्थापित हुए. तब अपने पक्ष को मजबूत करने के लिए वेस्ट बैंक और गाजा पट्टी के नेता ये थ्योरी देने लगे. उनका कहना था कि चूंकि यीशु भी यहीं जन्मे थे, तो अब वे भी एक तरह से शरणार्थी हैं.
फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (PLO) के लीडर यासर अफरात ने कई बार ये बात कही. वे इसपर ग्लोबल सहानुभूति लेना चाहते थे, हालांकि इजरायल समेत तमाम यहूदी और ईसाई संगठनों ने भी इसे खारिज कर दिया. ऐतिहासिक नजरिए से यीशु न तो फिलिस्तीनी थे, न ही शरणार्थी क्योंकि उस दौर में फिलिस्तीन का कोई राजनैतिक अस्तित्व नहीं था.