पश्चिम बंगाल के न्यू जलपाईगुड़ी में सोमवार को हुए रेल हादसे में अब तक 10 की मौत हो चुकी है. ये हादसा तब हुआ था, जब अगरतला से सियालदाह जा रही कंचनजंगा एक्सप्रेस को मालगाड़ी ने टक्कर मार दी थी. इस हादसे में मालगाड़ी के ड्राइवर (लोको पायलट) और पैसेंजर ट्रेन के गार्ड की भी मौत हो गई.
शुरुआत में रेलवे बोर्ड की अध्यक्ष जया वर्मा सिन्हा ने कहा था कि मालगाड़ी के ड्राइवर ने सिग्नल की अनदेखी की थी, जिस वजह से ये हादसा हुआ.
हालांकि, बाद में सामने आया कि ऑटोमैटिक सिग्नलिंग सिस्टम में ही खराबी थी. सिग्नलिंग सिस्टम में खराबी होने के बावजूद कंचनजंगा एक्सप्रेस और मालगाड़ी के ड्राइवर को सिग्नल क्रॉस करने का मेमो दिया गया था. रंगापानी के स्टेशन मास्टर ने दोनों गाड़ियों को TA-912 नोट जारी किया था. अगर ये नोट नहीं दिया गया होता तो ड्राइवर हर खराब सिग्नल पर ट्रेन को एक मिनट के लिए रोकना होता और स्पीड भी 10 किलोमीटर प्रति घंटे की होती.
ये इस साल का अब तक का सबसे बड़ा रेल हादसा है. न्यू जलपाईगुड़ी में हुए इस हादसे ने पिछले साल ओडिशा के बालासोर में हुए रेल हादसे की यादें ताजा कर दीं. बालासोर में रेल हादसे में करीब तीन सौ लोगों की मौत हो गई थी.
किस सरकार में कितने हादसे?
सरकार का दावा है कि 2004 से 2014 के बीच हर साल औसतन 171 रेल हादसे होते थे. जबकि 2014 से 2023 के बीच सालाना औसतन 71 रेल हादसे हुए. इसी तरह 2004 से 2014 के बीच सालाना औसतन 86.7 घटनाएं ट्रेन के बेपटरी होने की सामने आई थीं, जो 2014 से 2023 के बीच घटकर 47.3 हो गई.
सरकार का कहना है कि 2000-01 में ट्रेन के पटरी से उतरने की 350 घटनाएं हुई थीं, जबकि 2022-23 में इस तरह की 36 घटनाएं ही हुईं.
वहीं, यूपीए सरकार के 10 साल में 1,711 रेल हादसे हुए थे. जबकि, मोदी सरकार में 2014 से मार्च 2023 के बीच 638 हादसे हुए. यूपीए सरकार में 867 मामले ट्रेन से पटरी के उतरने के सामने आए थे. जबकि, एनडीए सरकार में 426 मामले सामने आए हैं.
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किस सरकार में कितनी मौतें?
आंकड़ों के मुताबिक, यूपीए सरकार में रेल हादसों में 2,453 लोगों की मौत हुई थी, जबकि 4,486 लोग घायल हुए थे. वहीं, एनडीए सरकार में 781 मौतें और 1,543 लोग घायल हुए हैं.
रेलवे की सुरक्षा पर कितना खर्च?
मोदी सरकार में रेलवे के लिए 1,78,012 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है. इस हिसाब से देखा जाए तो हर साल औसतन 17,801 करोड़ रुपये खर्च किए गए. जो 2014 से पहले की तुलना में ढाई गुना ज्यादा है. 2004 से 2014 के बीच रेलवे के लिए 70,273 करोड़ रुपये का बजट दिया गया था.
पटरियों के सुधार और मरम्मत पर वित्त वर्ष 2015 से वित्त वर्ष 2023 के बीच हर साल औसतन 10,201 करोड़ रुपये का खर्चा किया गया. जबकि, वित्त वर्ष 2005 से वित्त वर्ष 2014 के बीच हर साल औसतन 4,702 करोड़ रुपये खर्च हुए थे.
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'कवच' सिस्टम भी शुरू
रेलवे भारत की लाइफलाइन है. हर दिन ढाई करोड़ से ज्यादा यात्री ट्रेन से सफर करते हैं. इतना ही नहीं, 28 लाख टन से ज्यादा की माल ढुलाई भी होती है. अमेरिका, रूस और चीन के बाद दुनिया का चौथा सबसे लंबा रेल नेटवर्क भारत का ही है.
ऐसे में सवाल उठता है कि ऐसे हादसों को रोकने के लिए सरकार क्या कर रही है? सरकार ने दो ट्रेनों की टक्कर रोकने के लिए 'कवच' सिस्टम शुरू किया है. रेल कवच एक ऑटोमैटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम है. इंजन और पटरियों में लगी इस डिवाइस से ट्रेन की स्पीड को कंट्रोल किया जाता है. इससे खतरे का अंदेशा होने पर ट्रेन में अपने आप ब्रेक लग जाता है.
दावा है कि अगर दो इंजनों में कवच सिस्टम लगा है तो उनकी टक्कर नहीं होगी. अगर एक ही पटरी पर आमने-सामने से दो ट्रेनें आ रही हैं तो कवच एक्टिवेट हो जाता है. कवट ब्रेकिंग सिस्टम को भी एक्टिव कर देता है. इससे ऑटोमैटिक ब्रेक लग जाते हैं और एक निश्चित दूरी पर दोनों ट्रेनें रुक जाती हैं. अब तक 139 लोको इंजनों में ही कवच सिस्टम लगा है.
इसी तरह से इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम भी है. ये सिस्टम सिग्नल, ट्रैक और प्वॉइंट के साथ मिलकर काम करता है. इंटरलॉकिंग सिस्टम ट्रेनों की सुरक्षित आवाजाही सुनिश्चित करता है. अगर लाइन क्लियर नहीं होती है तो इंटरलॉकिंग सिस्टम ट्रेन को आने जाने के लिए सिग्नल नहीं देता है. दावा है कि ये सिस्टम एरर प्रूफ और फेल सेफ है. फेल सेफ इसलिए, क्योंकि अगर सिस्टम फेल होता भी है तो भी सिग्नल रेड हो जाएगा और ट्रेनें रुक जाएंगी. 31 मई 2023 तक 6,427 स्टेशनों में इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम लगाया जा चुका है.