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कर्नाटक के चुनावी इतिहास को देखें तो 1985 के बाद से अब तक सत्ताधारी पार्टी की वापसी नहीं हो सकी है. इस बार भी ऐसा ही हुआ. सत्ताधारी बीजेपी 66 सीटों पर सिमट कर रह गई तो विपक्षी कांग्रेस ने 136 सीटें जीतकर रिकॉर्ड बना दिया.
कर्नाटक को जीतने के लिए बीजेपी और कांग्रेस, दोनों ने ही अपना पूरा जोर लगाया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 19 रैलियां और 6 रोडशो किए. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से लेकर पार्टी के तमाम बड़े नेताओं ने प्रचार किया.
वहीं, कांग्रेस की ओर से सोनिया गांधी से लेकर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा भी प्रचार में उतरे. लेकिन बीजेपी से कुछ गलतियां और कांग्रेस की तरकीबें कारगर रहीं. हार के बाद पूर्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने भी माना कि कांग्रेस ने 'बहुत संगठित' तरीके से चुनावी रणनीति बनाई थी.
जब पूछा गया कि क्या चुनाव में मोदी-शाह फैक्टर नहीं चला? तो इस पर बोम्मई ने कहा, इस नतीजे के कई सारे फैक्टर हैं और बाकी मंथन के बाद ही इस पर कुछ कहा जा सकता है. हालांकि, उन्होंने माना कि चुनाव में कांग्रेस ने बहुत संगठित रणनीति बनाई थी और उसकी जीत की ये सबसे बड़ी वजह है.
बीजेपी के कुछ नेताओं ने भी माना है कि चुनाव में कांग्रेस अपना 'नैरेटिव' सेट करने में कामयाब रही है और महीनों पहले से ही उसने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बोम्मई सरकार को घेरना शुरू कर दिया था. पर ये रणनीति क्या थी? समझते हैं...
कैसे बनाई रणनीति?
'PayCM और 40% सरकार'
कर्नाटक में कांग्रेस के कई सारे कैंपेन सुनील और उनकी टीम ने ही डिजाइन किए थे. चुनाव से पहले कांग्रेस का 'PayCM' कैंपेन काफी चर्चा में रहा था. ये सुनील का ही आइडिया था.
दरअसल, एक कॉन्ट्रैक्टर्स ने पीएम नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर कर्नाटक की बोम्मई सरकार पर बड़ा आरोप लगाया था. आरोप लगा कि बोम्मई सरकार हर काम के लिए 40% कमीशन मांगती है. कांग्रेस ने इसे लपक लिया और बीजेपी सरकार को '40 पर्सेंट वाली सरकार' का तमगा दे दिया.
कांग्रेस ने इसे लेकर कैंपेन लॉन्च कर दिया. दीवारों पर PayCM के पोस्टर चिपकाए गए. इसमें Paytm के QR कोड की तरह ही कोड बनाया गया, जिस पर बसवराज बोम्मई की तस्वीर थी और लिखा था- '40% Accepted Here.' यहां तक की कांग्रेस ने '40% सरकार' नाम की वेबसाइट भी लॉन्च कर दी.
'5 गारंटी प्लान'
चुनाव से पहले कांग्रेस ने '5 गारंटी' दी थी और वादा किया था कि चुनाव जीतने के बाद पहली ही कैबिनेट में इन्हें पूरा किया जाएगा.
नतीजों के बाद राहुल गांधी ने कहा कि हमने मोहब्बत से नफरत को हराया है. पहली ही कैबिनेट में पांचों वादे पूरे किए जाएंगे.
1. गृह ज्योति के तहत सभी परिवारों को 200 यूनिट तक बिजली हर महीने मुफ्त मिलेगी.
2. गृह लक्ष्मी के तहत हर परिवार की महिला मुखिया को दो हजार रुपये की मदद दी जाएगी.
3. अन्न भाग्य के तहत बीपीएल परिवार के हर सदस्य को हर महीने 10 किलो चावल मुफ्त मिलेगा.
4. युवा निधि के तहत दो साल तक 18 से 25 साल के बेरोजगार ग्रेजुएट को हर महीने 3,000 और डिप्लोमा होल्डर बेरोजगार को 1,500 रुपये की मदद दी जाएगी.
5. शक्ति योजना के तहत सभी महिलाओं को सरकारी बसों में फ्री यात्रा की सुविधा दी जाएगी.
'स्थानीय मुद्दों को तरजीह'
कांग्रेस का पूरा चुनावी प्रचार स्थानीय मुद्दों पर था. अप्रैल में अमूल ने जब कर्नाटक में एंट्री का ऐलान किया तो कांग्रेस ने सरकार पर नंदिनी ब्रांड को खत्म करने की कोशिश करने का आरोप मढ़ दिया.
कांग्रेस ने अमूल बनाम नंदिनी के विवाद को कन्नड़ अस्मिता से जोड़ दिया. कांग्रेस नेता सिद्धारमैया ने पीएम मोदी को टैग करते हुए ट्वीट किया, 'आपने पहले ही कन्नड़ लोगों से बैंक, पोर्ट और एयरपोर्ट छीन लिया. क्या अब आप हमसे नंदिनी को भी छीनने की कोशिश कर रहे हैं?'
इस मुद्दे पर कर्नाटक के लोग बंट गए. जमकर बवाल हुआ. सोशल मीडिया पर अमूल का बहिष्कार किया जाने लगा. यहां तक बातें होने लगीं कि अमूल के आने से दूध के दाम बढ़ जाएंगे.
किसने तैयार की रणनीति?
1. सुनील कानुगोलू
कर्नाटक में कांग्रेस की रणनीति के पीछे सुनील कानुगोलू का दिमाग है. सुनील अभी 40 साल के हैं. सुनील कर्नाटक के बेल्लारी जिले के रहने वाले हैं. उनके पिता कन्नड़ भाषी हैं और मां तेलुगू.
सुनील ने अमेरिका से मास्टर्स की दो डिग्री लीं- एक फाइनेंस में और दूसरी एमबीए की. पढ़ाई के बाद मैकेंजी में काम किया. 2009 में अमेरिका से वापस भारत लौट आए.
सुनील कानुगोलू ने चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के साथ काम किया है. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का कैंपेन प्रशांत किशोर की टीम ने ही तैयार किया था. सुनील भी इस टीम का हिस्सा थे. बाद में प्रशांत किशोर तो बीजेपी से अलग हो गए, लेकिन सुनील जुड़े रहे. 2017 के यूपी चुनाव की रणनीति भी सुनील ने ही बनाई थी. हालांकि, यूपी चुनाव के कुछ महीनों बाद ही सुनील बीजेपी से अलग हो गए.
बीजेपी से अलग होने के बाद सुनील ने 'माइंडशेयर एनालिटिक्स' के नाम से अपनी कंपनी शुरू की. पिछले साल ही सुनील कांग्रेस में शामिल हुए थे. कांग्रेस में आते ही उन्होंने कर्नाटक चुनाव की तैयारी शुरू कर दी थी.
बताया जाता है कि सुनील की टीम ने कर्नाटक की सभी सीटों पर सर्वे किया था. इसी सर्वे के आधार पर कांग्रेस ने टिकटें बांटी थीं.
2. नरेश अरोड़ा
नरेश अरोड़ा वो हैं जिन्होंने कांग्रेस और उसके प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार के लिए सोशल मीडिया कैंपेनिंग और मीडिया स्ट्रैटजी तैयार की.
नरेश अरोड़ा को डिजिटल मार्केंटिंग का मास्टर माना जाता है. बीते दो साल से उनकी कंपनी 'डिजाइन बॉक्स' कर्नाटक में कांग्रेस और उसके नेताओं की पॉजिटिव इमेज गढ़ने में लगी थी. उनका कहना है कि दो साल पहले ही स्ट्रैटजी बनानी शुरू कर दी थी. सोशल मीडिया और मीडिया में स्थानीय मुद्दों को ज्यादा तवज्जो दी गई.
उनका कहना है कि कोई भी रणनीति अनुमानों पर आधारित नहीं होती, इसके लिए ग्राउंड पर रिसर्च करनी होती है और उसी के आधार पर स्ट्रैटजी बनाई जाती है. कर्नाटक में भी यही किया.
3. विनायक दत्त
विनायक दत्त पोल मैट्रिक्स कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं. उनकी लिंक्डइन प्रोफाइल के मुताबिक, वो राज्य सरकारों और राजनीतिक पार्टियों के साथ मिलकर काम करते हैं.
कैंपेन स्ट्रैटेजिस्ट बनने से पहले विनायक दत्त जर्नलिस्ट रह चुके हैं और बाद में रिसर्च वर्क में आ गए थे. उनका काम सोशल मीडिया और मीडिया कैंपेनिंग डिजाइन करना है.
4. शशिकांत सेंथिल
शशिकांत सेंथिल 2009 के कर्नाटक कैडर के आईएएस अफसर रह चुके हैं. 2019 में इस्तीफा देने के बाद 2020 में वो कांग्रेस में आ गए.
बताया जाता है कि जुलाई 2022 में ही सेंथिल को कर्नाटक कांग्रेस के वॉररूम की जिम्मेदारी मिल गई थी. वॉररूम से एक-एक सीट का आकलन किया गया और उसकी रिपोर्ट पार्टी को भेजी गई.
सेंथिल मूल रूप से तमिलनाडु के रहने वाले हैं. उन्होंने कहा था कि कर्नाटक में बीजेपी हिंदुत्व के नाम पर बांटने वाली राजनीतिक कर रही थी, इसलिए उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया.
अब आगे क्या है रणनीति?
कर्नाटक जीतने के बाद कांग्रेस आत्मविश्वास से भर गई है. इस साल के आखिरी में पांच और राज्यों- मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में विधानसभा चुनाव होने हैं.
माना जा रहा है कि कर्नाटक में कांग्रेस की रणनीति तैयार करने में जिस टीम ने काम किया, वही टीम इन राज्यों में भी कमान संभालेगी.
2018 में हुए एमपी, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनाव में कांग्रेस की जीत हुई थी. हालांकि, 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आ गए. इस कारण उनके समर्थक विधायक भी बीजेपी में शामिल हो गए और मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिर गई.