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भारत और श्रीलंका में विवाद से पहले किसका था कच्चातिवु द्वीप, क्यों छोटे से टुकड़े पर मचा बड़ा बवाल?

रामेश्वरम और श्रीलंका के बीच स्थित कच्चातिवु द्वीप को भारत कोलंबो का हिस्सा मानता है. करीब पौने तीन सौ एकड़ का ये आइलैंड आजकल विवादों में है. बीजेपी ने आरोप लगाया कि इस भारतीय द्वीप को कांग्रेस ने सत्तर के दशक में श्रीलंका को दे दिया था. लेकिन क्या फसाद ही यही अकेली वजह है? सूने आइलैंड में ऐसा क्या है, जो इसपर बात होती रही?

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कच्चातिवु द्वीप को लेकर भारतीय राजनीति में उठापटक जारी है. (Photo- PTI)
कच्चातिवु द्वीप को लेकर भारतीय राजनीति में उठापटक जारी है. (Photo- PTI)

भारत और श्रीलंका के बीच स्थित कच्चातिवु द्वीप को लेकर बीजेपी ने कांग्रेस को निशाने पर लिया. दरअसल एक RTI के जवाब में बताया गया कि साल 1974 में तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने श्रीलंका की राष्ट्रपति श्रीमावो भंडारनायके के साथ एक समझौता किया था. इसी के तहत द्वीप को श्रीलंका को सौंप दिया गया. अब इसे लेकर राजनीति में घमासान मचा हुआ है. पार्टियां सवाल-जवाब कर रही हैं. लेकिन सवाल ये है कि देश तो अक्सर इंचभर जमीन को लेकर अड़ जाते हैं, ऐसे में भारत ने अपना पूरा का पूरा द्वीप क्यों पड़ोसी देश के नाम कर दिया. 

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सबसे पहले जानिए, किसने क्या कहा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने ट्विटर अकाउंट पर RTI के हवाले से लिखा- ये चौंकाने वाला है. नए तथ्यों से पता चला है कि कांग्रेस ने जानबूझ कर कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को दे दिया था. इसे लेकर हर भारतीय गुस्सा है और एक बार फिर से मानने पर मजबूर कर दिया है कि हम कांग्रेस पर भरोसा नहीं कर सकते हैं. भारत की अखंडता, एकता कम कर और हितों को कमजोर करना ही कांग्रेस के काम करने का तरीका है. जो 75 सालों से जारी है. पहले भी मुद्दा कई बार उछला है. RTI तमिलनाडु के बीजेपी अध्यक्ष अन्नामलाई ने लगाई थी. फिलहाल इसपर पार्टियां एक-दूसरे पर हमलावर हैं.

कब से कब तक किसका हक रहा कच्चातिवु पर

बंगाल की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ने वाला ये द्वीप 285 एकड़ में फैला हुआ है. यह सबसे नए द्वीपों में से आता है जो 14वीं सदी में ज्वालामुखी के विस्फोट से बना था. 

शुरुआती मध्यकालीन समय में ये द्वीप श्रीलंका के जाफना किंगडम का हिस्सा था. 

बाद में 17वीं सदी में यह रामानाथपुरम के रामानद साम्राज्य के पास आ गया. 

श्रीलंका (तब सीलोन) ने इसपर पूरा कंट्रोल पाने के लिए द्वीप के चारों तरफ डिफेंस एक्सरसाइज भी कर डाली. 

साल 1921 में भारत और श्रीलंका दोनों में मछली पकड़ने को लेकर इसपर विवाद हो गया. विवाद अनसुलझा ही रहा और आग में चिंगारी की तरह रह-रहकर भड़कता रहा. 

आगे चलकर सिविल एविएशन ऑफ सीलोन और सिविल अथॉरिटी ऑफ इंडिया में बातचीत हुई. मामला हमारे यहां विदेश मंत्रालय तक पहुंचा. यहीं से बदलाव हुआ. 

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katchatheevu island dispute india sri lanka photo Pexels

इन शर्तों के साथ द्वीप श्रीलंका को दे दिया गया

साल 1974 में कुछ शर्तों के साथ देश ने कच्चातिवु श्रीलंका को दे दिया. कंडीशन्स ये थीं कि भारतीय मछुआरे फिशिंग और अपने जाल सुखाने जैसे कामों के लिए द्वीप का उपयोग कर सकेंगे. साथ ही वहां बने चर्च में बिना वीजा के भारतीय फिशरमैन आ सकेंगे. यहां बता दें कि आइलैंड पर वैसे तो आबादी नहीं, लेकिन हर साल सेंट एंथनी फेस्टिवल मनाया जाता है. ये दोनों ही देशों के मछुआरों के लिए बड़ा मौका होता है. द्वीप देने का अकेला मकसद ये बताया गया कि इससे दोनों देशों के बीच इंटरनेशनल समुद्री सीमा तय हो सकेगी. 

मछुआरों की आवाजाही पर मनाही होने लगी 

समझौते हो गए, लेकिन जल्द ही विवाद होने लगा. अलगाववादी गुट लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) की सक्रियता के दौरान श्रीलंकाई सरकार ने समुद्री आवाजाही पर रोक लगानी शुरू कर दी. यहां बता दें कि लिट्टे श्रीलंका का अलगाववादी गुट था, जो उत्तर और पूर्वी श्रीलंका को अलग करके आजाद तमिल स्टेट बनाना चाहता था. भारत में भी इससे सहानुभूति रखने वाले लोग थे. ये दोनों ही देशों में अस्थिरता ला रहे थे. इसे ही रोकने और समुद्री एक्टिविटीज पर कंट्रोल के लिए श्रीलंकाई सरकार आवाजाही पर कड़ी निगरानी शुरू कर दी. इस जद में भारतीय मछुआरे भी आए. वे एक नियत सीमा तक ही फिशिंग कर पा रहे थे.

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आगे चलकर हुआ ये कि समुद्री सीमा पार करने का आरोप लगाते हुए भारतीय मछुआरों को अरेस्ट किया जाने लगा. 

katchatheevu island dispute india sri lanka photo PTI

भारत और श्रीलंका के बीच मछुआरों का मुद्दा एक बड़ा मसला है. श्रीलंकाई नौसेना ना सिर्फ भारतीय मछुआरों को पकड़ती है, बल्कि कई बार उनपर गोलियां भी चलाती है. कच्चातिवु के आसपास इस तरह की घटनाएं आम हैं, जहां लंकाई नौसेना मछुआरों को पकड़ने के साथ उनकी नौकाओं को भी जब्त कर लेती है. बीते साल श्रीलंका की नौसेना ने लगभग ढाई सौ भारतीय मछुआरों को पकड़ लिया था.इस साल भी ऐसे मामले खबरों में आ रहे हैं.

क्यों पकड़े जाते हैं मछुआरे

कहा जा रहा है कि भारतीय हिस्से में मछलियां कम हो गई हैं. ऐसे में फिशिंग के लिए मछुआरे कच्चातिवु आइलैंड की तरफ जाते हैं. हालांकि वहां तक जाने के रास्ते में इंटरनेशनल समुद्री सीमा पड़ती है. इसे ही लांघते हुए श्रीलंकन नेवी भारतीय मछुआरों को अरेस्ट कर लेती है. 

तमिल नेताओं ने की वापस लौटाने की मांग

नब्बे के दशक में तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री करुणानिधि ने पुराने फैसले का काफी विरोध किया था. यहां तक कि द्वीप को वापस लेने की मांग होने लगी थी. आगे चलकर जयललिता ने भी किसी देश को गिफ्ट में द्वीप देने को असंवैधानिक कहते हुए भारत-श्रीलंका समझौते को अमान्य करार देने की मांग की. साल 2022 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने डिमांड की थी कि द्वीप पर भारत वापस दावा करे. हालांकि ये सारी बातचीत देश के भीतर ही भीतर सिमटी रही. 

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katchatheevu island dispute india sri lanka photo PTI

क्या महज मछली पकड़ने पर लड़ाई है

ये पूरा एरिया सीफूड रिच है. दोनों ही देशों के मछुआरे यहां से मछलियां पकड़ते रहे. लेकिन समस्या ये है कि भारतीय मछुआरा समुदाय के पास ज्यादा बड़े जहाज और उपकरण हैं. वे ज्यादा आसानी से ज्यादा से ज्यादा सीफूड इकट्ठा कर पाते थे, जबकि श्रीलंकाई समुदाय पीछे रह जाता. आर्थिक फायदा भी सरकारों को परेशान कर रहा है. 

कैसे तय होती हैं समुद्री सीमाएं

सारी कहानी के बीच एक टर्म बार-बार आता है कि भारतीय मछुआरे श्रीलंकन समुद्री सीमा पार कर रहे हैं, जिससे वे अरेस्ट हो जाते हैं. इस समुद्री सीमा पर कई नियम हैं ताकि देश अपनी हदों के भीतर ही रहें. ये नियम तय करते हैं कि कोई देश कितनी दूर तक के समंदर को अपना कह सकता है. 

यूनाइटेड नेशन्स कन्वेंशन ऑन लॉ ऑफ द सी (UNCLOS) के मुताबिक देश की जमीनी सीमा से लगभग 12 मील यानी लगभग 22 किलोमीटर तक की समुद्री दूरी उसकी अपनी है. इस सीमा पर कोई भी देश, उसके जहाज या लोग बिना इजाजत नहीं आ सकते. अगर कोई चेतावनी के बाद भी ऐसा करे तो उसे मार गिराया जा सकता है, या गिरफ्तार किया जा सकता है. इस सीमा के भीतर आने को देश में घुसपैठ की तरह देखा जाता है.

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इसके बाद के 2 सौ मील यानी लगभग पौने 4 सौ किलोमीटर का हिस्सा भी देश का अपना समुद्री टुकड़ा है. ये इकनॉमिक जोन है, जिसपर किसी तरह के व्यापार, मछली-पालन, खनन का फायदा उसी देश को मिलता है. मछुआरे यहां मछलियां पकड़ सकते हैं, लेकिन इस सीमा से बाहर जाने पर गिरफ्तारी का डर रहता है. यही वो इलाका है, जिसके लिए बवाल हो रहा है. 

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