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40 साल पहले कनाडा बन चुका था खालिस्तानियों का ठिकाना, ट्रूडो सीनियर पर क्यों लगा आतंकियों को बचाने का आरोप

कनाडा का खालिस्तान प्रेम रह-रहकर उबाल मारता रहता है. हाल में उसकी संसद में चरमपंथी हरदीप सिंह निज्जर की पहली डेथ एनिवर्सरी पर श्रद्धांजलि दी गई. ये वही निज्जर है, जिसे भारत ने आतंकी माना था. वैसे कनाडाई सरकार का खालिस्तानियों से रिश्ता नया नहीं. वर्तमान पीएम जस्टिन ट्रूडो के पिता पियरे ट्रूडो के समय से इसकी शुरुआत हो चुकी थी.

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कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रू़डो पर खालिस्तान समर्थन का आरोप लगता रहा. (Photo- AP)
कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रू़डो पर खालिस्तान समर्थन का आरोप लगता रहा. (Photo- AP)

कनाडा लगातार कुछ न कुछ ऐसा कर रहा है, जिससे भारत के साथ उसके अच्छे रिश्ते रखने की मंशा पर संदेह बढ़ जाए. कुछ समय पहले उसने अपने यहां मारे गए आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत का हाथ बता डाला था. भारत के विरोध के बाद भी वो बेसिर-पैर बातें करता रहा. अब कनाडाई संसद में इसी आतंकी की पहली बरसी पर दो मिनट का मौन रखा गया. ये एक तरह का इशारा है कि तुम्हारे यहां जिसे आतंकी माना जाएगा, हम उसे ही पालेंगे-पोसेंगे. उस देश की सरकार का खालिस्तानी एक्सट्रीमिस्ट से रिश्ता कई दशकों से चला आ रहा है. 

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पिता की राह पर वर्तमान कनाडाई पीएम

जब वर्तमान कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो खालिस्तानियों को सपोर्ट करते हैं, तो वे केवल अपने पिता पियरे ट्रूडो के नक्शे-कदम पर चल रहे होते हैं. दो बार देश के लीडर रह चुके पियरे ने जब दूसरी बार पद संभाला, जब भारत में खालिस्तानी आंदोलन सिर उठाने लगा था. भारत की सख्ती से डरे हुए चरमपंथी कनाडा भागने लगे. ये उनके लिए सेफ हेवन था, जहां पहले से ही उनकी कम्युनिटी राजनीति से लेकर स्थानीय तौर पर भी पैठ बना चुकी थी. 

एयर इंडिया विमान ब्लास्ट की योजना

पंजाब में आतंक मचाए हुए इन लोगों को रोकने के लिए सरकार कई कदम उठा रही थी. इसी दौर में ऑपरेशन ब्लू स्टार हुआ. अलगाववादी इसके बाद दल के दल कनाडा चले गए और वहीं से तैयार की एक खौफनाक हमले की योजना. कनिष्क प्लेन ब्लास्ट. विमान में सवाल 329 लोगों की मौत को ऑपरेशन ब्लू स्टार की जवाबी कार्रवाई की तरह देखा गया. हालांकि कनाडा सरकार ने पूरे मामले पर लीपापोती कर दी. 

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khalistan movement in canada pierre trudeau justin trudeau photo Wikipedia

23 जून 1985 को एयर इंडिया का विमान मांट्रियल से मुंबई आ रहा था, जिसे आयरलैंड के समुद्र के ऊपर 31 हजार फीट पर बम से उड़ा दिया गया. घटना में सभी 329 लोगों की मौत के बाद मामला तब गरमाया, जब इसके खालिस्तानी कनेक्शन की बात पता लगी. ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला लेने के लिए ही एक्सट्रीमिस्ट्स ने विमान में बम रखा था. भारत ने कई बार मामले की जांच करवानी चाही, लेकिन कनाडा ढील देता रहा. यहां तक कि भारत सरकार ने जब खुद जांच करनी चाही तो कनाडा ने कानूनी अड़चनें पैदा कीं.

कनाडा की इंटेलिजेंस पर लगे लापरवाही के आरोप

इकनॉमिक टाइम्स ने सीनियर कनाडाई पत्रकार टैरी मिलेव्स्की की किताब ब्लड फॉर ब्लड- फिफ्टी ईयर्स ऑफ ग्लोबल खालिस्तान प्रोजेक्ट के हवाले से बताया है कि परमार खुलेआम कहता था कि भारतीय विमान हवा में टपकेंगे. जब अलगाववादी भारत को नुकसान पहुंचाने की योजना बना रहे थे, तत्कालीन ट्रूडो सरकार आराम से बैठी हुई थी. पुलिस तक कथित तौर पर ये तक बात पहुंची कि एयर इंडिया प्लेन में ब्लास्ट हो सकता है. कनिष्क हमले के बाद कई सबूत मिले, जो जान-बूझकर या लापरवाही में गायब हो गए. 

ये जस्टिन ट्रूडो के पिता पियरे ट्रूडो का दौर था. 9/11 के बाद दुनिया का सबसे बड़ा आतंकी हमला कहलाते कनिष्क ब्लास्ट में केवल एक खालिस्तानी आतंकवादी तलविंदर सिंह परमार को कुछ समय के लिए सजा हुई, बाद में उसे भी आरोप मुक्त कर दिया गया.

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जांच कमेटी ने क्या कहा

विमान ब्लास्ट के बाद एक इंक्वायरी कमेटी बनी, जिसके हेड जस्टिस जॉन मेजर ने साल 2010 में अपनी रिपोर्ट दी. इंक्वायरी कमेटी ने सीधे कहा कि कनाडाई पुलिस और खुफिया विभाग को टैरर अटैक की जानकारी थी. न तो उन्होंने हमला रोका, न ही इसकी साफ जांच होने दी. खुद भारत सरकार की ओर से जस्टिस बीएन कृपाल की अध्‍यक्षता में बने जांच आयोग ने भी पाया कि ये टैरर अटैक ही था, जो ऑपरेशन ब्लू स्टार का बदला था. 

पहले भी अच्छे नहीं रहे रिश्ते

ट्रूडो सीनियर के ही समय में साल 1974 में भारत के न्यूक्लियर वेपन टेस्ट पर कनाडा ने नाराजगी जताते हुए न्यूक्लियर एनर्जी प्रोग्राम के लिए अपना सपोर्ट हटा लिया था. काफी बाद में पीएम मनमोहन सिंह के समय में दोनों देशों के बीच न्यूक्लियर कोऑपरेशन एग्रीमेंट वापस से साइन हुआ. भारत की आजादी और विभाजन के बाद भी कनाडा ने कश्मीर मसले पर पाकिस्तान का पक्ष लिया था. 

क्यों बन चुके सिख ताकतवर

1960 के दशक में वहां लिबरल पार्टी की सरकार आई. उसे मैनपावर की जरूरत थी, जो हिंदुस्तान जैसे देश से उसे कम कीमत पर मिल रहा था. उसने भारतीयों के लिए वीजा नियमों में काफी ढील दे दी, जिससे पंजाब से जहाज भर-भरकर सिख कनाडा पहुंचने लगे. ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद इनमें चरमपंथी भी शामिल हो गए, जो बाकियों की सोच पर भी असर डालने लगे. सिखों की बढ़ी हुई आबादी को देखते हुए ट्रूडो सीनियर ने उसे अपना वोट बैंक बना लिया. वो हर ऐसा काम करने से बचने लगे, जिससे अलगाववादी नाराज हों. जाहिर तौर पर ये कदम भारत के खिलाफ जाता था. 

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khalistan movement in canada pierre trudeau justin trudeau photo AP

वर्तमान सरकार भी कनाडाई सिखों के भरोसे

फिलहाल जो हालात हैं, वो कुछ ऐसे हैं कि सरकार और सिख संगठनों दोनों को ही एक-दूसरे की जरूरत है. साल 2019 में चुनाव के दौरान लिबरल पार्टी मेजोरिटी से 13 सीट पीछे थी. ये जस्टिन ट्रूडो की पार्टी थी. तब सरकार को न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी ने सपोर्ट दिया, जिसके लीडर हैं जगमीत सिंह धालीवाल. ये खालिस्तानी चरमपंथी है, जिसका वीजा साल 2013 में भारत ने रिजेक्ट कर दिया था.

सिखों की यही पार्टी ब्रिटिश कोलंबिया को रूल कर रही है. इससे साफ है कि ट्रूडो के पास एंटी-इंडिया आवाजों को नजरअंदाज करने के अलावा कोई विकल्प नहीं.

आने वाले चुनावों में भी करेंगे रूल

काफी बड़ा वोट बैंक कनाडा में भारतीय मूल के 24 लाख लोग हैं. इनमें से करीब साढे 7 लाख सिख ही हैं. इनकी ज्यादा जनसंख्या ग्रेटर टोरंटो, वैंकूवर, एडमोंटन, ब्रिटिश कोलंबिया और कैलगरी में है. चुनाव के दौरान ये हमेशा बड़े वोट बैंक की तरह देखे जाते हैं. यहां तक कि वहां के मेनिफेस्टो में इस कम्युनिटी की दिक्कतों पर जमकर बात होती है.

अक्टूबर 2025 में कनाडा में इलेक्शन्स हो सकते हैं. माना जा रहा है कि वर्तमान सरकार इसलिए भी वहां बसे खालिस्तानी अलगाववादियों को खुश करने के लिए तरह-तरह के काम कर रही है. निज्जर की याद में मौन रखना भी इसी का हिस्सा हो सकता है. 

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