हफ्तेभर पहले North Korea से आई एक तस्वीर चर्चा में रही. दुनिया के सबसे रहस्यमयी नेताओं में से एक Kim Jong मिसाइल लॉन्च के मौके पर एक बच्ची का हाथ थामे दिखे. ये पहला मौका था जब किम अपनी किसी संतान के साथ दिखे. तो क्या वो आगे चलकर देश की सुप्रीमो होने वाली है? चर्चाओं के बीच ये पता रहे कि नॉर्थ कोरिया उन देशों में है, जहां महिलाओं के हालात बहुत खराब हैं. यहां तक कि खुद किम पर अय्याशियों के लिए लड़कियों को रखने के आरोप लगते रहे.
विदेश में पढ़े किम जोंग से उम्मीदें
साल 2011 में जब पिता की मौत के बाद स्विटजरलैंड में पले-पढ़े किम जोंग सत्ता में आए, तब विदेशी मीडिया खुश हो गया. अनुमान लगने लगा कि नया लीडर नई सोच लेकर आएगा. दशकों से रहस्यों में लिपटा ये देश आम-खास सबके लिए खुल जाएगा. और सबसे जरूरी बात, महिलाओं के खिलाफ हिंसा कम हो जाएगी. हालांकि कुछ वक्त के भीतर ही ये अनुमान गलत साबित हो गया. नॉर्थ कोरिया में डिटेंशन कैंपों से निकलकर भागी कई युवतियों ने जो बातें कहीं, उसने दुनिया को एक बार फिर देश का डरावना चेहरा दिखाया.
मन बहलाव के लिए प्लेजर ग्रुप
किम ने भी अपने दादा और पिता के रास्ते पर चलते हुए सेक्स इंटरटेनर रखने की प्रथा चलाए रखी. वैसे तो दबी जबान से इसकी चर्चा काफी पहले से चलती रही. भागी हुई लड़कियों ने विदेशी, खासकर अमेरिकी और दक्षिण कोरियाई मीडिया को इस बाबत कई इंटरव्यू भी दिए, लेकिन इसपर सबसे पक्की जानकारी मिलती है, एक जापानी शेफ के जरिए. केंजी फुजिमोटो नाम का जापानी सुशी एक्टपर्ट साल 1988 से लेकर अगले 12 सालों तक किम जोंग के पिता के लिए खाना बनाता रहा. वहां से निकलने के बाद शेफ ने एक किताब में उन 12 सालों का कच्चा-चिट्ठा खोलकर रख दिया.
अलग उम्र की युवतियों का अलग है काम
'आई वाज किम जोंग इल्स कुक' नाम से छपी इस किताब में कई विवादित चीजों के अलावा सेक्स स्लेव्स का भी लंबा-चौड़ा जिक्र है. वे बताते हैं कि इन लड़कियों के ग्रुप को स्थानीय भाषा में किप्पुमजो कहा जाता था, यानी प्लेजर देने वालों का समूह. कथित तौर पर इसमें 2 हजार के करीब युवतियां होती हैं. लगभग 14 से 30 साल तक की इन लड़कियों के पास अलग-अलग डिपार्टमेंट होता. कुछ लड़कियां नाचती-गातीं, कुछ मालिश करने का काम करतीं, तो कुछ साथ चलने का काम. वक्त-जरूरत लीडर और बड़े अफसरों को खुश करने का काम भी इनका होता. खासकर पोलित ब्यूरो के सदस्यों के मनोरंजन का.
क्या है पोलित ब्यूरो की अहमियत?
यहां बता दें कि पोलित ब्यूरो लगभग हर साम्यवादी देश की पॉलिटिक्स का जरूरी हिस्सा है. ये एक तरह की कमेटी होती है, जिसमें सरकार की तरह ही सदस्य चुने जाते हैं. नॉर्थ कोरिया में ये सदस्य वही होते हैं जो लीडर के खास और भरोसेमंद हों. वैसे चीन, लाओस, क्यूबा और वियतनाम में भी पोलित ब्यूरो होता है. तो प्लेजर ग्रुप का काम इन्हीं खास लोगों का मन-बहलाव है.
इस तरह होता लड़कियों का चयन
नॉर्थ कोरिया में ये चलन किम के दादा और देश के संस्थापक किम इल संग ने शुरू किया. तब इसे किप्पम कहा करते, यानी कोरियाई भाषा में खुशी. इसके लिए चुनी जाने वाली लड़कियां एक तरह से जॉब में आ जातीं. इसमें सिलेक्शन का भी खास तरीका है. किम के खास लोग स्कूली बच्चियों पर नजर रखते. अगर कोई बच्ची उन्हें सुंदर, सेहतमंद लगे तो उसे उठाकर प्लेजर ग्रुप में डाल दिया जाता. यहां परिवार के इनकार के कोई मायने नहीं हैं क्योंकि नॉर्थ कोरिया में लीडर ही सबकुछ है.
स्किन की बीमारी न हो, ये शर्त
कहा तो ये भी जाता है कि ग्रुप में भर्ती से पहले लड़की का मेडिकल होता, जिसमें बाकी बीमारियों, खासकर स्किन से जुड़ी बीमारियों के अलावा ये तक देखा जाता कि लड़कियों यौन रूप से एक्टिव न हों.
इस किताब ने मचा दिया था तहलका
लगभग 5 दशक तक नॉर्थ कोरिया और दूसरे एशियाई देशों को कवर कर चुके पत्रकार-लेखक ब्रेडली के मार्टिन ने साल 2004 में एक किताब लिखी- अंडर द लविंग केयर ऑफ फादरली लीडर. इसमें इस देश में उनकी खुद की रिसर्च के अलावा उन लड़कियों के इंटरव्यू भी शामिल हैं, जो नब्बे के शुरुआती दशक में देश से निकल भागने में कामयाब हो सकीं. किताब पर भरोसा करें तो युवतियां प्लेजर ग्रुप का हिस्सा थीं और नर्क से बुरी जिंदगी बिता रही थीं. बाद में कई युवतियों को लंबे समय तक मानसिक-शारीरिक इलाज की जरूरत पड़ी. उनमें से कई यौन रोग से ग्रस्त थीं और छूटे हुए देश में कोई इलाज नहीं मिल सका था.
ताकत पाने के लिए लड़कियों का सहारा
अंडर द लविंग केयर में ये भी बताया गया कि 70 के दशक में हुए इस नेता ने साफ-साफ कहा कि चूंकि देश को बसाने-चलाने में उसे बहुत ताकत की जरूरत पड़ती है, लिहाजा उसका मन-बहलाव बाकियों की जिम्मेदारी है. इसी दौरान युवा और अविवाहित लड़कियों को लिया जाने लगा ताकि उनसे ताकत ली जा सके.
बाकायदा पूरी ट्रेनिंग दी जाती
सिलेक्शन के बाद लड़कियों को परिवार से दूर अलग इमारत में रखा जाता. यहां उन्हें राजसी लोगों से डील करने के तौर-तरीके सिखाए जाते. डांस की ट्रेनिंग मिलती. साथ में बातों से मनोरंजन कर सकने का हुनर भी सिखाया जाता. कमउम्र से लेकर सुंदर युवा लड़कियां लीडर के लिए रखी जातीं. बाकियों को पोलित ब्यूरो के लिए छोड़ दिया जाता. जैसे-जैसे लड़कियों की उम्र बढ़ती, या वे किसी बीमारी का शिकार हो जातीं, उन्हें इस काम से अलग करके घरेलू कामों के लिए तैनात कर दिया जाता.
फैमिली से हमेशा के लिए दूर कर दी जातीं
एक खास बात ये है कि एक बार प्लेजर ग्रुप का हिस्सा बन चुकी युवतियां कभी वापस मुख्यधारा में नहीं लौट पाती हैं क्योंकि इससे अफसरों का भेद या देश की गोपनीय बातें खुलने का डर रहता. किम उन संग की मौत के बाद किम जोंग इल ने भी प्लेजर ग्रुप को जारी रखा. अब मौजूदा नेता के बारे में भी यही बातें कही जातीं हैं. देश से भागकर आई एक युवती मी यांग ने मेरी क्लेयर मैगजीन को दिए लंबे-चौड़े इंटरव्यू में कई ऐसी बातें कहीं जो रहस्यों में छिपे इस देश की राजनीति का डरावना चेहरा दिखाती है.
बकौल मी, वे 15 साल की उम्र में स्कूल की एक क्लास से उठा ली गईं, और 2 सालों तक यौन गुलाम की तरह काम करती रहीं. मौका मिलते ही वे भागकर दक्षिण कोरिया चली आईं और वहां से ज्यादा सुरक्षित स्थान के लिए अमेरिका चली गईं.
साउथ कोरिया कर रहा भागे हुए लोगों को सपोर्ट
हर साल नॉर्थ कोरिया की पाबंदियों के बीच भी कुछ सैकड़ा लोग बचकर किसी दूसरे देश चले जाते हैं. इन्हें वहां की सरकार भगौड़ा या दलबदलू घोषित कर देती है और भागने वालों के परिवार को भी सजा मिलती है. दूसरी तरफ बचकर भागने और अपने यहां शरण लेने वालों के लिए दक्षिण कोरियाई सरकार ने सेफ्टी नियम तक बना दिया.
मिलती है सुरक्षा और काम
'स्पेशल लॉ ऑन प्रोटेक्शन ऑफ डिफेक्टर्स फॉर्म नॉर्थ' नाम से बने इस कानून के तहत ऐसे लोगों को सुरक्षा भी मिलती है और पैसे-रोजगार भी ताकि वे अच्छी जिंदगी बिता सकें. मिनिस्ट्री ऑफ यूनिफिकेशन ने साल 2021 में ही अलग-अलग चरण बनाए, जिसके तहत उन्हें नए देश में सैटल होने के लिए पैसे और यहां तक कि मुफ्त शिक्षा भी मिलने लगी. ये अलग बात है कि बीच के कुछ सालों में शरणार्थियों की संख्या बढ़ने के कारण दक्षिण कोरियाई सरकार परेशान भी रही.
वैसे बता दें कि दक्षिण कोरिया भागे हुए लोगों की इतनी मदद सिर्फ सोशल वेलफेयर के लिए नहीं कर रहा, बल्कि ये इसलिए भी है कि दोनों देश एक-दूसरे के दुश्मन हैं. शायद कहीं न कहीं दक्षिण कोरिया को उम्मीद है कि आगे चलकर इससे कोई बड़ा फायदा या भेद मिल सके.