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लद्दाख की जनता क्यों है नाराज? सोनम वांगचुक भूख हड़ताल पर... अनुच्छेद 371 की हो रही चर्चा

लद्दाख की जनता केंद्र सरकार से नाराज है. जम्मू-कश्मीर से 370 हटाने और लद्दाख को अलग केंद्र शासित प्रदेश बनाने के बाद अब लद्दाख के लोग विशेष राज्य का दर्जा मांग रहे हैं. इस बीच लद्दाख के सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक भी मांगों को नजरअंदाज करने पर 21 दिन की भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं.

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लद्दाख में लंबे समय से प्रदर्शन हो रहे हैं. (फाइल फोटो)
लद्दाख में लंबे समय से प्रदर्शन हो रहे हैं. (फाइल फोटो)

लद्दाख के लोगों में गुस्सा है. लद्दाख के प्रतिनिधि दो बार केंद्र सरकार के साथ दो मीटिंग कर चुके हैं, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला.

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लद्दाख के लोगों की पूर्ण राज्य और इसे संविधान के छठी अनुसूची में शामिल करने समेत कई मांगें हैं. बुधवार को लद्दाख में बंद बुलाया गया था. बताया जा रहा है कि लद्दाख के सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं. बुधवार से वो 21 दिन की भूख हड़ताल पर हैं.

मीडिया से बात करते हुए सोनम वांगचुक ने कहा, 'रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाए पर वचन न जाए... ये सरकार दावा करती है कि राम उनके आदर्श हैं. राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, जिन्होंने कभी वादा नहीं तोड़ा. इसलिए हम उम्मीद कर सकते हैं कि ये सरकार हमारे लोगों से किए वादों को नहीं तोड़ेगी.'

वांगचुक ने ये हड़ताल तब शुरू की, जब केंद्र के साथ दो बार की बातचीत बेनतीजा रही. सोमवार को ही अपेक्स बॉडी लेह (एबीएल) और कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) ने दिल्ली में गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी. मुलाकात के बाद एबीएल और केडीए के प्रतिनिधियों ने दावा किया कि दो बार बातचीत के बाद भी मांगों को लेकर कोई बात आगे नहीं बढ़ी.

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दूसरी ओर, गृह मंत्रालय ने बयान जारी कर बताया था कि लद्दाख को संवैधानिक सुरक्षा देने के तौर-तरीकों पर विचार किया जा रहा है. गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय की अगुवाई में एक हाईपावर कमिटी है, जो एबीएल और केडीए की मांगों पर विचार कर रही है.

क्या हैं मांगें?

एबीएल और केडीए की लद्दाख को लेकर कई मांगें हैं. सबसे बड़ी मांग है कि लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाए, ताकि उसे संवैधानिक सुरक्षा मिल सके. इसके साथ ही लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाए.

इसके पीछे तर्क है कि पहले अनुच्छेद 370 की वजह से लद्दाख को संवैधानिक सुरक्षा मिली थी, लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं है. 

इसके अलावा एबीएल और केडीए ने लद्दाख में पब्लिक सर्विस कमिशन (पीएससी) का गठन करने की मांग भी की है, ताकि स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के मौके पैदा हो सकें. पहले यहां के लोग जम्मू-कश्मीर पीएससी में अप्लाई करते थे.

लद्दाख में दो लोकसभा सीटों की मांग भी है. एक कारगिल और एक लेह में. अभी लद्दाख में सिर्फ एक ही लोकसभा सीट है. लद्दाख देश की सबसे बड़ी संसदीय सीट है. इसका कुल क्षेत्रफल 1.73 लाख वर्ग किलोमीटर से भी ज्यादा है.

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इन मांगों से क्या होगा?

लद्दाख के लोग और एक्टिविस्ट छठी अनुसूची लागू करने की मांग कर रहे हैं. छठी अनुसूची असम, त्रिपुरा जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में लागू है.

छठी अनुसूची में संविधान के अनुच्छेद 244(2) और अनुच्छेद 275(1) के तहत विशेष प्रावधान हैं. इसके चलते ही असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में जनजाति क्षेत्रों का प्रशासन है. छठी अनुसूची के तहत, जनजातीय क्षेत्रों में स्वायत्त जिले बनाने का प्रावधान है.

छठी अनुसूची स्वायत्त जिला परिषदों के गठन का प्रावधान करता है. जिला परिषदों में कुल 30 सदस्य होते हैं, जिनमें से 4 को राज्यपाल नियुक्त करते हैं. जिला परिषद की अनुमति से ही उद्योग लगा सकते हैं.

स्वायत्त जिला परिषद गांवों में भी एक परिषद और कोर्ट बना सकते हैं, जो अनुसूचित जनजाति से जुड़े विवादों का निपटारा करती हैं. अगर किसी अपराध में मौत या 5 साल से ज्यादा की जेल की सजा का प्रावधान है, तो राज्यपाल इन परिषदों को ऐसे मामलों में मुकदमा चलाने की अनुमति भी दे सकते हैं.

छठी अनुसूची इन स्वायत्त जिला परिषदों को लैंड रेवेन्यू जमा करने, टैक्स लगाने, कारोबार को रेगुलेट करने, खनिजों के खनन के लिए लाइसेंस या पट्टा जारी करने के साथ-साथ स्कूल, मार्केट और सड़कें बनाने का अधिकार भी देती है.

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लद्दाख में हाल ही में एक बड़ा प्रदर्शन हुआ था.

क्या अनुच्छेद 371 जैसा कुछ लागू होगा?

संविधान के भाग-21 में अनुच्छेद 369 से 392 तक को परिभाषित किया गया है. इस भाग को 'टेम्पररी, ट्रांजिशनल एंड स्पेशल प्रोविजन्स' का नाम दिया गया है.

जब संविधान लागू हुआ था, तब अनुच्छेद 371 नहीं था. बल्कि अलग-अलग समय में संशोधन के जरिए इन्हें जोड़ा गया. अनुच्छेद 371 के जरिए विशेष प्रावधान उन राज्यों के लिए किए गए थे, जो बाकी राज्यों के मुकाबले पिछड़े थे और उनका विकास सही तरीके से नहीं हो पाया था. 

साथ ही ये अनुच्छेद जनजातीय संस्कृति को संरक्षण देता है और स्थानीय लोगों को नौकरियों के अवसर देता है. संविधान में अनुच्छेद 371 के अलावा अनुच्छेद 371A से 371J तक अलग-अलग राज्यों के लिए बनाए गए हैं, जो इन राज्यों को कुछ खास बनाते हैं.

क्या होगा इससे?

अनुच्छेद 371 महाराष्ट्र, गुजरात और हिमाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में लागू होता है. इसके तहत, महाराष्ट्र और गुजरात के राज्यपाल को कुछ विशेष अधिकार दिए गए हैं. 

महाराष्ट्र के राज्यपाल विदर्भ और मराठवाड़ा के लिए और गुजरात के राज्यपाल सौराष्ट्र और कच्छ के लिए अलग-अलग विकास बोर्ड बना सकते हैं. 

वहीं, हिमाचल प्रदेश में लागू इस अनुच्छेद के तहत कोई बाहरी व्यक्ति यहां खेती की जमीन नहीं खरीद सकता.

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कई राज्यों में है ऐसी व्यवस्था

अनुच्छेद-371A| नागालैंड

इसे 1962 में जोड़ा गया था. अनुच्छेद 371-A के तहत, नागालैंड को तीन विशेष अधिकार दिए गए हैं. पहला- भारत का कोई भी कानून नगा लोगों के सांस्कृतिक और धार्मिक मामलों पर लागू नहीं होता है.

दूसरा- आपराधिक मामलों में नगा लोगों को राज्य के कानून के तहत सजा मिलती है. संसद के कानून और सुप्रीम कोर्ट का आदेश इनपर लागू नहीं होता.

तीसरा- नागालैंड में दूसरे राज्य का कोई भी व्यक्ति यहां जमीन नहीं खरीद सकता.

अनुच्छेद-371B| असम

ये 1969 में 22वें संशोधन के जरिए संविधान में जोड़ा गया था. ये असम पर लागू होता है. 

इसके तहत, राष्ट्रपति के पास अधिकार होता है कि वो असम विधानसभा की समितियों का गठन करें और इसमें राज्य के जनजातीय क्षेत्रों से चुने गए सदस्यों को शामिल कर सकते हैं.

अनुच्छेद-371C| मणिपुर

27वें संशोधन के जरिए अनुच्छेद-371C को लाया गया था. ये मणिपुर में लागू है. इसके तहत, राष्ट्रपति मणिपुर विधानसभा में एक समिति बना सकते हैं.

इस समिति में राज्य के पहाड़ी इलाकों से चुने गए सदस्यों को शामिल कर सकते हैं. समिति का काम राज्य के पहाड़ी इलाकों के बसे लोगों के हित में नीतियां बनाना होता है.

अनुच्छेद-371D| आंध्र प्रदेश और तेलंगाना

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1973 में इसे संविधान में जोड़ा गया था. ये आंध्र प्रदेश में लागू होता था. 2014 में आंध्र से अलग होकर तेलंगाना बना. अब ये दोनों राज्यों में लागू होता है.

इसके तहत, राष्ट्रपति को अधिकार दिया गया है कि वो राज्य सरकार को आदेश दे सकते हैं कि किस नौकरी में किस वर्ग के लोगों को रखा जा सकता है. इसी तरह शिक्षा के क्षेत्र में भी राज्य के लोगों को बराबर की हिस्सेदारी मिलती है.

इसके अलावा, आंध्र प्रदेश में 371E भी लागू होता है जो केंद्र सरकार को यहां सेंट्रल यूनिवर्सिटी का गठन करने का अधिकार देता है.

अनुच्छेद-371F| सिक्किम

इसे 1975 में 36वें संशोधन के जरिए जोड़ा गया था. इसमें कहा गया है कि सिक्किम के राज्यपाल के पास राज्य में शांति बनाए रखने और उसके लिए उपाय करने का अधिकार है.

इसके तहत, सिक्किम की खास पहचान और संस्कृति को संरक्षित रखे जाने का प्रावधान है. इसके अलावा, 1961 से पहले राज्य में आकर बसे लोगों को ही सिक्किम का नागरिक माना जाएगा और सरकारी नौकरियों में उन्हें प्राथमिकता दी जाएगी.

अनुच्छेद-371F के तहत, सिक्किम की पूरी जमीन पर यहां के लोगों का ही अधिकार है. और बाहरी लोग यहां जमीन नहीं खरीद सकते.

अनुच्छेद-371G| मिजोरम

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53वें संशोधन के जरिए 1986 में इसे जोड़ा गया था. ये मिजोरम पर लागू होता है. इसके तहत, मिजो लोगों के धार्मिक, सांस्कृति, प्रथागत कानूनों और परंपराओं को लेकर विधानसभा की सहमति के बगैर संसद कोई कानून नहीं बना सकती.

इसके अलावा, इसमें ये भी प्रावधान किया गया है कि यहां की जमीन और संसाधन किसी गैर-मिजो को नहीं मिल सकता. यानी जमीन का मालिकाना हक सिर्फ मिजो लोगों को ही दिया जा सकता है.

अनुच्छेद-371H| अरुणाचल प्रदेश

संविधान में 55वां संशोधन कर इस अनुच्छेद को जोड़ा गया था. ये अरुणाचल प्रदेश में लागू है. इसके तहत, राज्यपाल को कानून-व्यवस्था के लिए कुछ विशेष अधिकार दिए गए हैं. 

राज्यपाल चाहें तो मुख्यमंत्री का फैसला भी रद्द कर सकते हैं. इस तरह का अधिकार बाकी किसी दूसरे राज्यपाल के पास भी नहीं है. 

अनुच्छेद-371I| गोवा

ये गोवा में विधानसभा गठन से जुड़ा हुआ है. इसके तहत, गोवा विधानसभा में 30 से कम सदस्य नहीं होंगे.

अनुच्छेद-371J| कर्नाटक

2012 में 98वें संशोधन के जरिए इसे संविधान में जोड़ा गया था. ये कर्नाटक में लागू होता है. इसके तहत, हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र के छह जिलों को विशेष दर्जा दिया गया है. इसे अब कल्याण-कर्नाटक कहते हैं.

इन जिलों के लिए अलग विकास बोर्ड बनाने का प्रावधान अनुच्छेद-371J में किया गया है. साथ ही स्थानीय लोगों को नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण भी दिया जा सकता है.

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