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प्रयागराज का लारेब हाशमी केस... क्या है सेल्फ रेडिकलाइजेशन, आतंक का ये रूप क्यों सबसे खतरनाक?

उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में एक कंडक्टर पर जानलेवा हमला कर वीडियो जारी करने वाले लारेब हाशमी ने कई बड़े खुलासे किए. उसने माना कि वो लगातार जेहाद के वीडियो देख रहा था. यहां तक कि वीडियो देखकर ही उसने गला काटने की प्रैक्टिस की थी. ये सेल्फ रेडिकलाइजेशन है, जिसमें कुछ देख या सुन-पढ़कर ही लोग इतने कट्टर हो जाते हैं कि मरने-मारने पर तुल आते हैं.

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भड़काऊ वीडियो देखकर आतंकियों की नई श्रेणी तैयार हो रही है. सांकेतिक फोटो (Unsplash)
भड़काऊ वीडियो देखकर आतंकियों की नई श्रेणी तैयार हो रही है. सांकेतिक फोटो (Unsplash)

सबसे पहले ताजा मामले को समझते चलें. प्रयागराज के लारेब हाशमी ने बस कंडक्टर के साथ मामूली कहासुनी के बाद उसे चापड़ मारकर बुरी तरह से घायल कर दिया. इसके बाद उसने एक वीडियो भी जारी किया, जिसमें वो खुलकर अपने कट्टरपंथी विचार बता रहा है. गिरफ्तारी की कोशिश में लारेब के पांव में गोली लगी. फिलहाल उसका इलाज चल रहा है, जहां उसने अपने बारे में कई बातों का खुलासा करते हुए उन वीडियोज के बारे में भी बात की, जिससे उसे चरमपंथ की प्रेरणा मिली.

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यही सेल्फ रेडिकलाइजेशन है, जिसका सहारा दुनिया के सबसे खूंखार आतंकी संगठन माने जाते इस्लामिक स्टेट (ISIS) ने भी लिया था. वो न केवल इसके जरिए मिलिटेंट्स की भर्ती किया करता, बल्कि लोगों को बरगलाया भी करता था. यही वजह है कि यूरोप के एडवांस देशों से भी काफी सारे लोग आतंकी बन गए. बहुत से देश लगातार इसे लेकर अलर्ट मोड पर हैं ताकि सेल्फ रेडिकल होने को टाला जा सके. 

क्या है सेल्फ रेडिकलाइजेशन

इसमें टैररिस्ट सीधे-सीधे ट्रेनिंग नहीं देते हैं, बल्कि लोग उन्हें देख-सुनकर ही बहकावे में आ जाते हैं. सोशल मीडिया इसका सबसे बढ़िया मोड है. अलग कोई आतंकी या धार्मिक तौर पर कट्टर व्यक्ति लगातार कोई वीडियो या कंटेट डालता रहे, और कोई लगातार उसे देखता या सुनता रहे तो हो सकता है कि कुछ समय बाद वो भी ऐसी ही सोच रखने लगे. वो एक खास तरह की विचारधारा पर इतना यकीन करने लगता है कि उसके लिए किसी भी हद तक जा सकता है. 

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क्यों ज्यादा खतरनाक माना जा रहा

आतंकी जब सीधे-सीधे मिलते और ट्रेनिंग देते हैं तो उन्हें ट्रैक करना आसान होता है. एक भी पकड़ाई में आया तो दूसरों का पता निकाला जा सकता है. वहीं सेल्फ रेडिकलाइज्ड लोग ज्यादा खतरनाक होते हैं. ये आतंकियों का मोहरा बनकर काम करते हैं. ये ग्रुप में भी हो सकते हैं और अलग-अलग भी. ऐसे लोग सोसायटी के बीच होते हैं और आमतौर पर पहचाने नहीं जा पाते. अगर इनके भीतर कोई आतंकी मंसूबा पल रहा हो तो पता लगा पाना आसान नहीं. 

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बस कंडक्टर पर हमला करने वाला लारेब हाशमी.

कौन आ सकता है बहकावे में

कई बार कुछ खास बातें किसी को सेल्फ रेडिकलाइजेशन की तरफ खींच सकती हैं- 
- अगर किसी के पास नौकरी न हो
- कोई विदेशी धरती पर भेदभाव झेल रहा हो
- खुद को दूसरों से अलग-थलग मानना 
- पूर्व में कोई एक्सट्रीम घटना झेल चुकना
- किशोर उम्र के लोग भी सॉफ्ट टारगेट
- अकेले और नशे की गिरफ्त में आ चुके लोग

कैसे बहकाया जाता है

सीधे-सादे व्यक्ति के आतंकी बनने के पीछे आतंक की पूरी फैक्टरी काम करती है. जैसे ISIS की ही बात लें तो वो सबसे पहला आतंकी गुट है, जिसने दुनियाभर के लोगों को कट्टरता से जोड़ा. इसके लिए बाकायदा उसके पास मीडिया विंग थी. अल-हयात मीडिया सेंटर नाम की ये शाखा लगातार अपनी सोच, तौर-तरीकों के वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर डालती. उसने फेसबुक से लेकर ट्विटर और इंस्टाग्राम तक पर अपना जाल बिछा रखा था. 

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साइकोलॉजिकल वॉर चलता रहा 

सीरिया के राका शहर में मीडिया सेंटर था. यहीं पर अल-हयात था, जो ISIS के लिए फंड भी जुटाता और लोगों की भर्तियां भी करता. इसके लिए खास लोग काम करते थे, जो जानते थे कि लोगों को कैसे फंसाया जा सकता है. ये एक तरह से साइकोलॉजिकल वॉर करते और लोगों का मन बदलकर उन्हें अपने संगठन में शामिल होने के लिए मना लेते थे.

laraib hashmi uttar pradesh viral video what is self radicalisation in world terrorism photo Unsplash

क्यों आ जाते हैं लोग उकसावे में

पहले माना जाता था कि कम पढ़े-लिखे या गरीब लोग ही जल्दी बहक जाते हैं, लेकिन ऐसा नहीं है. अक्सर बहुत पढ़े-लिखे लोग धार्मिक कट्टरता का शिकार होते दिखे. उन्हें बहकावे वाले लोग ये दिखाते हैं कि इससे उनकी जिंदगी में एक बड़ा मकसद आ गया है. ब्रदरहुड का झांसा देते हुए उन्हें अपनी विचारधारा से जोड़ा जाता है, और फिर आतंकी टारगेट दिया जाता है. 

आतंक की नई श्रेणी बन रही

कट्टरपंथी भाषण या कंटेट देख-सुनकर बहुत से लोग सीधे-सीधे आतंकियों से नहीं भी मिलें तो वे व्यक्तिगत तौर पर टैरर एक्टिविटी करने लगते हैं. वे हर उस आदमी को दुश्मन मानते हैं, जो उससे अलग सोच रखे. हाशमी का केस भी कुछ ऐसा ही है. उसने कथित तौर पर अलग धार्मिक राय के चलते कंडक्टर पर जानलेवा हमला कर दिया. 

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ग्लोबल टैररिज्म इंडेक्ट इसे लोन वोल्फ टैररिज्म कहता है. इसके मुताबिक, ऐसे लोग लगातार बढ़ रहे हैं जो कट्टरता के चलते आतंकवादी की तरह व्यवहार करते हैं. इसका डेटा कहता है कि 1970 से लेकर अब तक लोन वोल्फ टैररिज्म में 70% की बढ़त हुई है.  

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गोरखनाथ मंदिर पर हमला करने वाला अहमद मुर्तजा अब्बासी.

किस तरह बनते थे कट्टरपंथी? 

ISIS के अल हयात मीडिया सेंटर बहुत ही शानदार क्वालिटी के वीडियो-ऑडियो बनाता. ये इस तरह से डिजाइन होते थे कि लोगों को धक्का पहुंचाएं या उन्हें उकसाएं. वीडियो में चरमपंथी समूह की लड़कियां वेस्ट के हाथों प्रताड़ित दिखाई जातीं. वे बतातीं कि कैसे उनके साथ गलत हुआ और किस तरह ISIS ने उनकी मदद की.

-अक्सर युवा एड्रेनिल रश की तलाश में होते हैं. आतंकी समूह उन्हें इसके लिए उकसाता. वो बताता कि उनसे जुड़ने पर लोग इंसाफ की लड़ाई लड़ सकेंगे.

भारत में लोन वोल्फ टैररिज्म का मामला

पिछले साल अप्रैल में अहमद मुर्तजा अब्बासी नाम के IITian ने गोरखनाथ मंदिर पर हमला किया था. मुर्तजा ने धार्मिक नारा लगाते हुए सुरक्षा कर रहे जवानों पर भी हमला किया था. तलाशी में पाया गया कि वो विदेशी सिम कार्ड के जरिए प्रतिबंधित वेबसाइटों पर जाकर जेहादी वीडियो देखा करता था. इसके अलावा रुटीन में भी इस तरह के आतंक के छुटपुट रूप दिख रहे हैं. सोशल मीडिया पर चरमंपथ खुलकर दिखने लगा है, जिसमें लोग अपनी विचारधारा से जुड़े कंटेंट डालते और विरोध पर लोगों को धमकियां देते हैं.

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