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सौ साल पहले भी 'धार्मिक भावनाओं' पर मचा था बवाल, विवादित किताब के प्रकाशक की हत्या के बाद आया कानून, क्या है इसमें, कितनी सजा?

बहराइच में प्रतिमा विसर्जन जुलूस के दौरान हुई पत्थरबाजी और गोलीकांड की आग ठंडी होने का नाम नहीं ले रही. राम गोपाल मिश्रा नाम के युवक की मौत के बीच दोनों ही समुदाय आपस में धार्मिक भावनाएं आहत होने का आरोप लगा रहे हैं. भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत रिलीजियस सेंटिमेंट्स से खिलवाड़ पर कड़ी सजा का प्रावधान है.

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धार्मिक भावनाएं आहत होने पर कानून में कई सजाएं हैं. (Photo- Reuters)
धार्मिक भावनाएं आहत होने पर कानून में कई सजाएं हैं. (Photo- Reuters)

उत्तर प्रदेश के बहराइच में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन के दौरान हुई हिंसा बढ़ती ही जा रही है. रविवार शाम विसर्जन के लिए निकले जुलूस के दौरान एक-दूसरे पर धार्मिक भावनाएं उकसाने का आरोप लगाते हुए दो समुदाय भिड़ गए, जिसमें राम गोपाल मिश्रा नाम के युवक की मौत हो गई. इसके बाद से मामला गरमाया हुआ है. साथ ही सोशल मीडिया पर बहस भी हो रही है कि भावनाएं आहत होने पर कानून में क्या सजा है. 

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भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के पहले हमारे यहां भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी हुआ करती थी. इसमें भी धार्मिक भावनाएं आहत करने पर सजा समेत जुर्माने का प्रावधान रहा. नया क्रिमिनल लॉ लागू होने पर भी इसे जस का तस लिया गया. ये कहता है कि अगर कोई शख्स, देश के किसी भी नागरिक या एक वर्ग विशेष की रिलीजियस फीलिंग्स को चोट पहुंचाने के मकसद से कुछ करता है, या कोई भी ऐसा एक्ट करता है, जिससे एक समुदाय के धार्मिक यकीन पर चोट पहुंचे तो उसे दोषी माना जाता है. 

क्या-क्या शामिल है रिलीजियस फीलिंग्स हर्ट करने में

ये अपमान, या आहत करना सिर्फ बोलकर नहीं, बल्कि संकेतों, लिखित शब्दों, तस्वीरों या फिल्म से भी हो सकता है. इस धारा के लागू होने के लिए जरूरी है कि किसी वर्ग की धार्मिक आस्था का अपमान जानबूझकर (डेलिबरेट) और खराब मंशा (मैलिशियस इंटेंशन) से किया जाए. अगर किसी से अनजाने में ऐसा हो, या कोई लापरवाही हो जाए तो इसके तहत सजा नहीं दी जा सकती.

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law on hurting the religious feelings india bns amid bahraich communal violence photo PTI

गैर-इरादतन हो तब क्या होता है

कई बार लोग बेवजह भी ऐसे आरोप लगाते हैं, जिसे कोर्ट खारिज कर देती है. सितंबर 2016 में, गुजरात हाई कोर्ट के पास ऐसा ही एक मामला आया था, जिसमें पीआईएल दायर करके पोकेमॉन गो नाम के गेम पर पाबंदी लगाने की मांग की गई. आरोप था कि गेम में धार्मिक स्थानों पर अंडे दिखाए गए हैं, जिससे धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंच सकती है. अदालत ने खेल के डेवलपर्स को समझाइश तो दी लेकिन गेम पर बैन लगाने से साफ इनकार कर दिया. उसने माना कि ये जानबूझकर नहीं किया गया है और न ही इससे कुछ फर्क पड़ेगा. 

एक किताब ने मचाया था बवाल

हालांकि हमेशा मामला इतना सीधा-सपाट नहीं होता. कई बार रिलीजियस सेंटिमेंट्स हर्ट करने पर काफी पेचीदा केस भी आते हैं. आज से लगभग 100 साल पहले 1927 में एक प्रकाशक पर आरोप लगा कि उसने समुदाय विशेष की भावनाओं को चोट पहुंचाई है. दरअसल प्रकाशक ने प्रॉफेट मुहम्मद की निजी जिंदगी पर एक किताब की शक्ल में कुछ टिप्पणियां छापी थीं. उनका तर्क था कि उससे पहले दूसरे समुदाय ने उनकी देवी पर एक किताब लिखी थी, जिसमें गलत बातें कही गई थीं.

बहरहाल, प्रकाशक पर केस फाइल हुआ और आरोप लगा कि उन्होंने दो समूहों के बीच विद्वेष भड़काने की कोशिश की है. बाद में तत्कालीन पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने प्रकाशक को सभी आरोपों से बरी कर दिया, हालांकि इसके तुरंत बाद ही उनकी हत्या कर दी गई. इस बीच वो किताब भी बैन हो चुकी थी, जो भारत समेत पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी बैन है. 

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पब्लिशर के मर्डर के बाद आया कानून

प्रकाशक की हत्या के बाद भी दूसरे समुदाय का आक्रोश ठंडा नहीं हो सका था. इसी दौरान तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने अल्पसंख्यकों की मांग को देखते हुए कानून में धारा 295ए को जोड़ा. धार्मिक भावनाओं को आहत करना इसी के तहत आता है. इसे अक्सर आईपीसी की एक और धारा 153ए के साथ लागू किया जाने लगा, जो दो समुदायों के बीच नफरत या कड़वाहट फैलाने से जुड़ी हुई है. अब आईपीसी की जगह  नया क्रिमिनल लॉ बीएनएस आ चुका. 

law on hurting the religious feelings india bns amid bahraich communal violence photo India Today

रिलीजियस सेंटिमेंट्स हर्ट करने को लेकर क्या इसमें कोई बदलाव है, या वही सजा दी जाती है, इसे लेकर हमने दिल्ली हाई कोर्ट के वकील मनीष भदौरिया से बात की. 

इसमें धारा 295 के अलावा कई और धाराएं हैं, जो कृत्य की गंभीरता के मुताबिक सजा और पेनल्टी तय करती हैं. 

- सेक्शन 298 कहता है कि अगर कोई शख्य या समूह, दूसरे वर्ग के अपमान के लिए उसके धार्मिक स्थल को गंदा करने या तोड़फोड़ करने की कोशिश करता है तो उसपर दो साल की सजा और जुर्माना दोनों का प्रावधान है. 

- धारा 300 के तहत अगर कोई व्यक्ति या समूह, किसी अन्य समुदाय के धार्मिक उत्सव को डिस्टर्ब करने की कोशिश करे तो उसे एक साल की सजा और जुर्माना दोनों हो सकते हैं. 

- सेक्शन 302 के तहत किसी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के मकसद से बोले गए शब्द, संकेत या कोई खास ध्वनि निकाली जाए तो एक साल की कैद हो सकती है. 

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कई और धाराएं भी लग सकती हैं

बात इन इक्का-दुक्का धाराओं के साथ खत्म नहीं हो जाती. अगर किसी समूह ने ऐसा किया या करने की कोशिश की तो उसके जो नतीजे होते हैं, उनके आधार पर भी कई धाराएं लग सकती हैं. जैसे अगर पांच या इससे ज्यादा लोग हों तो बलवे की धारा लगेगी. इसमें 147 और 148 यानी दंगा और खतरनाक हथियारों के साथ दंगे करने की कोशिश शामिल हैं. एक्ट के दौरान तोड़फोड़ हुई, या हत्या हुई तो, या फिर किसी घर या बस्ती में घुसकर मारपीट की कोशिश की, तब- इन सारे मामलों में कई धाराएं आ जाती हैं, जो धार्मिक भावनाओं को आहत करने के मामले के साथ जुड़ती हैं. 

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