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उम्रकैद की सजा 14 या 20 साल की होती है? संजय रॉय केस में कोर्ट को क्यों कहना पड़ा जिंदगीभर की जेल, जानिए कानून

कोलकाता में आरजी कर मेडिकल कॉलेज में महिला डॉक्टर से रेप और मर्डर केस में कोर्ट ने दोषी को मरते दम तक कैद की सजा सुनाई है. कोर्ट ने अपराध को दुर्लभ से दुर्लभतम श्रेणी में ना मानते हुए दोषी को मृत्युदंड नहीं दिया है. पश्चिम बंगाल सरकार ने फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी है. ममता सरकार का कहना है कि दोषी को मृत्युदंड दिया जाना चाहिए.

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पश्चिम बंगाल की सेशन कोर्ट ने कोलकाता केस में दोषी संजय रॉय को आखिरी सांस तक आजीवन कारावास की सजा सुनाई है.
पश्चिम बंगाल की सेशन कोर्ट ने कोलकाता केस में दोषी संजय रॉय को आखिरी सांस तक आजीवन कारावास की सजा सुनाई है.

कोलकाता का आरजी कर मेडिकल कॉलेज कांड चर्चा में है. ट्रेनी महिला डॉक्टर के साथ रेप और हत्या मामले में सेशन कोर्ट ने दो दिन पहले ही दोषी संजय रॉय को जिंदगी भर की जेल (उम्रकैद) की सजा सुनाई है और 50 हजार का जुर्माना लगाया है. हालांकि, ममता सरकार और पीड़िता के परिवार ने दोषी को मृत्युदंड की सजा नहीं मिलने पर निराशा जाहिर की और हाईकोर्ट में फैसले को चुनौती दी है.

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इस बीच, सवाल उठाया जा रहा है कि दोषी को उम्रकैद की सजा मिली है और वो 20 या 14 साल में बाहर आ सकता है. एक वर्ग यह भी समझने की कोशिश कर रहा है कि उम्रकैद की सजा में 14 या 20 साल की कारावास निर्धारित होती है या अंतिम सांस तक जेल में बंद रहना होता है. जानिए सजा पर कानून क्या कहता है?

ममता सरकार ने कहा, दोषी को फांसी दी जाए

दरअसल, दोषी संजय रॉय की सजा पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने बयान दिया था और कहा था, फांसी की सजा की मांग के लिए सरकार हाईकोर्ट जाएगी. ममता का कहना था कि मैं हैरान हूं कि फैसले में कहा गया है कि यह दुर्लभतम मामला नहीं है. जबकि यह दुर्लभतम मामला है, जिसके लिए मृत्युदंड की जरूरत है. उन्होंने आगे कहा, आप (कोर्ट) उसे आजीवन कारावास दे रहे हैं? वो (दोषी) पैरोल हासिल कर सकता है और बाहर आ सकता है.

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कोर्ट ने नहीं माना दुर्लभ से दुर्लभतम श्रेणी का अपराध

इससे पहले सियालदल की कोर्ट ने स्पष्ट कहा, दोषी को जीवन पर्यंत जेल में रहना होगा. कोर्ट ने राज्य सरकार को पीड़िता के परिवार को 17 लाख रुपए का मुआवजा देने का निर्देश दिया. लेकिन पीड़िता के पिता ने मुआवजा लेने से इनकार कर दिया. इस मामले की जांच सीबीआई कर रही थी. कोर्ट ने अपराध को दुर्लभ से दुर्लभतम श्रेणी ना मानते हुए मृत्युदंड नहीं दिया.

जानिए क्या कहता है कानून?

कोलकाता कांड पिछले साल 9 अगस्त 2024 को हुआ था. उस समय देश में तीनों नए कानून लागू हो गए थे. इस मामले में शुरुआत में पहले पुलिस ने जांच की. उसके बाद सीबीआई ने पूरे केस को अपने हाथ में ले लिया था. 164 दिन बाद सियालदह कोर्ट का फैसला आया है. कोर्ट ने संजय रॉय को भारतीय न्याय संहिता की धारा 64, 66 और 103 (1) के तहत के दोषी ठहराया और सजा सुनाई. इन धाराओं के तहत अपराधी को अधिकतम फांसी या उम्रैकद की सजा का प्रावधान है.

किन धाराओं में पाया गया दोषी?

BNS की धारा 64 में रेप के लिए सजा का प्रावधान है. धारा 66 यौन अपराधों से जुड़ी है. अगर रेप के दौरान किसी महिला की मौत हो जाती है या फिर वो कोमा जैसी अवस्था में पहुंच जाती है तो ऐसे मामलों में दोषी को कम से 20 साल की सजा होगी, जिसे उम्रकैद तक बढ़ाया जा सकेगा. इस अपराध में भी उम्रकैद की सजा होने पर दोषी जिंदा नहीं बाहर आ सकेगा. धारा 103 (1) हत्या के अपराध को परिभाषित करती है. जो कोई भी व्यक्ति हत्या करेगा, उसे मौत या आजीवन कारावास की सजा दी जाएगी और जुर्माना भी देना होगा. 

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नए क्रिमिनल लॉ में रेप और गैंगरेप से जुड़े अपराधों में सजा सख्त की गई है. कुछ अपराध ऐसे हैं, जिनमें अगर उम्रकैद की सजा सुनाई जाती है तो फिर दोषी जेल से जिंदा बाहर नहीं आ सकेगा.

क्या उम्रकैद की सजा 14 साल की होती है या जीवन भर?

अक्सर लोगों के मन में एक धारणा रहती है कि उम्रकैद की सजा मिली है तो कम से कम 14 साल या ज्यादा से ज्यादा 20 साल में दोषी को रिहा कर दिया जाएगा और वो बाहर निकल आएगा. हालांकि, यह पूरा सच नहीं है. इसके पीछे की वजह और सच्चाई कुछ और है.

दरअसल, संविधान में यह कहीं नहीं लिखा कि उम्रकैद की सजा 14 या 18-20 साल की होगी. किसी भी केस में जिन धाराओं में आरोप साबित होते हैं, कोर्ट उसी अनुसार सजा निर्धारित करती है. यानी कोर्ट ही तय करती है कि अपराधी को उम्रकैद या मृत्युदंड या फिर कोई और सजा मिले.

उम्रकैद में आखिरी सांस तक जेल में बितानी होगी

साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट अपने एक फैसले में यह स्पष्ट कर चुका है कि आजीवन कारावास का मतलब जीवनभर के लिए जेल है और इससे ज्यादा कुछ नहीं. कोर्ट ने इसकी और ज्यादा व्याख्या करने से इनकार कर दिया था. कोर्ट का कहना था कि उम्रकैद का मतलब उम्रभर के लिए जेल है. यानी आखिरी सांस तक जेल में बितानी होगी. 

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राज्य सरकार के पास सजा कम करने का अधिकार

हालांकि, दूसरा पहलू यह है कि कोर्ट का काम सिर्फ सजा सुनाना है और उस सजा को एग्जीक्यूट करने का काम राज्य सरकार का है. राज्य सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि वो कैदियों की सजा को कम कर सकती है या सस्पेंड कर सकती है. राज्य सरकार के पास सजा कम करने की अपील करने की पूरी छूट होती है. चूंकि, सजायाफ्ता कैदी राज्य सरकार की निगरानी (जेल) में होता है, इसलिए राज्य सरकार को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है. 

संविधान में यह भी तय किया गया है कि राज्य सरकार ये सुनिश्चित करे कि उम्रकैद की सजा पाने वाला अपराधी कम से कम 14 साल जेल में गुजारे. यानी उम्रकैद की सजा 14 साल से कम नहीं हो सकती है और अपराधी 14 साल से पहले रिहा ना हो.

सेंटेंस रिव्यू कमेटी करती है सिफारिश

अगर राज्य सरकार किसी कैदी की सजा कम करने की अपील करती है तो कोर्ट उस पर सुनवाई करती है. राज्य सरकार 14 साल बाद सजायाफ्ता कैदी के चाल-चलन, बीमारी, पारिवारिक जरूरतों या अन्य वाजिब वजहों को आधार बनाकर रिहाई की प्रक्रिया आगे बढ़ा सकती है और 14 साल के बाद कभी भी रिहाई कर सकती है. सरकार की तरफ से ऐसे केस को पहले सेंटेंस रिव्यू कमेटी के पास भेजा जाता है. कमेटी उसकी सजा को कम करने की सिफारिश कर सकती है. 

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हालांकि, यह कहना गलत होगा कि उम्रकैद या आजीवन कारावास की सजा सिर्फ 14 साल के लिए ही होती है. सभी केसों में उम्रकैद की सजा 14 साल के लिए नहीं हो सकती है. उम्रकैद का अर्थ ही उम्रभर के लिए सजा होती है.

नए कानून में क्या प्रावधान?

भारतीय न्याय संहिता में जिन अपराधों में जिंदा रहने तक उम्रकैद की सजा काटने का प्रावधान है, उनमें कैदी की सजा को माफ नहीं किया जा सकेगा.

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