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क्या है ड्रीम अमेरिका, जिसके लिए जान जोखिम में डालते रहे भारतीय, US पहुंच किस हाल में रहते हैं?

अमेरिका में रहते भारतीयों की बात करें तो दो तस्वीरें बनेंगी. एक चमचमाती तस्वीर, जिसमें इंडियन्स का नाम सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे इमिग्रेंट्स में आता है. उनकी कमाई भी आम अमेरिकियों से लगभग दोगुनी है. वहीं तस्वीर के दूसरे हिस्से में वे भारतीय हैं, जो चोरी-चुपके यूएस पहुंचे. न उनके पास दस्तावेज हैं, न ढंग की जिंदगी. अब नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप उन्हें देश से बाहर का रास्ता दिखा सकते हैं.

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अमेरिका में अनडॉक्युमेंटेड भारतीयों की संख्या काफी ज्यादा है. (Photo- Unsplash)
अमेरिका में अनडॉक्युमेंटेड भारतीयों की संख्या काफी ज्यादा है. (Photo- Unsplash)

मेक्सिको और अल-सल्वाडोर के बाद अमेरिका में सबसे ज्यादा भारतीय अवैध रूप से रह रहे हैं. प्यू रिसर्च सेंटर ने साल 2019 से 2022 का का डेटा देते हुए बताया कि देश में लगभग सवा सात लाख इंडियन्स बिना दस्तावेज के हैं. वे बेहद मुश्किल हालातों में रहते और तय कीमत से आधी पर नौकरियां करते हैं ताकि एक रोज ड्रीम अमेरिका को पूरा जी सकें. हालांकि अब अंदेशा जताया जा रहा है कि घुसपैठियों को बाहर करने की अपनी मुहिम के तहत राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इन्हें वापस लौटा सकते हैं. 

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अमेरिका में अनडॉक्युमेंटेड भारतीयों की संख्या लगभग 7,25,000 है. ये वे लोग हैं जो कई-कई सालों से वहां रह रहे हैं ताकि एक दिन नागरिकता मिल जाए, या फिर उनके बच्चे अमेरिकी बन जाएं. इससे पहले भी कई अमेरिकी लीडर घुसपैठ के खिलाफ बोलते रहे, लेकिन डिपोर्टेशन का खतरा कभी भी इतना बड़ा नहीं था, जितना अब है.

ट्रंप प्रशासन ने आते ही गुणा-गणित शुरू कर दिया. निकाले जा सकने वाले घुसपैठियों में भारतीय भी हैं. यूएस इमिग्रेशन एंड कस्टम इन्फोर्समेंट (ICE) के अनुसार, सबसे पहली कतार में लगभग 18 हजार ऐसे इंडियन्स वापस भेजे जा सकते हैं, जिनके पास दस्तावेज नहीं. 

बगैर डॉक्युमेंट कैसे पहुंचे अमेरिका

ड्रीम अमेरिका वो गुड़ है, जिसे चखने के लिए दुनियाभर के लोग उमड़ते रहे. सबको लगता है कि ये देश संभावनाओं से भरा हुआ है, जहां बिना किसी भेदभाव सबको रहने-खाने और आगे बढ़ने का मौका मिलेगा. इसी अमेरिकन ड्रीम को जीने के लिए लोग कई तरीके अपनाते रहे. जो वैध ढंग से नहीं पहुंच पाते, वे घुसपैठ करते हैं. इसके लिए डंकी रूट अपनाई जाती है, यानी बचते-बचाते, छिपते-छिपाते यूएस पहुंचना.

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life of undocumented immigrants in america amid donald trump mass deportation and threat on indians photo - Reuters

रास्ते में कितनी तरह के खतरे

कुछ घंटों का रास्ता कई-कई हफ्तों या महीनों में पूरा होता है. बहुत से लोग खतरनाक रास्तों में ही खप जाते हैं. जैसे, दो साल पहले गुजरात के एक परिवार की कनाडा-अमेरिका सीमा पार करते समय मौत हो गई थी. 

बहुतों को वहां पहुंचाने का वादा कर चुके एजेंट ही धोखा दे देते हैं. जैसे-तैसे अमेरिकी सीमा पर पहुंचे तो अक्सर ये डर भी रहता है कि बॉर्डर गार्ड्स न पकड़ लें. ऐसा हो तो डिपोर्टेशन का डर रहता है. ये तो हुआ एक पहलू, लेकिन वहां पहुंचने और बाकियों के बीच घुलमिल जाने के बाद भी खतरा खत्म नहीं होता, बल्कि नई जंग शुरू होती है, जो ज्यादा जोखिमभरी है. 

ये होता है अवैध तौर पर रहने वालों के साथ

दस्तावेज न होने की वजह से उन्हें सीधे काम नहीं मिल पाता, बल्कि एजेंट्स ही उन्हें जॉब दिलवाते हैं. आमतौर पर ये काम उनकी स्किल से काफी कम होते हैं. बात यहीं नहीं रुकती. उन्हें तय पगार से कम कीमत पर रखा जाता है. चूंकि ऐसे लोगों को हर वक्त भेद खुलने का डर रहता है, लिहाजा वे खास विरोध भी नहीं कर पाते. ज्यादातर अनडॉक्युमेंटेड लोग कंस्ट्रक्शन के काम में जाते हैं, जहां खतरे होते हैं. 

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काम के अलावा इनकी सोशल लाइफ भी खास अच्छी नहीं रहती. अवैध ढंग से अमेरिकी पहुंची भारतीय आबादी अक्सर उन्हीं राज्यों में जाती है, जहां पहले से इंडियन्स बसे हुए हैं. उन्हें उम्मीद रहती है कि वे आपस में बोलचाल कर सकेंगे, लेकिन ऐसा होता नहीं. चूंकि दूसरा तबका वैध ढंग से बसा हुआ है, इसलिए लाइन के दूसरी तरफ बसे लोगों से बचता है. ऐसे में चुपके से आए लोग अलग-थलग ही रह जाते हैं.

पड़ोसियों से भी नहीं करते बात

वॉशिंगटन में सामाजिक मुद्दों पर काम करने वाले थिंक टैंक 'सेंटर फॉर अमेरिकन प्रोग्रेस' के मुताबिक, केवल भारतीय ही नहीं, किसी भी देश से अवैध रूप से अमेरिका आए लोग आस-पड़ोस से बचते हैं. यहां तक कि वे सरकारी अधिकारियों से भी दूर रहते हैं ताकि उनका भेद बना रहे. यही वजह है कि उन्हें सोशल पॉलिसीज का भी खास फायदा नहीं मिल पाता, जैसे चिकित्सा या काम में मदद. 

life of undocumented immigrants in america amid donald trump mass deportation and threat on indians photo Getty Images

किसी भी क्राइम पर धर लिए जाते हैं

यहूदियों की सेफ्टी पर काम करने वाला संगठन सिक्योर कम्युनिटी नेटवर्क कई बार दूसरे देश से आए लोगों पर भी काम करता है. उसके मुताबिक, छुटपुट क्राइम पर अनचाहे ही पुलिस अधिकारियों का ध्यान ऐसे लोगों पर चला जाता है, जो बाहरी लगते हैं. ऐसे लोग अक्सर पकड़ लिए जाते हैं और फिर उन्हें कानूनी मदद भी उस तरह से नहीं मिल पाती, जैसे बाकियों या वैध लोगों को मिलती है. 

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यहां तक कि खुद क्राइम का शिकार होने पर वे अपने लिए आवाज नहीं उठा पाते. सेंटर फॉर अमेरिकन प्रोग्रेस के अनुसार, ये तबका अपने खिलाफ जुर्म पर भी ज्यादातर चुप रह जाता है, या फिर अपने किसी ऐसे परिचित को उसे रिपोर्ट करने को कहता है, जो वैध तरीके से अमेरिका में रहता हो. कई बार ये रुटीन कामों के लिए भी परिचितों पर निर्भर रहते हैं, जैसे राशन खरीदना. वे सालोंसाल इन्हीं हालात में रहते हैं, ताकि किसी दिन उन्हें भी, या उनके बच्चों को अमेरिकी नागरिक का दर्जा मिल जाए. इसके लिए वे सामाजिक संस्थाओं की मदद लेते हैं, लेकिन ये उतना आसान नहीं. तो छिपकर रहते हुए भी बहुत से लोग खत्म भी हो जाते हैं. 

अमेरिका में दस्तावेज बनवाना आसान नहीं. जो लोग बिना कानूनी अनुमति वहां आए हों, उन्हें वहां रहते हुए ग्रीन कार्ड नहीं मिल सकता. अगर कोई एक साल से ज्यादा अवैध तरीके से रह चुका हो तो उसपर 3 साल का प्रतिबंध लग जाता है. वहीं सालभर से ज्यादा रह चुके लोगों को 10 साल के लिए प्रतिबंधित कर दिया जाता है. 

life of undocumented immigrants in america amid donald trump mass deportation and threat on indians photo - Getty Images

तो क्या वाकई होगा मास डिपोर्टेशन 

ट्रंप ने आने से पहले ही अमेरिका के सबसे बड़े डिपोर्टेशन की बात की थी. अब इसपर अमल भी शुरू हो चुका. लोग छांटे जा रहे हैं ताकि वापसी की प्राथमिकता तय हो सके. हालांकि ये उतना आसान भी नहीं. 

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पहले टर्म में क्या किया था ट्रंप ने

ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान लगभग डेढ़ मिलियन लोगों को देश से बाहर किया. हालांकि ये उनके टागरेट प्रॉमिस से आधा था. याद दिला दें कि रिपब्लिकन्स ने तब 3 मिलियन इललीगल इमिग्रेंट्स को देश से निकालने की बात कही थी. चुनाव से ठीक पहले साल 2019 में बड़ी कार्रवाइयां और अवैध लोगों की गिरफ्तारियां भी हुईं लेकिन खास फर्क नहीं पड़ा.

कितने पैसे खर्च होंग, और कितना समय लगेगा

लाखों लोगों को डिपोर्ट करने पर भारी पैसे तो खर्च करने ही होते हैं, साथ ही लॉजिस्टिक्स पर भी काम करना होता है. जैसे साल 2016 में, यू.एस. इमिग्रेशन एंड कस्टम्स एन्फोर्समेंट (आईईसी) ने अनुमान लगाया था कि एक अवैध प्रवासी को गिरफ्तार करने, हिरासत में रखने और डिपोर्ट करने की लागत लगभग 11 मिलियन डॉलर होती है. इस हिसाब से अगर लाखों अवैध प्रवासियों को भेजा जाए तो केवल 1 मिलियन पर ही 10.9 बिलियन डॉलर खर्च करना होगा. अनुमान है कि फिलहाल यूएस में 11 मिलियन अवैध प्रवासी है, उन्हें डिपोर्ट करने की लागत 100 बिलियन डॉलर से ऊपर जा सकती है. थिंक टैंक अमेरिकन एक्शन फोरम ने डेटा देते हुए यह भी माना कि इसमें खर्च के बावजूद 20 साल लगेंगे.

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लॉजिस्टिक दिक्कतें अलग हैं 

अमेरिका में अभी इतने डिटेंशन सेंटर नहीं, जहां लाखों अवैध शरणार्थियों को रखा जा सके. इन्हें बनाने और मेंटेनेंस के लिए अलग खर्च होगा, साथ ही वक्त भी लगेगा. 

life of undocumented immigrants in america amid donald trump mass deportation and threat on indians photo Reuters

एक केस हजार दिन चलता है

डिपोर्टेशन से पहले हर मामले पर अदालती कार्रवाई होती है. दोनों पक्षों की बात सुनी जाती है. इसके लिए जज, वकील और बाकी कानूनी जरूरतें पूरी करते हुए प्रोसेस अपने-आप ही कमजोर हो सकती है. इमिग्रेशन कोर्ट में चलने वाला हरेक केस लगभग 1000 दिन चलता है. बाइडेन प्रशासन के दौरान बैकलॉग ही साढ़े तीन मिलियन केस से ऊपर चला गया. यानी इतने मामले अभी पेंडिंग हैं. मामले का फैसला न होने तक वे यहीं रहेंगे, जिसका खर्च अमेरिकी सरकार को देना होगा.

कई देश डिपोर्टीज को नहीं अपनाते 

कई ऐसे भी देशों से लोग भागकर आए, जिनके साथ अमेरिका का ठीक-ठाक डिप्लोमेटिक रिश्ता नहीं, जैसे क्यूबा, वेनेजुएला और रूस. ऐसे में वे देश अपने ही लोगों को अपनाने से इनकार कर सकते हैं. तब अमेरिका के पास उन्हें रखने के अलावा कोई चारा नहीं होगा. ट्रंप सरकार के दौर में दबाव बनाने की कोशिश भी की गई, लेकिन देशों ने भागकर गए लोगों को अपनाने से इनकार कर दिया.

अमेरिका की अपनी इकनॉमी भी एकदम से चरमरा सकती है. बता दें कि यहां कंस्ट्रक्शन से लेकर एग्रीकल्चर में बड़ा काम अवैध शरणार्थियों के जिम्मे है. वे चीप लेबर भी हैं. यही वजह है कि बहुत से संस्थान उनकी वापसी के खिलाफ रहे, भले ही वे इसपर मानवीयता की लेयर चढ़ाकर बात करते रहे.

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