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हर दो चुनाव के बाद पाला बदलता रहा है उत्तर प्रदेश, नाराजगी ऐसी कि इंदिरा तक रायबरेली से हार गईं, जानिए- कब, किसे दी पटखनी

भाजपा के अपने बूते बहुमत पाने के इरादे को पलीता लगाने में बड़ा हाथ उत्तर प्रदेश का रहा. पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी ने जहां 62 सीटें जीती थीं, वहीं इस बार वो 33 सीटों पर सिमट गई. ये बड़ा झटका था. वैसे हर दो चुनाव के बाद ऐसी उठापटक का यूपी का इतिहास रहा है. यहां तक कि इंदिरा गांधी ऐसी पहली पीएम थीं, जो आम चुनावों में अपनी ही सीट से हार गईं.

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उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी को भारी बढ़त मिली. (Photo- PTI)
उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी को भारी बढ़त मिली. (Photo- PTI)

उत्तर प्रदेश के बारे में कहा जाता है कि गंगा की लहरों की तरह ही यहां के वोटरों का मन भी बदलता रहता है. एक चुनाव में जिसे वे सिर-आंखों बिठाते हैं, गड़बड़ होने पर अगले कुछ ही सालों में उसे सबक सिखाने पर तुल आते हैं. यूपी की फैजाबाद सीट से लेकर पूरे सूबे ने इस बार भाजपा का नंबर एकदम से घटा दिया. ये पहली बार नहीं. राज्य का सियासी इतिहास ही कुछ ऐसा है. वे जब देने पर आया, तो पूरी की पूरी झोली अपनी पसंदीदा पार्टी के लिए उड़ेल दी. और उखड़ा तो सब ले लिया. 

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भूलें सुधारने के मौके भी देता है, नसीहत भी

80 लोकसभा सीटों वाले यूपी को सियासी तौर पर सबसे मुखर माना जाता रहा. वो हर दो लोकसभा चुनावों तक सब्र धरता है, एक पार्टी पर भरोसा जाता है, और उम्मीदें पूरी न हों तो उसे नसीहत भी दे देता है. ये मामला सबसे पहले हुए लोकसभा चुनाव के बाद से दिखने लगा. साठ के दशक में दो मौकों के बाद इसने तत्कालीन सबसे मजबूत पार्टी और चेहरे को अपने यहां कमजोर बना दिया था. इंदिरा गांधी के आपातकाल पर देश जितना भी भड़का, लेकिन यूपी का गुस्सा सबसे ज्यादा दिखा था. इसी तरह इंदिरा की मौत पर संवेदना से भरे राज्य ने उनकी पार्टी को खुले दिल से अपनाया था. जानिए, कब-कब, क्या हुआ. 

देश में पहला आम चुनाव साल 1951-52 में हुआ था. चार महीने चले इलेक्शन में कुल 489 सीटें थीं, जिनमें से कांग्रेस ने 364 जगहों पर जीत पाई. यूपी में सीटों के लिहाज से यह तब भी सबसे दमदार सूबा था, जिसमें लगभग सारी सीटें जवाहरलाल नेहरू की लीडरशिप में कांग्रेस के हिस्से आईं. 

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lok sabha election result 2024 timeline of uttar pradesh from first assembly election photo Getty Images

अगली बार साल 1957 में देश में 14 राज्य थे, और 6 यूनियन टैरिटरी. इसमें 403 सीटों पर चुनाव लड़ा गया. ये अलग ही दौर था, जिसमें कांग्रेस, खासकर नेहरू की टक्कर पर कोई नहीं था. उन्हें ही जीत मिली. यूपी इस बार भी उनके पक्ष में था, लेकिन ज्यादा देर के लिए नहीं. इसकी झलक दिख भी रही थी. राज्य में कांग्रेस की 11 सीटें जा चुकी थीं. 

साल 1962 में हुए तीसरे आम चुनाव की तस्वीर कुछ अलग थी. इस बार 494 सीटों में कांग्रेस ने 361 पर जीत पाई, लेकिन उत्तर प्रदेश छिटक चुका था. वहां कांग्रेस की सीटें घटकर 62 रह गईं जबकि जनसंघ को 07 सीटें मिल गईं. ये फासला दिखने में बड़ा है, लेकिन वोटर अपनी नाराजगी दिखा चुका था. 

भर-भरकर मिले थे सिंपैथी वोट

साल 1967 में दो चुनावों के बाद तीसरा बदलाव आया लेकिन अलग तरह से. जननायक नेहरू के जाने के बाद आबादी उनकी बेटी और उनकी पार्टी दोनों को तसल्ली देना चाहती थी. तब 85 सीटों पर कांग्रेस ने 73 सीटें जीत लीं. लेकिन बाकी सीटें जनसंघ के पास चली गईं. यानी अंटरकरंट अब भी था. 

पांचवा चुनाव साल 1971 में हुआ. अबकी बार 518 लोक सभा सीटों पर कांग्रेस को 352 सीटें मिलीं. इंदिरा गांधी कांग्रेस से कांग्रेस एस बना चुकी थीं. यूपी ने पुरानी कांग्रेस को छोड़ते हुए इंदिरा पर ही भरोसा जताया. 

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lok sabha election result 2024 timeline of uttar pradesh from first assembly election photo Getty Images

साल 1977 वो समय था, जब देश इमरजेंसी लगने पर भड़का हुआ था

इंदिरा के कार्यकाल में हुई ज्यादतियों पर यूपी ने हिसाब-किताब बराबर करना चाहा. ये इस हद तक गया कि खुद इंदिरा रायबरेली सीट से हार गईं. देश के इतिहास में उनके अलावा कोई भी पीएम चुनाव में अपनी ही सीट नहीं हारा. तब यूपी में लोकसभा की 85 सीटें थीं. वहां कांग्रेस लगभग साफ हो गई. जनता पार्टी सबसे बड़ी पार्टी बनकर आई और इंदिरा को सत्ता से हटना पड़ा. 

1980 में जनता पार्टी के गिरने पर आधे सफर में ही दोबारा चुनाव हुए. यूपी अब तक कांग्रेस को भरपूर नसीहत दे चुकी थी, अब वो सुलह के मूड में थी. इंदिरा को 85 में से 50 सीटें मिलीं, जो कि दो साल पहले की तुलना में काफी शानदार था. 

इंदिरा के निधन के बाद बेटे पर जताया भरोसा

साल 1984 में आठवां आम चुनाव हुआ. ये संवेदनाओं की सुनामी का दौर था. इंदिरा की हत्या के बाद हुए इलेक्शन में देश ने 514 में से 404 सीटें कांग्रेस को दीं, वहीं उत्तर प्रदेश भी पीछे नहीं था. कांग्रेस ने वहां 85 में से 83 सीटें पा लीं. ये पहले आम चुनाव से भी बड़ी जीत थी, जब पार्टी का मतलब ही कांग्रेस था. 

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और- यही वो समय था, जब किसी पार्टी ने अकेले के बूते 400 पार किया था. अब तक ये कमाल कोई पार्टी नहीं दोहरा सकी. 

साल 1989 तक ये उफान जा चुका था. यूपी को इमरजेंसी से लेकर अव्यवस्थाओं का जख्म परेशान कर रहा था. यही हाल देश का भी था. राजीव गांधी की अगुवाई में 197 सीटें मिल सकीं. यूपी में वे केवल 15 सीटों पर सिमट चुके थे. जनता दल 50 से ज्यादा सीटों के साथ काफी आगे निकल गया था. यहां तक कि बीजेपी को भी 8 सीटें मिलीं. यूपी के ही वोट थे, जिनके साथ गठबंधन सरकार में वीपी सिंह ने पीएम पद की शपथ ली.

lok sabha election result 2024 timeline of uttar pradesh from first assembly election photo Getty Images

साल 1991 का 10वां आम चुनाव

यूपी इस बार फिर चेतावनीा देने के मूड में था. देश में 521 में से कांग्रेस को 232 सीटें मिलीं तो लेकिन उत्तर प्रदेश में वो सिर्फ 5 सीटों पर अटक गया. बीजेपी ने इस बार 50 का आंकड़ा पार कर लिया. 

साल 1996 में 11वां आम चुनाव हुआ, जिसमें उत्तर प्रदेश में कांग्रेस एक बार फिर 5 सीटों पर अटक गई. भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी, जिसे 52 सीटों पर जीत मिली. इस बार सपा और बीएसपी को भी वोट मिले, जो संकेत था कि सूबा क्षेत्रीय पार्टियों को भी खंगाल रहा है. 

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ग्यारहवां लोक सभा चुनाव साल 1998 में हुआ, जिसमें उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुल सका, जबकि भाजपा को 57 जगहों पर जीत मिल गई. वैसे देश के स्तर पर कांग्रेस अब भी दूसरी बड़ी पार्टी के तौर पर खड़ी थी. 

सपा समेत क्षेत्रीय पार्टियों को देने लगा मौके

तेरहवें इलेक्शन में 1999 में यूपी में कांग्रेस को 10 सीटें मिली, ये दो बार के बात की एक तरह की विजय थी. सपा इस बार 35 सीटों के साथ राज्य में सबसे आगे थी. 

साल 2004 में 14वां लोकसभा चुनाव हुआ, जो यूपी से उत्तराखंड बनने के बाद का समय था. 80 सीटों के चुनाव में कांग्रेस को 9 जबकि सपा को 35 और बीएसपी को 19 सीटें मिलीं. यूपी क्षेत्रीय पार्टियों पर भरोसा पक्का कर चुका था. देश में वैसे यूपीए गठबंधन की सरकार बनी, जिसमें डॉ मनमोहन सिंह पीएम थे. 

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इस साल के बाद कांग्रेस अटक गई 10 के भीतर

15वां चुनाव साल 2009 में हुआ, जिसमें यूपी में कांग्रेस एक बार फिर से काफी मजबूत दिखी. इस बार उसके हिस्से 22 सीटें आईं. साथ ही सपा को भी 22 सीटें मिलीं. बीएसपी बढ़ते हुए 20 तक पहुंच गई, जबकि भाजपा 10 तक सिमट गई. देश के स्तर पर कांग्रेस ही सबसे बड़ी पार्टी रही, लेकिन यूपी में यहां लंबे समय के लिए रुकावट आने जा रही थी. इस चुनाव के बाद अब तक वो अपने बूते 10 का आंकड़ा भी पार नहीं कर सकी. ये वही राज्य है, जिसने शुरुआती वक्त में उसे अकेली पार्टी माना था. 

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साल 2014 इतिहास बदलने वाला रहा. देश में मोदी लहर थी, और यूपी भी इसमें शामिल था. वहां भाजपा ने 71 सीटें जीतीं, जबकि सपा को 5 और कांग्रेस को 2 ही सीटें मिल सकीं. देशभर में मिलाकर कांग्रेस को 44 सीटें मिल पाई थीं. 

मुश्किल से खाता खुल सका इस बड़ी पार्टी का

17वां लोकसभा चुनाव 2019 में हुआ. इस बार यूपी में भाजपा को हराने के लिए दो बड़ी सियासी अदावत वाली पार्टियां मिल गईं- सपा और बसपा. मायावती और अखिलेश एक मंच पर आए लेकिन राज्य ने गठबंधन को किनारे करते हुए 62 सीटों पर कमल पर मोहर लगा दी. बसपा के खाते 10 और सपा के हिस्से 4 ही सीटें आ सकीं. यहां तक कि राहुल गांधी की पारंपरिक सीट अमेठी भी छिन गई थी. कांग्रेस केवल रायबरेली सीट पर ही जीत सकी थी. 

इस बार के लोकसभा चुनाव बिल्कुल ही अलग नतीजे लेकर आए. जनवरी में राम लला की प्राण प्रतिष्ठा, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर जैसी कई घटनाएं हुईं, जो राज्य पर सीधा असर डालती थीं. माना जा रहा था कि इस बार वोट बढ़ेंगे ही, लेकिन हुआ उल्टा. राज्य ने भाजपा को आधी सीटों पर समेट दिया, जबकि सपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. वजहें अब भी खंगाली जा रही हैं कि कहां चूक हुई. लेकिन जैसा कि यूपी का दस्तूर है, उसने दो इलेक्शन्स के बाद फिर पुराना ट्रेंड फॉलो किया. 

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