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कुकी और मैतेई के बाद अब मणिपुर में पुलिस बनाम असम राइफल्स में तनातनी शुरू हो गई है. मणिपुर पुलिस ने असम राइफल्स पर ऑपरेशन में बाधा डालने के आरोप में एफआईआर दर्ज की है.
पुलिस ने ये एफआईआर पांच अगस्त को दर्ज की थी. पुलिस ने असम राइफल्स पर बिष्णुपुर जिले के क्वाक्ता इलाके में उनकी गाड़ियां रोकने का आरोप लगाया है.
इस पर सेना ने असम राइफल्स का बचाव करते हुए एक बयान जारी किया है. सेना का कहना है कि असम राइफल्स की छवि खराब करने की कोशिश की जा रही है, जो मणिपुर में शांति बहाल करने में लगी है.
जानते हैं कि मणिपुर में जातीय हिंसा के बाद अब पुलिस और असम राइफल्स में किस बात पर विवाद शुरू हो गया है? एफआईआर में क्या आरोप हैं? और सेना का इस पर क्या कुछ कहना है?
क्या है पूरा मामला?
- दरअसल, मणिपुर के बिष्णुपुर जिले में मैतेई समुदाय के तीन लोगों की हत्या के बाद इलाके में तनाव था.
- इसके बाद बिष्णुपुर के क्वाक्ता इलाके में 5 अगस्त को तनाव बढ़ गया. कुकी समुदाय से जुड़े हथियारबंद लोगों के खिलाफ पुलिस ने ऑपरेशन चलाया.
- पुलिस का आरोप है कि असम राइफल्स ने रास्ते में अपने वाहन खड़े कर दिए, जिससे ऑपरेशन में बाधा आ गई. इस कारण कुकी उग्रवादी भी वहां से भागने में कामयाब हो गए.
- मणिपुर पुलिस ने असम राइफल्स के खिलाफ आईपीसी की धारा- 166, 186, 189, 341, 353, 506 और 34 के तहत केस दर्ज किया है.
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एफआईआर में क्या आरोप हैं?
- आरोप है कि असम राइफल्स ने पुलिस की गाड़ियों को क्वाक्ता गोथोल रोड पर रोक दिया था. एफआईआर में असम राइफल्स की नौवीं बटालियन के जवानों को आरोपी बनाया गया है.
- एफआईआर में दावा किया गया है कि असम राइफल्स के जवानों ने पुलिस को उस समय रोक दिया जब वो कुकी उग्रवादियों की तलाश में फोलजांग रोड की ओर जा रही थी.
- पुलिस का दावा है कि क्वाक्ता वार्ड नंबर-8 में कुकी उग्रवादियों के खिलाफ सर्च ऑपरेशन चलाया था. लेकिन असम राइफल्स की गाड़ी अड़ने की वजह से ऑपरेशन में बाधा आई. इससे कुकी उग्रवादियों को वहां से भागने का मौका मिल गया.
सेना का क्या है कहना?
- इस मामले में असम राइफल्स की ओर से तो अभी तक कुछ नहीं कहा गया है. हालांकि, भारतीय सेना ने बयान जारी कर इसे असम राइफल्स की छवि खराब करने की कोशिश बताया है.
- सेना ने बयान जारी कर कहा, तीन मई से मणिपुर में लोगों की जान बचाने और शांति बहाल करने का काम कर रहे सुरक्षाबल, खासकर असम राइफल्स की भूमिका और इरादे पर सवाल उठाने की असफल कोशिशें की जा रहीं हैं.
- सेना ने कहा कि मणिपुर में जमीन पर काफी जटिल हालात हैं और ऐसी स्थिति में अलग-अलग सुरक्षाबलों के बीच कभी-कभी मतभेद हो सकते हैं. लेकिन ऐसी गलतफहमियों को तुरंत दूर कर लिया जाता है.
- सेना ने कहा कि 24 घंटे में असम राइफल्स की छवि खराब करने के दो मामले सामने आए हैं. पहले मामले में, असम राइफल्स ने हिंसा रोकने के मकसद से बफर जोन की गाइडलाइंस का पालन किया था. दूसरे मामले में, असम राइफल्स को उस इलाके से बाहर जाने को कहा गया जो उनका था भी नहीं.
- बयान में कहा गया है कि मई में हिंसा शुरू होने के बाद से वहां पर सेना की एक बटालियन तैनात है, जहां से असम राइफल्स को हटाए जाने की कहानी बनाई गई है.
- इसमें कहा गया कि भारतीय सेना और असम राइफल्स मणिपुर के लोगों को आश्वस्त करते हैं कि पहले से ही अस्थिर माहौल में हिंसा को बढ़ावा देने वाली किसी भी कोशिश को रोकने के लिए अपनी कार्रवाई में दृढ़ बने रहेंगे.
असम राइफल्स को लेकर एक विवाद ये भी
- असम राइफल्स को लेकर मणिपुर में विवाद हो रहा है. मणिपुर की बीजेपी यूनिट ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से असम राइफल्स की जगह दूसरे अर्धसैनिक बलों की तैनाती करने की मांग की है.
- मणिपुर बीजेपी ने आरोप लगाया है कि पहले दिन से ही असम राइफल्स राज्य में शांति बनाए रखने में नाकाम रही है. असम राइफल्स पक्षपात कर रही है, जिस कारण लोगों में गुस्सा और विरोध है.
असम राइफल्स को कहां से हटाया गया?
- मणिपुर के बिष्णुपुर में मोइरांग लमखाई पोस्ट पर तैनात असम राइफल्स के जवानों को हटा लिया गया है. उनकी जगह सीआरपीएफ और पुलिस के जवानों को तैनात किया गया है.
तीन महीने से जल रहा है मणिपुर
तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने 'आदिवासी एकता मार्च' निकाला. ये रैली चुरचांदपुर के तोरबंग इलाके में निकाली गई.
ये रैली मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के खिलाफ निकाली गई थी. मैतेई समुदाय लंबे समय से अनुसूचित जनजाति यानी एसटी का दर्जा देने की मांग हो रही है.
इसी रैली के दौरान आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच हिंसक झड़प हो गई. भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे. शाम तक हालात इतने बिगड़ गए कि सेना और पैरामिलिट्री फोर्स की कंपनियों को वहां तैनात किया गया.
मैतेई क्यों मांग रहे जनजाति का दर्जा?
मणिपुर में मैतेई समुदाय की आबादी 53 फीसदी से ज्यादा है. ये गैर-जनजाति समुदाय है, जिनमें ज्यादातर हिंदू हैं. वहीं, कुकी और नगा की आबादी 40 फीसदी के आसापास है.
राज्य में इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद मैतेई समुदाय सिर्फ घाटी में ही बस सकते हैं. मणिपुर का 90 फीसदी से ज्यादा इलाकी पहाड़ी है. सिर्फ 10 फीसदी ही घाटी है. पहाड़ी इलाकों पर नगा और कुकी समुदाय का तो घाटी में मैतेई का दबदबा है.
मणिपुर में एक कानून है. इसके तहत, घाटी में बसे मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ी इलाकों में न बस सकते हैं और न जमीन खरीद सकते हैं. लेकिन पहाड़ी इलाकों में बसे जनजाति समुदाय के कुकी और नगा घाटी में बस भी सकते हैं और जमीन भी खरीद सकते हैं.
पूरा मसला इस बात पर है कि 53 फीसदी से ज्यादा आबादी सिर्फ 10 फीसदी इलाके में रह सकती है, लेकिन 40 फीसदी आबादी का दबदबा 90 फीसदी से ज्यादा इलाके पर है.