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अतिक्रमण, जनजाति का दर्जा और हाई कोर्ट का आदेश... मणिपुर हिंसा के तीन ट्रिगर प्वाइंट

मणिपुर में मैतई समुदाय को जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में निकाली गई रैली के दौरान भड़की हिंसा अब तक नहीं थमी है. तीन दिन से मणिपुर हिंसा की आग में जल रहा है. सुरक्षाबलों की 55 टुकड़ियां वहां तैनात हैं. ऐसे में जानते हैं कि वो कौन से तीन 'ट्रिगर प्वाइंट' हैं, जिन्होंने मणिपुर को हिंसा में धकेल दिया.

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तीन मई से ही मणिपुर हिंसा की आग में जल रहा है. (फाइल फोटो-PTI)
तीन मई से ही मणिपुर हिंसा की आग में जल रहा है. (फाइल फोटो-PTI)

आमतौर पर ठंडा रहने वाला मणिपुर इन दिनों हिंसा की आग में जल रहा है. यहां सुरक्षाबलों की 55 टुकड़ियां तैनात हैं, बावजूद इसके हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है. शुक्रवार दोपहर को दंगाइयों ने राजधानी इम्फाल में एक कार फूंक दी.

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अब तक 9000 से ज्यादा लोग विस्थापित हो चुके हैं. सैकड़ों लोग सेना के कैम्पों में रहने को मजबूर हैं. आलम ये है कि हिंसा को रोकने के लिए राज्य सरकार ने दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश भी जारी कर दिए हैं.

ये सारा बवाल तीन मई को उस समय शुरू हुआ जब ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने 'आदिवासी एकता मार्च' निकाला. इसी रैली में आदिवासी और गैर-आदिवासी समुदाय के बीच झड़प हो गई, जो बाद में हिंसा में तब्दील हो गई. ये रैली मैतेई समुदाय की ओर से जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में निकाली गई थी. 

लेकिन मणिपुर में हिंसा कैसे भड़की? इसके लिए तीन बातों को 'ट्रिगर प्वाइंट' माना जा रहा है. पहला- पहाड़ी इलाकों में सरकार की ओर से चलाए जा रही इविक्शन ड्राइव. दूसरा- मैतेई समुदाय की ओर से जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग. और तीसरा- महीनेभर पहले मणिपुर हाई कोर्ट के उस आदेश को जिसमें अदालत ने राज्य सरकार को मैतेई समुदाय की मांग विचार करने को कहा था. ये तीनों बातें कैसे बनी मणिपुर में हिंसा का कारण? समझते हैं.

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पहलाः पहाड़ी इलाकों में इविक्शन ड्राइव

- इसी साल फरवरी में राज्य सरकार ने पहाड़ी इलाकों से अतिक्रमण हटाने का अभियान शुरू किया था. इसने कुकी समुदाय में असंतोष पैदा कर दिया. कुकी जनजाति समुदाय है. 

- सरकार की इस कार्रवाई ने न सिर्फ कुकी, बल्कि नगा जैसे बाकी दूसरे आदिवासी समुदायों में भी गुस्सा भर दिया. इसे आदिवासी विरोधी कदम बताया गया.

- पिछले हफ्ते मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह का चुराचांदपुर जिले में एक कार्यक्रम था. लेकिन उससे पहले ही भीड़ ने न्यू लंका टाउन में उस जगह पर तोड़फोड़ कर दी और आग लगा दी, जहां वो सभा को संबोधित करने वाले थे.

- चुराचांदपुर में कुकी स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन के महासचिव डीजे हाओकीप ने न्यूज एजेंसी को बताया, 'पहाड़ी जिलों के कई इलाकों को रिजर्व फॉरेस्ट घोषित कर बरसों से रह रहे सैकड़ों कुकी आदिवासियों की बस्ती को हटा दिया गया.'

- हाओकीप ने दावा किया कि कुकी समुदाय में सरकार की ओर से चलाए गए अतिक्रमण हटाओ अभियान को लेकर नाराजगी नहीं है, बल्कि वहां से हटाने के बाद पुनर्वास के कोई इंतजाम न किए जाने के कारण गुस्सा है.

- इससे पहले मार्च में भी कांगपोकपी जिले में भी हिंसक झड़प हुई थी, जब एक रैली आयोजित करने की कोशिश की गई थी. ये रैली कथित तौर पर जंगलों से आदिवासियों को बेदखल करने के खिलाफ थी.

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- इतना ही नहीं, 11 अप्रैल को राजधानी इम्फाल की एक आदिवासी कॉलोनी में बनी तीन चर्चों को भी 'अवैध निर्माण' बताकर हटा दिया गया था. इससे जनजाति समुदाय में असंतोष और बढ़ गया.

हिंसा ने मणिपुर के हजारों लोगों को विस्थापित कर दिया है. (फाइल फोटो-PTI)

दूसराः मैतेई की ओर से ST का दर्जा दिए जाने की मांग

- मणिपुर की आबादी में 53 फीसदी आबादी मैतेई समुदाय की है. ये समुदाय लंबे समय से अनुसूचित जनजाति का दर्जा मांग रहा है. इसी के खिलाफ तीन मई को एक रैली निकाली गई.

- 'आदिवासी एकता मार्च' के नाम से ये रैली ऑल ट्राइबल स्टूडेंट यूनियन मणिपुर (ATSUM) की ओर से निकाली गई थी. इसमें कुकी और नगा समुदाय से जुड़े लोग शामिल थे. 

- आदिवासी संगठन ने जब इस रैली का ऐलान किया था, तब भी इस बात की आशंका थी कि इससे तनाव बढ़ सकता है. और हुआ भी ऐसा ही. 

- इस रैली में आदिवासी और गैर-आदिवासी समुदाय भिड़ गए. पुलिस को आंसू गैस के गोले दागने पड़े. हालात इतने बेकाबू हो गए कि सेना और पैरामिलिट्री फोर्स के जवानों को भी उतारना पड़ गया.

तीसराः मणिपुर हाई कोर्ट का आदेश

- 20 अप्रैल को मणिपुर हाई कोर्ट ने एक आदेश जारी किया. इसमें राज्य सरकार को मैतेई समुदाय की ओर से अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग पर विचार करने को कहा गया था. हाई कोर्ट ने इसके लिए सरकार को चार हफ्ते का समय दिया था.

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- अतिक्रमण हटाओ अभियान और मैतेई समुदाय की ओर से एसटी का दर्जा दिए जाने की मांग की वजह से काफी तनाव था. और बाद में हाई कोर्ट ने आदेश से आदिवासी समुदाय और ज्यादा भड़क गया.

मणिपुर में हो रही हिंसा के खिलाफ भी लोग सड़कों पर उतर आए हैं. (फोटो-PTI)

अब बात मणिपुर की जातीय व्यवस्था की

- ये समझने से पहले मणिपुर की भौगोलिक स्थित को समझते हैं. मणिपुर 22,327 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला है. इसका 2,238 वर्ग किमी यानी 10.02% इलाका ही घाटी है. बाकी का 20,089 वर्ग किमी यानी 89% से ज्यादा पहाड़ी इलाका है.

- मणिपुर में 33 समुदायों को जनजाति का दर्जा मिला है. इन्हें नगा और कुकी कहा जाता है. मैतेई यहां का सबसे बड़ा लेकिन गैर-जनजाति समुदाय है. 

- मैतेई हिंदू हैं. राज्य में इनकी आबादी 53 फीसदी से भी ज्यादा है. वहीं नगा और कुकी की आबादी 40 फीसदी के आसपास है और ये मुख्य रूप से ईसाई हैं.

- इन तीनों के अलावा यहां मुस्लिम आबादी भी है. साथ ही यहां गैर-आदिवासी समुदाय से आने वाले मयांग भी हैं जो देश के अलग-अलग हिस्से में आकर यहां बसे हैं.

मैतेई क्यों मांग रहे ST का दर्जा?

- मैतेई यहां का सबसे बड़ा समुदाय है. राज्य के 60 में से 40 विधायक मैतेई समुदाय से ही आते हैं. मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह भी मैतेई समुदाय से आते हैं.

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- मैतेई समुदाय का तर्क है कि इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद उनका दबदबा सिर्फ 10 फीसदी इलाके पर है. जबकि, 40 फीसदी जनजाति समुदाय का कब्जा 90 फीसदी इलाके पर है.

- मणिपुर के एक कानून में जनजाति समुदाय के लिए खास प्रावधान किए गए हैं. इसके तहत, पहाड़ी इलाकों में सिर्फ आदिवासी ही बस सकते हैं. 

- चूंकि, मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा नहीं मिला है, इसलिए वो पहाड़ी इलाकों में नहीं बस सकते. जबकि, नागा और कुकी जैसे आदिवासी समुदाय चाहें तो घाटी वाले इलाकों में जाकर रह सकते हैं.

- मैतेई और नगा-कुकी के बीच विवाद की असल वजह यही है. इसलिए मैतेई ने भी खुद को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग की है.

हिंसा के कारण 9 हजार से ज्यादा लोग विस्थापित हो गए हैं. (फाइल फोटो-ANI)

इसकी मांग कितनी जायज?

- मैतेई समुदाय की ओर से मणिपुर हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. इसमें अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का मुद्दा उठाया गया था.

- याचिका में दलील दी गई थी कि 1949 में मणिपुर भारत का हिस्सा बना था. उससे पहले तक मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा हासिल था. लेकिन बाद में उसे एसटी लिस्ट से बाहर कर दिया गया.

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- शेड्यूल ट्राइब डिमांड कमेटी मणिपुर (STDCM) ने हाईकोर्ट में दलील दी कि मैतेई या मीतेई समुदाय को एसटी लिस्ट में शामिल करने की मांग लंबे समय से हो रही है. इसे लेकर केंद्र सरकार तक को ज्ञापन सौंपा गया. 

-STDCM ने हाई कोर्ट में दलील दी कि 29 मई 2013 को केंद्र सरकार ने राज्य सरकार से मैतेई या मीतेई समुदाय से जुड़ी सामाजिक-आर्थिक जनगणना और एथनोग्राफिक रिपोर्ट्स मांगी थी, लेकिन राज्य सरकार ने कोई कदम नहीं उठाया.

- इसी पर मणिपुर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया था कि वो चार हफ्तों के अंदर मैतेई समुदाय की ओर से एसटी का दर्जा दिए जाने की मांग पर विचार करे.

मैतेई और कुकी समुदाय के क्या हैं तर्क?

- मैतेई समुदायः एसटी का दर्जा की मांग करने वाले संगठन का कहना है कि ये सिर्फ नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण का मुद्दा नहीं है, बल्कि ये पैतृक जमीन, संस्कृति और पहचान का मसला है. संगठन का कहना है कि मैतेई समुदाय को म्यांमार और आसपास के पड़ोसी राज्यों से आने वाले अवैध प्रवासियों से खतरा है. ऑल मैतेई काउंसिल के सदस्य चांद मीतेई पोशांगबाम का दावा है कि कुकी म्यांमार की सीमा पार कर यहां आए हैं और मणिपुर के जंगलों पर कब्जा कर रहे हैं. उन्हें हटाने के लिए राज्य सरकार अभियान चला रही है.

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- कुकी समुदायः ऑल मणिपुर ट्राइबल यूनियन के महासचिव केल्विन नेहिसियाल ने बताया, 'इस पूरे विरोध की वजह ये थी कि मैतेई अनुसूचित जनजाति का दर्जा चाहते थे. उन्हें एसटी का दर्जा कैसे दिया जा सकता है? अगर उन्हें एसटी का दर्जा मिला तो वो हमारी सारी जमीन हथिया लेंगे.' केल्विन ने दावा किया कि कुकी समुदाय को संरक्षण की जरूरत थी क्योंकि वो बहुत गरीब थे, उनके पास न स्कूल नहीं थे और वो सिर्फ झूम की खेती पर ही जिंदा थे.

 

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