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हिंसा की मार, खौफ में लोग छोड़ रहे घर-बार... मणिपुर के पड़ोसी राज्यों से भी पलायन!

मणिपुर में तीन मई से हिंसा जारी है. कुकी और मैतेई समुदाय के लोग आपस में भिड़ रहे हैं. मैतेई अनुसूचित जनजाति का दर्जा मांग रहे हैं, जबकि कुकी और नगा समुदाय इसके विरोध में है. कुकी और मैतेई के बीच हिंसा की वजह यही है.

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मणिपुर में हिंसा भड़के ढाई महीने से ज्यादा समय हो चुका है. (फाइल फोटो-PTI)
मणिपुर में हिंसा भड़के ढाई महीने से ज्यादा समय हो चुका है. (फाइल फोटो-PTI)

मणिपुर में कुकी समुदाय की दो महिलाओं के साथ बर्बरता के बाद से हालात पहले से ज्यादा तनावपूर्ण हो गए हैं. इस घटना के बाद से कुकी और मैतेई दोनों समुदायों के बीच नफरती आग तेज हो गई है. 

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राज्य हिंसा की आग में झुलस रहा है. जिस वजह से राज्य के बाहर रह रहे लोगों में भी खौफ बना हुआ है. ताजा मामला मिजोरम का है, जहां रह रहे मैतेई समुदाय के लोग भागने को मजबूर हो गए हैं. लोग अपने घर-बार छोड़कर जान बचाने की जद्दोजहद में लगे हैं. 

मिजोरम के उग्रवादी समूहों ने मैतेई लोगों को राज्य छोड़कर जाने की धमकी दी है. इसके बाद से मिजोरम में भी हाई अलर्ट है. रविवार को 78 और शनिवार को 65 लोग मिजोरम से मणिपुर लौट आए. इतना ही नहीं, मैतेई समुदाय से जुड़े 41 लोग असम के कछार जिले पहुंचे. 

मणिपुर में क्या चल रहा है?

- मणिपुर में तीन मई से हिंसा जारी है. कुकी और मैतेई समुदाय के लोग आपस में भिड़ रहे हैं. मैतेई अनुसूचित जनजाति का दर्जा मांग रहे हैं, जबकि कुकी और नगा समुदाय इसके विरोध में है. कुकी और मैतेई के बीच हिंसा की वजह यही है.

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- 19 जुलाई को एक वीडियो वायरल होता है. इस वीडियो में भीड़ दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर परेड करवा रही है. ये घटना 4 मई की है. इस घटना की शिकायत 18 मई को हुई थी, लेकिन पुलिस ने 21 जून को केस दर्ज किया था.

- 23 जुलाई को कुकी और जोमी समुदाय से जुड़े संगठनों ने सात कुकी महिलाओं के साथ दुष्कर्म होने का दावा किया. उनका दावा है कि अब तक की हिंसा में 27 महिलाओं को शिकार बनाया गया. सात के साथ रेप किया गया, आठ की हत्या कर दी गई, दो को जिंदा जलाकर मार डाला गया, पांच की गोली मारकर और तीन को भीड़ ने मार डाला.

- हालांकि, मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने इस दावे को खारिज किया है. उन्होंने दावा किया कि अब तक हिंसा से जुड़ी 6068 एफआईआर दर्ज की गई है, जिसमें से सिर्फ एक घटना रेप की है.

- मणिपुर से सटे मिजोरम में रह रहे मैतेई समुदाय से जुड़े लोग बड़ी संख्या में वहां से भागने को मजबूर हैं. मिजोरम के पूर्व उग्रवादी समूह ने मैतेई समुदाय के लोगों को राज्य छोड़कर जाने को कहा है. 

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मणिपुर के कौन-कौन से इलाके प्रभावित?

- वैसे तो पूरा मणिपुर ही हिंसा की आग में जल रहा है. यहां तीन मई से ही इंटरनेट बंद है. कई इलाकों में कर्फ्यू लागू है.

- रविवार को मणिपुर के चुराचांदपुर में फिर हिंसा भड़क गई. ये वही जगह है जहां तीन मई से हिंसा शुरू हुई थी. नगा और कुकी समुदाय ने यहीं पर 'आदिवासी एकता मार्च' निकाला था. ये मार्च मैतेई समुदाय की एसटी का दर्जा दिए जाने की मांग के विरोध में था. इसी मार्च में हिंसा भड़की थी.

- रविवार को चुराचांदपुर में फायरिंग और आगजनी की घटना हुई. जिस इलाके में हिंसा भड़की थी, उसके सड़क के एक ओर मैतेई तो दूसरी ओर कुकी समुदाय के गांव हैं. इससे पहले शनिवार रात को भी यहां के तोरबुंग इलाके में फायरिंग हुई.

- इसके अलावा थौबाल जिले में हालात बहुत खराब बताए जा रहे हैं. थौबाल जिले में मैतेई बहुसंख्यक हैं. ये वही जिला है जहां दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर परेड करवाई गई थी. इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था.

- इस घटना के मुख्य आरोपी खुयरूम हेरादास को गिरफ्तार कर लिया गया है. उसके अलावा और भी कई आरोपी अब तक पकड़े गए हैं. 

- इन सबके अलावा सबसे ज्यादा तनाव मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में है. वो इसलिए क्योंकि पहाड़ी इलाकों में ही कुकी और नगा समुदाय के लोग बसे हुए हैं. 

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रिलीफ कैम्प में कैसे हैं हालात?

- मणिपुर में जब से हिंसा भड़की है, तब से 50 हजार से ज्यादा लोगों को रिलीफ कैम्प में सुरक्षित रखा गया है. यहां रह रहे लोगों को अपने घर वापस लौटने की उम्मीद है.

- राजधानी इम्फाल में बने रिलीफ कैम्प में रह रहीं हेमा बाटी ने एक दशक पहले अपने पति को खो दिया था. हमा अपने दो बच्चों के साथ रिलीफ कैम्प में रह रहीं हैं. वो इम्फाल से 107 किलोमीटर दूर मोरेह कस्बे की रहने वालीं हैं. वो बताती हैं कि कैसे 3 मई को हिंसा भड़कने के बाद जब वो बचने के लिए भाग रही थीं तो दूसरे समुदाय की भीड़ ने उनपर हमला कर दिया था. हालांकि, वो अपनी और अपने बच्चों की जान बचाने में कामयाब रहीं और यहां तक पहुंच सकी.

- हेमा की तरह ही 20 साल की रोनिता चानू अपने भाई के साथ रिलीफ कैम्प में हैं. रोनिता भी मोरेह शहक की कहने वालीं हैं. रोनिता बतातीं हैं कि अपने घर से यहां तक आने में उन्हें कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ा. हालांकि, इसके बावजूद वो अपने पालतू कुत्ते की जान बचाने में कामयाब रहीं.

ढाई महीने से जल रहा है मणिपुर

- तीन मई को ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर (ATSUM) ने 'आदिवासी एकता मार्च' निकाला. ये रैली चुरचांदपुर के तोरबंग इलाके में निकाली गई. 

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- ये रैली मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिए जाने की मांग के खिलाफ निकाली गई थी. मैतेई समुदाय लंबे समय से अनुसूचित जनजाति यानी एसटी का दर्जा देने की मांग हो रही है. 

- इसी रैली के दौरान आदिवासियों और गैर-आदिवासियों के बीच हिंसक झड़प हो गई. भीड़ को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे. शाम तक हालात इतने बिगड़ गए कि सेना और पैरामिलिट्री फोर्स की कंपनियों को वहां तैनात किया गया.

मैतेई क्यों मांग रहे जनजाति का दर्जा?

- मणिपुर में मैतेई समुदाय की आबादी 53 फीसदी से ज्यादा है. ये गैर-जनजाति समुदाय है, जिनमें ज्यादातर हिंदू हैं. वहीं, कुकी और नगा की आबादी 40 फीसदी के आसापास है.

- राज्य में इतनी बड़ी आबादी होने के बावजूद मैतेई समुदाय सिर्फ घाटी में ही बस सकते हैं. मणिपुर का 90 फीसदी से ज्यादा इलाकी पहाड़ी है. सिर्फ 10 फीसदी ही घाटी है. पहाड़ी इलाकों पर नगा और कुकी समुदाय का तो घाटी में मैतेई का दबदबा है.

- मणिपुर में एक कानून है. इसके तहत, घाटी में बसे मैतेई समुदाय के लोग पहाड़ी इलाकों में न बस सकते हैं और न जमीन खरीद सकते हैं. लेकिन पहाड़ी इलाकों में बसे जनजाति समुदाय के कुकी और नगा घाटी में बस भी सकते हैं और जमीन भी खरीद सकते हैं.

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- पूरा मसला इस बात पर है कि 53 फीसदी से ज्यादा आबादी सिर्फ 10 फीसदी इलाके में रह सकती है, लेकिन 40 फीसदी आबादी का दबदबा 90 फीसदी से ज्यादा इलाके पर है.

(इनपुटः ऋतिक मंडल)

 

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