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हार्ट में मिलीं प्लास्टिक की 9 किस्में, ब्रेन पर भी कर रहा कब्जा, जानिए कैसे हमारे शरीर को भेद रहा है माइक्रोप्लास्टिक

सालभर पहले एक स्टडी में खून में प्लास्टिक होने की बात पता लगी थी. वैज्ञानिकों ने जांच के दौरान पाया कि ये छोटे-छोटे पार्टिकल्‍स 80 फीसदी लोगों में थे. अब इस माइक्रोप्लास्टिक की पहुंच हार्ट तक हो चुकी. हमारे दिल में एक नहीं, बल्कि 9 किस्म के माइक्रोप्लास्टिक मिल रहे हैं.

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हमारे शरीर में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी दिखने लगी है. सांकेतिक फोटो (Unsplash)
हमारे शरीर में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी दिखने लगी है. सांकेतिक फोटो (Unsplash)

साइंस जर्नल एसीएस पब्लिकेशन्स में छपी एक स्टडी ने एक्सपर्ट को चौंका दिया था. यूनिवर्सिटी ऑफ विक्टोरिया के वैज्ञानिकों ने इसमें बताया कि कैसे हर साल हम प्लास्टिक का छोटा-मोटा पहाड़ खा रहे हैं. ह्यूमन कन्जंप्शनऑफ माइक्रोप्लास्टिक के अनुसार एडल्ट्स हर साल 39 से लेकर 55 हजार प्लास्टिक के टुकड़े निगल या सांस के जरिए ले रहे हैं.

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एक क्रेडिट कार्ड जितना प्लास्टिक हर हफ्ते खा रहे

इसके बाद अमेरिकी वैज्ञानिकों ने इंसानों नसों में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी का पता लगाया. इसमें हर ग्राम ऊतक में माइक्रोप्लास्टिक के लगभग 15 कण मिले. माना जा रहा है कि इस तरह से हर हफ्ते हम लगभग एक क्रेडिट कार्ड जितना प्लास्टिक खा जाते हैं. ये प्लास्टिक नसों से होते हुए हार्ट और ब्रेन तक पहुंचने लगा है. 

हार्ट में दिखे प्लास्टिक पार्टिकल

अमेरिकन केमिकल सोसायटी ने अगस्त के दूसरे सप्ताह में एक पायलेट स्टडी के नतीजे सार्वजनिक किए. इसमें इसी बात पर फोकस था कि प्लास्टिक हार्ट में पहुंचकर क्या करता है. इसके लिए 15 लोग लिए गए, जिनकी हार्ट सर्जरी हुई थी. लेजर डायरेक्ट इंफ्रारेड इमेजिंग सिस्टम की मदद से हार्ट के ऊतकों को देखा गया. इस दौरान पता लगा कि हर टिशू में 9 तरह के माइक्रोप्लास्टिक मौजूद थे. इसमें सबसे बड़ा टुकड़ा लगभग 469 मिलीमीटर का था. यह अध्ययन एनवायरनमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी में प्रकाशित हुआ. 

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microplastics in human heart and brain dangers photo Pixabay

चूहों पर की गई स्टडी

यूनिवर्सिटी ऑफ रोड आयलैंड की प्रोफेसर जैमी रॉस की अगुआई में एक्सपर्ट्स ने ब्रेन तक पहुंच रहे प्लास्टिक की जांच की.  साथ ही ये समझना चाहा कि इस तरह से अंगों में प्लास्टिक के जमा होने का शरीर पर क्या असर पड़ता है. 

क्या होता है ब्रेन में प्लास्टिक के जाने से?

इसके लिए युवा और बुजुर्ग चूहों पर लैब में प्रयोग हुआ. लगातार 3 सप्ताह तक उन्हें पानी और खाने में प्लास्टिक के बारीक-बारीक टुकड़े डालकर दिए गए. इस दौरान पाया गया कि उम्रदराज चूहे भूलने लगे थे और ज्यादा चिड़चिड़े हो चुके थे. सिर्फ 3 हफ्तों के भीतर ये बदलाव वैज्ञानिकों के लिए भी चौंकाने वाला था. कई कमजोर चूहों में अल्जाइमर्स के लक्षण दिखने लगे.

प्लास्टिक की मौजूदगी से मस्तिष्क में मिलने वाला ग्लियल फाइब्रिलरी एसिडिक प्रोटीन (GFAP) भी घटने लगता है. ये प्रोटीन ब्रेन की गतिविधियों जैसे इमोशन्स और फैसला लेने की क्षमता से जुड़ा हुआ है. ऐसे में इस प्रोटीन की कमी इन क्षमताओं पर भी सीधा असर डालती है. 

microplastics in human heart and brain dangers photo Unsplash

टूट रहा ब्रेन-ब्लड बैरियर

इससे ये साफ है कि हमारे शरीर में मौजूद प्लास्टिक भी बढ़ी उम्र के लोगों या कमजोर इम्युनिटी वालों पर ज्यादा तेजी से असर कर सकता है. सांस या खाने के जरिए पहुंचने वाला ये माइक्रोप्लास्टिक ब्रेन-ब्लड बैरियर तक को नुकसान पहुंचाता है. यहां बता दें कि ब्रेन-ब्लड बैरियर एक किस्म की प्रोटेक्टिव लेयर है, जो किसी भी फॉरेन पार्टिकल को मस्तिष्क तक पहुंचने से रोकती है. इसे भेदना आमतौर पर बहुत मुश्किल है, लेकिन प्लास्टिक इसे वॉल को भी खत्म कर पा रहा है. 

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फिलहाल यह ठीक से पता नहीं लग सका है कि प्लास्टिक के चलते शरीर के भीतर और क्या-क्या बदलता है. माना जा रहा है कि इससे मेटाबॉलिज्म की प्रोसेस धीमी पड़ती जाती है, साथ ही एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस भी जरूरत से ज्यादा हो जाता है, इससे शरीर की कोशिकाएं खुद को ही दुश्मन मानकर लड़कर खत्म हो सकती हैं.

microplastics in human heart and brain dangers photo Unsplash

आखिर क्या है माइक्रोप्लास्टिक? 

पचास के दशक से लेकर अब तक लगभग 8.3 खरब टन प्लास्टिक का उत्पादन हो चुका है. इसमें से लगभग 80 प्रतिशत प्लास्टिक लैंडफिल में बदल गया. फेंका हुआ प्लास्टिक छोटे-छोटे टुकड़ों में बंटकर माइक्रो और नैनो प्लास्टिक में बदल जाता है. ये मिट्टी और पानी को प्रदूषित करने लगता है और यहीं से इंसानों समेत बाकी जीव-जंतुओं के भीतर भी पहुंचने लगता है. 

इस तरह से देख सकते हैं आप इस प्लास्टिक को

माइक्रोप्लास्टिक 0.001 से 5 मिलीमीटर साइज का होता है, जो आसानी से खत्म नहीं हो सकता. और यही बात इसे खतरनाक बनाती है. वैसे तो खुली आंखों से ये दिखाई नहीं देते लेकिन अगर आप UV लाइट के साथ खड़े हो जाएं और बिल्कुल पास ही आपको हवा में छोटे-छोटे कण दिखेंगे. ये माइक्रोप्लास्टिक हैं. डराने वाली बात ये है कि घर के भीतर माइक्रोप्लास्टिक कहीं ज्यादा पाए जाते हैं.

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