पंचायत से लेकर लोकसभा तक... क्या 2029 में सारे चुनाव एक साथ कराए जाने वाले हैं? ऐसा इसलिए क्योंकि चर्चा है मोदी सरकार अपने तीसरे कार्यकाल में ही 'वन नेशन-वन इलेक्शन' को लेकर बिल लाने वाली है. अगर ये बिल कानून बनता है तो हो सकता है कि 2029 में लोकसभा चुनाव के साथ ही सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव भी कराए जाएं. इतना ही नहीं, एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव होने के तीन महीने के भीतर ही पंचायत और नगर पालिकाओं के चुनाव भी करवा लिए जाएंगे.
दरअसल, सरकार से जुड़े सूत्रों ने बताया है कि मोदी सरकार के इसी कार्यकाल में एक देश-एक चुनाव को लेकर बिल लाया जाएगा.
एक देश-एक चुनाव, मोदी सरकार की प्राथमिकताओं में से एक रहा है. 2024 के लोकसभा चुनाव के घोषणापत्र में भी बीजेपी ने इसका वादा किया था. वहीं, 15 अगस्त को लाल किले से भाषण देते हुए भी पीएम मोदी ने एक देश-एक चुनाव के लिए सभी राजनीतिक पार्टियों से आगे आने की अपील की थी.
देश में लोकसभा के साथ-साथ राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव कैसे कराए जा सकते हैं? इसे लेकर पिछले साल सितंबर में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई में एक कमेटी बनाई गई थी. इस कमेटी ने इसी साल 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू को रिपोर्ट सौंपी थी. साढ़े 18 हजार पन्नों की इस रिपोर्ट में लोकसभा और विधानसभा चुनावों के साथ-साथ नगर पालिकाओं और पंचायत चुनाव करवाने से जुड़ी सिफारिशें थीं.
एक साथ चुनाव पर क्या थी सिफारिश?
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई वाली समिति ने कहा था कि देश में दो चरणों में एक साथ चुनाव करवाए जा सकते हैं.
पहले चरण में लोकसभा के साथ-साथ सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव करवा दिए जाएं. समिति ने सिफारिश की थी कि 2029 में इसकी शुरुआत की जा सकती है, ताकि फिर हर पांच साल में लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा चुनाव भी हो सकें.
जबकि, दूसरे चरण में नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव करवाए जाएं. नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव लोकसभा-विधानसभा चुनाव खत्म होने के 100 दिन के भीतर कराए जाने चाहिए.
पर कैसे होगा ये?
समिति ने सुझाव दिया था कि इसके लिए संविधान में अनुच्छेद 82A जोड़ा जाए. अनुच्छेद 82A अगर जुड़ता है तो लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हो सकते हैं.
अगर संविधान में अनुच्छेद 82A जोड़ता है और इसे लागू किया जाता है तो सभी राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा के कार्यकाल के साथ ही खत्म हो जाएगा. यानी, अगर अगर ये अनुच्छेद 2029 से पहले लागू हो जाता है तो सभी विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 तक होगा.
इसका मतलब ये होगा कि सभी राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा के कार्यकाल के साथ ही खत्म हो जाएगा. यानी कि अगर किसी राज्य में विधानसभा चुनाव 2027 में होते हैं तब भी उसका कार्यकाल जून 2029 तक ही होगा. इस हिसाब से सभी राज्यों में लोकसभा के साथ-साथ विधानसभा के चुनाव भी कराए जा सकेंगे.
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कैसे बदलेगा चुनावी शेड्यूल?
- 5 साल कार्यकालः आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और सिक्किम विधानसभा का कार्यकाल लोकसभा के साथ ही खत्म होगा. हरियाणा और महाराष्ट्र का कार्यकाल 6 महीने बाद खत्म होगा. यानी, इन दो राज्यों में लगभग साढ़े छह महीने पहले विधानसभा भंग करनी होगी. जम्मू-कश्मीर विधानसभा का कार्यकाल भी करीब साढ़े छह महीने पहले खत्म हो जाएगा.
- 4 साल का कार्यकालः झारखंड, बिहार और दिल्ली विधानसभा का कार्यकाल 4 साल का ही होगा. झारखंड में 8 महीने, दिल्ली में 9 महीने और बिहार में लगभग 16 महीने पहले विधानसभा को भंग करना होगा.
- 3 साल का कार्यकालः 2026 में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, असम, केरल और पुडुचेरी में चुनाव होंगे. यानी कि इन राज्यों की विधानसभा का कार्यकाल 3 साल ही रहेगा.
- 2 साल का कार्यकालः साल 2027 में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गुजरात, पंजाब, गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनाव होंगे. इन राज्यों में विधानसभा का कार्यकाल 2 साल ही रहेगा.
- 1 साल या उससे भी कम का कार्यकालः बाकी दस राज्य- हिमाचल प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा, कर्नाटक, तेलंगाना, मिजोरम, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा का कार्यकाल एक साल या उससे भी कम का होगा. ये भी हो सकता है कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा का कार्यकाल छह महीने बढ़ा दिया जाए, क्योंकि यहां दिसंबर 2028 में चुनाव होंगे.
इसके लिए क्या करना होगा?
इसके लिए संविधान में संशोधन करना होगा. पूर्व राष्ट्रपति कोविंद की समिति ने सिफारिश की थी कि इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 83 और 172 में संशोधन करने के साथ-साथ एक नया अनुच्छेद 82A जोड़ना होगा. अनुच्छेद 83 में लोकसभा का कार्यकाल और 172 में विधानसभा का कार्यकाल 5 साल तय किया गया है.
समिति की रिपोर्ट के मुताबिक, इस संवैधानिक संशोधन को मंजूरी के लिए राज्यों की विधानसभाओं से अनुमोदन की जरूरत भी नहीं होगी. यानी, केंद्र सरकार सीधे ही ये संशोधन कर सकती है.
हालांकि, नगर पालिकाओं और पंचायतों को पांच साल से पहले भंग करने के लिए अनुच्छेद 325 में संशोधन करना होगा. ये संशोधन तभी लागू होगा, जब इसे कम से कम 15 राज्यों की विधानसभाओं से मंजूरी मिलेगी.
क्या होगा अगर किसी को बहुमत नहीं मिला तो?
हमारे देश में मल्टी पार्टी सिस्टम है, इसलिए इस बात की संभावना भी बहुत ज्यादा है कि किसी एक पार्टी या गठबंधन को बहुमत न मिले.
ऐसी स्थिति में सबसे बड़ी पार्टी या गठबंधन को सरकार बनाने का न्योता दिया सकता है. अगर फिर भी सरकार नहीं बनती है तो मध्यावधि चुनाव करवाए जा सकते हैं. लेकिन चुनाव के बाद जो भी सरकार बनेगी, उसका कार्यकाल पांच साल नहीं होगा.
मसलन, 2029 के लोकसभा चुनाव में कोई एक पार्टी या गठबंधन अपने दम पर सरकार नहीं बना पाता है और मध्यावधि चुनाव होते हैं. इसके बाद अगर कोई सरकार बनेगी तो उसका कार्यकाल जून 2034 तक ही रहेगा. यही फॉर्मूला विधानसभा में भी लागू होगा.
इसी तरह अगर कोई सरकार पांच साल से पहले गिर जाती है, तो भी मध्यावधि चुनाव ही करवाए जाएंगे और उसका कार्यकाल भी जून 2034 तक ही रहेगा. ऐसा इसलिए ताकि एक देश-एक चुनाव की परंपरा न टूटे.
पर क्या राज्य मानेंगे?
राज्य सरकारों को पांच साल के कार्यकाल से पहले विधानसभा भंग करने के लिए मना पाना टेढ़ी खीर साबित हो सकता है. क्योंकि कई पार्टियां एक देश-एक चुनाव के विरोध में भी हैं.
रामनाथ कोविंद की समिति ने 62 राजनीतिक पार्टियों से संपर्क किया था. इनमें से 32 ने एक देश, एक चुनाव का समर्थन किया था. जबकि, 15 पार्टियां इसके विरोध में थीं. 15 ऐसी पार्टियां थीं, जिन्होंने कोई जवाब नहीं दिया था.
कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, आम आदमी पार्टी, सीपीएम और बसपा समेत 15 पार्टियां इसके विरोध में हैं. जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा, टीडीपी, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग समेत 15 पार्टियों ने कोई जवाब नहीं दिया था.
विरोध के पीछे कई तर्क दिए जाते हैं. मसलन, साथ चुनाव होते हैं तो क्षेत्रीय मुद्दों की बजाय राष्ट्रीय मुद्दों को तरजीह मिल सकती है या इसका उल्टा हो सकता है. इससे राष्ट्रीय पार्टियां बढ़ेंगी और क्षेत्रीय पार्टियां खत्म हो जाएंगी.
पहले एक साथ ही होते थे चुनाव
आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे. इसके बाद 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गई. उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई. इससे एक साथ चुनाव की परंपरा टूट गई.