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रमजान में शमी के एनर्जी ड्र‍िंक पीने पर विवाद... कुरान और हदीस भी इन 6 हालात में देते हैं रोजे से छूट

मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने बताया कि, इस्लाम में ऐसा नहीं कहा गया है कि अगर आप नेशनल ड्यूटी पर हैं तो भी रोजा रखना ही रखना है. इस्लाम में कहा गया है कि अगर आप सफर कर रहे हैं तो रोजा नहीं भी रख सकते हैं. सफर के बाद जब आप अपने देश या अपने गंतव्य स्थान वापसी कर लें तो जो भी रोज छूट गए हैं उन्हें दोबारा रखा जा सकता है.

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क्रिकेटर मोहम्मद शमी ने मैच की दौरान पी थी एनर्जी ड्रिंक
क्रिकेटर मोहम्मद शमी ने मैच की दौरान पी थी एनर्जी ड्रिंक

हाल ही में इंडिया-ऑस्ट्रेलिया के मैच में भारत ने जीत हासिल की थी, लेकिन जीत के जश्न के बीच एक अलग ही विवाद उठ खड़ा हुआ है. असल में दुबई में खेले गए मैच के दौरान मोहम्मद शमी का एनर्जी ड्रिंक पीते हुए वीडियो सामने आया था. जिसपर मौलाना नाराजगी जता रहे हैं. ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन रजवी ने बयान जारी करके कहा कि इस्लाम ने रोजे को फर्ज करार दिया है. अगर कोई शख्स जानबूझकर रोजा नहीं रखता है तो वह निहायती गुनहगार है. मोहम्मद शमी ने रोजा नहीं रखा जबकि रोजा रखना उनका वाजिब फर्ज है. रोजा न रखकर शमी ने बहुत बड़ा गुनाह किया है, शरीयत की नजर में वो मुजरिम हैं. 

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क्यों हो रही है चर्चा?
बकौल मौलाना शहाबुद्दीन रजवी, 'मोहम्मद शमी को हरगिज ऐसा नहीं करना चाहिए. मैं उनको हिदायत और नसीहत देता हूं कि इस्लाम के जो नियम हैं उनपर वो अमल करें. क्रिकेट, खेलकूद भी करें, सारे काम अंजाम दें, मगर अल्लाह ने जो जिम्मेदारी बंदे को दी है, उनको भी निभाएं. शमी को ये सब समझना चाहिए. शमी अपने गुनाहों के लिए अल्लाह से माफी मांगें.'

वायरल हुई थी क्रिकेटर शमी की फोटो
आपको बता दें कि दुबई में खेले गए इंडिया बनाम ऑस्ट्रेलिया सेमीफइनल मैच के दौरान मोहम्मद शमी की एक फोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो गई, जिसमें वह गर्मी के बीच एनर्जी ड्रिंक पीते नजर आ रहे हैं. जिसके बाद मौलाना लोगों ने इसे गलत करार दिया. उनका कहना है कि रमजान में रोजा न रखना गुनाह है. मौलानाओं ने शमी को नसीहत देना शुरू कर दिया है. 

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इस्लाम खास परिस्थितियों में देता है रोजे से छूट
इसी बीच, मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने शमी का बचाव किया है और उन्होंने इस्लामिक कायदों और हदीस में दिए तर्कों के आधार पर आजतक से बातचीत में कहा कि, क्रिकेटर शमी के लिए जिस तरह की बात की जा रही है, वह सरासर गलत हैं. मोहम्मद शमी अपने प्रदर्शन से टीम इंडिया को फाइनल में जीत दिलाएंगे. उन्होंने यह भी कहा कि, इस्लाम कुछ विशेष परिस्थितियों में रोजा से छूट देता है और यह भी कहता है कि, छूटे हुए रोज बाद में रखे जा सकते हैं. 

मौलाना खालिद रशीद फिरंगी महली ने बताया कि, इस्लाम में ऐसा नहीं कहा गया है कि अगर आप नेशनल ड्यूटी पर हैं तो भी रोजा रखना ही रखना है. इस्लाम में कहा गया है कि अगर आप सफर कर रहे हैं तो रोजा नहीं भी रख सकते हैं. सफर के बाद जब आप अपने देश या अपने गंतव्य स्थान वापसी कर लें तो जो भी रोज छूट गए हैं उन्हें दोबारा रखा जा सकता है. उन्होंने शमी के खिलाफ हो रही बातों को गलत करार देते हुए कहा कि, 'इस तरह की बात करना गलत है. इस तरह के बयान से खिलाड़ी की मानसिक स्थिति कमजोर हो सकती है. मोहम्मद शमी देश का मन हैं और हम उम्मीद करते हैं कि वह अपने प्रदर्शन से टीम इंडिया को फाइनल में जीत दिलाएंगे.

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उन्होंने कहा कि, मैं मोहम्मद शमी से कहूंगा कि वह निश्चिन्त होकर अपने गेम पर ध्यान दें और जब भी अपने देश वापस आए तब जो रोजे उनके छूटे हैं उन्हें रख सकते हैं.

इस्लाम में पवित्र महीना माना गया है रमजान
बता दें कि, इस्लाम धर्म में रमज़ान को एक विशेष और पवित्र महीना माना गया है. इसमें मुसलमान यानी इस्लाम के अनुयायी सूर्योदय से सूर्यास्त तक एक तरह का उपवास रखते हैं और यही उपवास 'रोज़ा' कहलाता है. रोज़ा न केवल शारीरिक संयम का अभ्यास है, बल्कि आत्मिक शुद्धिकरण और अल्लाह की राह में पूरी तरह समर्पण की निशानी भी है. रोजा इस्लामी आस्था की पांच जरूरी बातों (कलमा, नमाज़, रोज़ा, ज़कात और हज) में से एक है.

क्या है रोजा?
रोज़ा आत्मसंयम और आत्मानुशासन को बढ़ावा देने का एक जरिया है और इस्लाम कहता है कि रोज़ा सिर्फ और भूखे-प्यासे रहने का नाम नहीं है, बल्कि अपने चाल-चलन, आचरण को साफ रखना भी है. यह हमें इंसान बनना सिखाता है और गरीबों और जरूरतमंदों की तकलीफों को समझने में मदद करता है. रोजा हमें अधिक दयालु और संवेदनशील बनाता है. 

कुरआन में रोज़े को लेकर कहा गया है कि, 'ऐ ईमान वालों! तुम पर रोज़ा फ़र्ज़ किया गया, जिस तरह तुमसे पहले लोगों पर किया गया था, ताकि तुम तक़वा (धार्मिकता) हासिल कर सको." इससे स्पष्ट होता है कि रोज़ा केवल शारीरिक अभ्यास नहीं है, बल्कि यह आत्मिक और नैतिक उन्नति का साधन भी है.

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रोज़े के नियम
रोज़े के दौरान कुछ खास नियमों का पालन जरूरी होता है:

सूर्योदय से सूर्यास्त तक भोजन और पानी का परहेज
धूम्रपान और किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थों से परहेज 
झूठ बोलने, गाली-गलौज करने और गलत कार्यों से बचना जरूरी

रोज़ा और इफ्तार
रोज़ा खोलने की प्रक्रिया को 'इफ्तार' कहा जाता है, जो सूर्यास्त के बाद किया जाता है. पैगंबर मुहम्मद की परंपरा के अनुसार, खजूर और पानी से इफ्तार करना सबसे अच्छा माना जाता है. इफ्तार में हल्के और पोषक तत्वों से भरपूर भोजन लेना चाहिए, जिनसे शारीरिक ताकत बनी.

किन लोगों को और कब मिल सकती है रोजे में छूट?
डॉ. रज़ीउल इस्लाम नदवी, (सचिव, शरिया काउंसिल, जमात-ए-इस्लामी हिंद) कहते हैं कि रोजा सब पर फर्ज है, जरूरी है कि वह स्वस्थ होना चाहिए. कुरान पाक में इस बारे में साफ-साफ आया है कि जो बीमार हैं और जो सफर में हैं, उन्हें रोजे से छूट है. इसके साथ ही कुरान में छूटे हुए रोजे को पूरा करने के लिए कजा की व्यवस्था भी है. यानी कि अगर किसी वजह से रोजेदार के जो रोजे छूट गए हैं या विपरीत परिस्थितियों में वह रोजा नहीं रख पाया हो तो वह कजा कर सकता है. वहीं इसके अलावा हदीस कुछ और मामलों में लोगों को रोजे से छूट देता है. 

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1. बीमारः अगर कोई ऐसा बीमार है कि रोजा रखने से उसकी सेहत बिगड़ सकती है या डॉक्टर ने मना किया हो, तो वह रोजा छोड़ सकता है. बाद में जब स्वस्थ हो जाए, तो क़ज़ा (छूटे हुए) रोजे रखे जा सकते हैं.

2. मुसाफिरः अगर कोई लंबी यात्रा पर है (शरीयत के अनुसार लगभग 78 किमी या उससे अधिक), तो उसे रोजा न रखने की छूट है, लेकिन बाद में इसकी क़ज़ा कर सकता है. 

3. गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएं: अगर रोजा रखने से महिला या उसके बच्चे की सेहत पर असर पड़ता है, तो वह रोजा छोड़ सकती है और बाद में इसकी क़ज़ा कर सकती हैं.

4. बहुत बुजुर्ग: जो इतने बुजुर्ग हो चुके हैं कि रोजा नहीं रख सकते, वे रोजे के बदले फिदिया (गरीबों को खाना खिलाने) कर सकते हैं. फिदिया के लिए कहा गया है कि, ऐसे लोग जो रोजा न रख पाएं वह दो वक्त का खाना किसी जरूरतमंद को खिलाकर अपना रोजा पूरा कर सकते हैं. ये उनके लिए भी है, जो लोग डायबिटीज या किडनी की बीमारी से जूझ रहे हैं, रोजाना दवा खाते हैं और रोजा रखना उनके लिए मुश्किल हो सकता है तो ऐसे लोग फिदिया कर सकते हैं. 

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5. हैज (मासिक धर्म) या निफास (डिलीवरी के बाद का खून): इस दौरान महिलाओं को रोजा रखने की मनाही है. बाद में वे भी क़ज़ा करेंगी.

6. मानसिक रूप से अक्षम व्यक्ति: जो मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं है, उन पर रोजा फर्ज नहीं है. 

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