गुजरात के मोरबी में जो भयंकर हादसा हुआ है, उसने प्रशासन से लेकर रिनोवेशन करने वाली कंपनी को सवालों के घेरे में ला दिया है. सवाल उठ रहे हैं कि आखिर 135 लोगों की मौत का जिम्मेदार कौन है? अब इस सवाल का जवाब तो जांच के बाद ही सामने आएगा, लेकिन कोर्ट के सामने रिनोवेशन करने वाली कंपनी ओरेवा के एक मैनेजर ने इस पूरी त्रासदी को Act of God बता दिया था, यानी कि ऐसी घटना जहां पर स्थिति इंसानों के हाथ में नहीं रहती और प्रकृति अपना खेल करती है. लेकिन क्या मोरबी हादसा Act of God है? क्या Act of God के नाम पर कोई भी आरोपी खुद को सजा से बच सकता है?
एक्ट ऑफ गॉड की परिभाषा क्या?
अब एक्ट ऑफ गॉड कहने को सिर्फ एक शब्द है, लेकिन कानूनी भाषा में इसके मायने पूरी तरह बदल जाते हैं. सुप्रीम कोर्ट के आदेशों पर नजर डालें तो वहां भी कई मौकों पर एक्ट ऑफ गॉड का जिक्र किया गया है. उन आदेशों में एक्ट ऑफ गॉड को विस्तृत रूप से समझाया गया है. कहा गया है कि मानव हस्तक्षेप से मुक्त जो भी प्राकृतिक त्रासदी होती है, उसे एक्ट ऑफ गॉड कहा जाता है. लेकिन हर बार किसी तूफान या तेज हवा के झोंके को बहाने के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है, जवाबदेही से भागा नहीं जा सकता है. इस बात पर भी जोर दिया गया है कि एक्ट ऑफ गॉड सिर्फ उन्हीं स्थितियों में लागू होता है जब कोई इतनी बड़ी प्राकृतिक त्रासदी हो जाए कि मानव हस्तक्षेप द्वारा उसे रोका या फिर उसे बचा नहीं जा सकता.
कब इस्तेमाल होता एक्ट ऑफ गॉड?
ये देखा गया है कि एक्ट ऑफ गॉड का इस्तेमाल उन मामलों में ज्यादा होता है जहां पर किसी दूसरी पार्टी को बीमा या फिर दूसरे क्लेम लेने से रोकना हो. इसे उन मामलों में एक डिफेंस के रूप में इस्तेमाल किया जाता है जिससे जवाबदेही से बचा जा सके. इसी तरह कानून में एक शब्द होता है force majeure. इसका सरल शब्दों में मतलब ये रहता है कि कोई भी पार्टी उस स्थिति में जवाबदेह नहीं रहेगी अगर किसी प्राकृतिक आपदा या फिर प्राकृतिक त्रासदी की वजह से कोई काम बिगड़ जाए या फिर किसी तरह का नुकसान हो जाए.
अब एक्ट ऑफ गॉड का मतलब तो समझ लिया, लेकिन क्या मोरबी मामले में इसका इस्तेमाल कर आरोपी अपनी सजा से बच सकता है? ये जानने के लिए आजतक ने कई लीगल एक्सपर्ट से बात की है.
एक्सपर्ट क्या बताते हैं?
सीनियर अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा के मुताबिक कानून में मौत को तीन कैटेगरी में बांटा गया है. इसमें हत्या, गैर इरादतन हत्या और लापरवाही शामिल है. लेकिन सिद्धार्थ मानते हैं कि कई मामलों में आरोपी ये दिखाना चाहते हैं कि असल में ये मौत कोई लापरवाही या मानव गलती की वजह से नहीं हुई है. लेकिन उस स्थिति में भी दूसरी पार्टी को क्रास एग्जामिनेशन करने का पूरा मौका मिलता है. ऐसे में जब तक कानून के दायरे में रहते हुए पर्याप्त सबूत नहीं दिखाए जाएंगे, उसे एक्ट ऑफ गॉड नहीं माना जा सकता.
वहीं एडवोकेट संजय घोष ने तो दो टूक कहा है कि एक्ट ऑफ गॉड का ये मतलब नहीं कि कोई भी सरकार अपनी जिम्मेदारी से भाग जाए. सुरक्षा से लेकर क्राउड मैनेजमेंट तक, हर जिम्मेदारी सरकार की है, अगर वो पूरी नहीं होगी तो उसे एक्ट ऑफ गॉड नहीं कहा जा सकता है. एडवोकेट फुजैल अहमद तो मोरबी हादसे को लेकर बताते हैं कि ब्रिज पर जरूरत से ज्यादा लोगों को जाने दिया गया था, वहीं ब्रिज के तारों की ताकत और क्वालिटी भी नहीं सुधारी गई थी. ऐसे में इस केस में एक्ट ऑफ गॉड का लागू होना मुश्किल है.
अब इन तर्कों से ये भी साफ हो चुका है कि हर मामले में एक्ट ऑफ गॉड लागू नहीं होता है और इसके जरिए सजा से बच जाना भी मुश्किल ही है. लेकिन इस सब के बावजूद भी पिछली कई घटनाओं पर नजर डालें तो वहां भी अधिकारियों ने एक्ट ऑफ गॉड के नाम पर अपनी जवाबदेही से बचने की पूरी कोशिश की है. फिर चाहे वो दिल्ली के उपहार सिनेमा में आग लगने वाली घटना रही हो या फिर कोलकाता में साल 2016 में फ्लाइओवर टूटने की घटना. दोनों ही मामलों में हादसे को एक्ट ऑफ गॉड का नाम दिया गया था. ये अलग बात रही कि कोलकाता वाले केस में बाद में अधिकारियों ने उसे एक एक्सिडेंट मान लिया था.
Association of Victims of the Uphaar Tragedy (AVUT) की संजोयक नीलम कृष्णमूर्ति तो मानती हैं कि मोरबी हादसा जो हुआ, वो पूरी तरह एक मानव रचित आपदा है. उनके मुताबिक इस तरह तो हर हत्या और एक्सिडेंट को एक्ट ऑफ गॉड मान लिया जाएगा, फिर कोर्ट की क्या ही जरूरत रह जाएगी.