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Morbi Bridge Tragedy: गुजरात के मोरबी में मच्छु नदी पर बना केबल ब्रिज कैसे टूटा? इसकी जांच के लिए पांच सदस्यों की SIT का गठन किया गया है. हालांकि, पुलिस का मानना है कि पहली नजर में पुल के टूटने की वजह तकनीकी और संरचनात्मक खामी लग रही है. साथ ही इसकी मरम्मत को लेकर भी कुछ मसले थे.
मोरबी में हुए इस हादसे के बाद पश्चिम बंगाल सरकार ने राज्य में बने सभी केबल ब्रिज की रिपोर्ट मांगी है. वहीं, इस हादसे से सबक लेते हुए गुजरात सरकार ने भी अहमदाबाद में बने अटल ब्रिज पर एक समय में 3 हजार लोगों को ही जाने की सीमा तय कर दी है.
दरअसल, मोरबी में मच्छु नदी पर बना केबल ब्रिज रविवार को टूट गया था. इस हादसे में 134 लोगों के मारे जाने की पुष्टि हो चुकी है. 7 महीने तक चली मरम्मत के बाद 26 अक्टूबर को ही इस ब्रिज को दोबारा आम लोगों के लिए खोला गया था.
इस हादसे के बाद एक्सपर्ट सलाह दे रहे हैं कि अब पुराने ब्रिज को रिपेयर करने से अच्छा है कि नया सस्पेंशन ब्रिज ही बना दिया जाए. पर ऐसा क्यों? ये जानने से पहले जानते हैं कि सस्पेंशन ब्रिज होता क्या है और बाकी दूसरे पुलों से ये कितना अलग होता है?
1. क्या होता है सस्पेंशन ब्रिज?
- स्कूल ऑफ प्लानिंग एंड आर्किटेक्चर के प्रोफेसर सेवा राम ने बताया कि सस्पेंशन ब्रिज में ओवरहेड केबल होती हैं, जो इसके रोडवे को सपोर्ट करते हैं, जिसे स्पैन कहा जाता है. स्पैन जितना लंबा होगा, पुल उतना ही लटकेगा.
- आमतौर पर सस्पेंशन ब्रिज या केबल ब्रिज को पानी के ऊपर ही बनाया जाता है, क्योंकि यहां सपोर्ट पिलर बनाना आसान नहीं होता है. साथ ही पिलर वाले ब्रिज से जहाजों को निकलने में भी परेशानी होती है.
- सस्पेंशन ब्रिज को भी सुरक्षित माना जाता है. इन्हें बनाने में समय और लागत, दोनों ही कम लगती है, इसलिए ये ब्रिज बनाने के लिए बेहतर विकल्प माने जाते हैं.
- ऐसे पुलों पर एक बार में कितने लोग चढ़ सकते हैं? ये स्पैन की लंबाई पर निर्भर करता है. सस्पेंशन केबल को बढ़ाकर इसकी कैपेसिटी को बढ़ाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए स्ट्रक्चरल डिजाइन में भी बदलाव करना होता है.
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2. ऐसे पुल टूट कैसे जाते हैं?
- सस्पेंशन ब्रिज के टूटने के कई कारण हो सकते हैं. सेवा राम मानते हैं कि भले ही पुल की केबल मजबूत स्टील के तारों से बनी होती हैं, लेकिन इनकी अपनी क्षमता होती है. जब एक समय में जरूरत से ज्यादा लोग पुल पर आते हैं तो इससे केबल पर प्रेशर पड़ता है और ये टूट सकती हैं.
- सेवा राम ये भी कहते हैं कि जब ऐसे पुलों को कुछ लोग हिलाते हैं, उस पर कूदते हैं या झूलते हैं, तो उससे भी केबलों पर प्रेशर पड़ता है.
3. मोरबी का पुल कैसे टूटा?
- हादसे से पहले का एक CCTV वीडियो सामने आया है. इसमें दिख रहा है कि कुछ लोग पुल को हिला रहे हैं और उसके कुछ सेकंड बाद ही ब्रिज टूट जाता है.
- इस वीडियो के आधार पर सेवा राम का मानना है कि पुल के सस्पेंशन केबल पहले टूट गए और फिर पुल मुड़ गया, जिससे लोग नदी में गिर गए. हो सकता है कि स्टील के तार प्रेशर न झेल पाए हों. लेकिन जांच रिपोर्ट आने के बाद ही इसका सही कारण पता लग सकता है.
- वहीं, राजकोट रेंज के आईजी अशोक कुमार यादव ने बताया कि शुरुआती जांच से पता चलता है कि इसमें कुछ तकनीकी और संरचनात्मक खामियां थीं. साथ ही इसकी मरम्मत से जुड़े कुछ मसले भी थे.
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4. इससे सबक क्या ले सकते हैं?
- मोरबी हादसे से सीखने के लिए बहुत कुछ है. सेवा राम का कहना है कि इंजीनियरिंग का काम पूरा होने के बाद अक्सर इसके ऑपरेशन को नजरअंदाज कर दिया जाता है, जो नहीं होना चाहिए.
- उनका कहना है कि एंट्री प्वॉइंट पर क्या करें और क्या न करें और पुल की कैपेसिटी के बारे में जानकारी होनी चाहिए. लोगों को हिलना, कूदना या इकट्ठा होने से मना करना चाहिए.
- उनका का ये भी कहना है कि ऐसे पुलों को बार-बार मरम्मत या रेनोवेट करने की बजाय तोड़ देना चाहिए और नया ब्रिज बनाना चाहिए.
5. मोरबी पुल की मरम्मत में क्या खामियां?
- सेवा राम का कहना है कि मोरबी पुल के मामले में पुरानी जंग लगी तारों को बदला नहीं गया था और ओवरलोड होने से ये टूट गईं. ऐसे में पुरानी जंग लगी तारों को किसी भी फ्लाईओवर या रोपवे में इस्तेमाल करने की इजाजत नहीं होनी चाहिए.
- पुरानी तारों को रिप्लेस करना चाहिए और हर तार को BIS स्टैंडर्ड के हिसाब से टेस्टेड होना चाहिए. जंग लगने के कारण नट बोल्ट कमजोर हो गए थे, उन सभी को बदलना चाहिए था. जबकि, पुल की तस्वीरों में दिख रहा है कि वो पुराने ही थे.
- एक्सपर्ट्स का मानना है कि तस्वीरों में दिख रहा है कि पुल के एंट्री पाथ में फ्लोर प्लेट्स ठीक से फिक्स नहीं हैं. फिसलन को रोकने के लिए चेकर्ड प्लेटों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए था.
6. अब आगे क्या?
- मोरबी हादसे की जांच के लिए पांच सदस्यों की कमेटी का गठन किया गया है. इसमें म्युनिसिपल एडमिनिस्ट्रेशन कमिश्रन राजकुमार बेनीवाल, चीफ इंजीनियर केएम पटले, स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग के एचओडी डॉ. गोपाल टैंक, सचिव संदीप वसावा और सीआईडी (क्राइम) आईजी सुभाष त्रिवेदी शामिल हैं.
- पांच सदस्यों की SIT ने जांच शुरू कर दी है. सोमवार को SIT की टीम घटनास्थल पर पहुंची थी. यहां अधिकारियों के साथ फॉरेंसिक टीम ने टूटे हुए तारों और प्लेटफॉर्म का मुआयना किया था.
7. हादसे के लिए कौन जिम्मेदार?
- मोरबी में हुए हादसे के बाद हत्या समेत कई धाराओं में केस दर्ज किया गया है. एफआईआर में इस घटना के लिए लोगों के रवैये को भी जिम्मेदार माना गया है.
- एफआईआर में आगे कहा गया है कि संबंधित व्यक्तियों या एजेंसियों ने पुल के रखरखाव की क्वालिटी के साथ-साथ मरम्मत के काम पर भी ध्यान नहीं दिया.
- पुल की मरम्मत और रखरखाव का काम अजंता मैनुफैक्चरिंग (ओरेवा ग्रुप) को मिला था. इसके लिए इसी साल मार्च में पुल को बंद भी कर दिया था. ओरेवा ग्रुप को 15 साल के लिए पुल के रखरखाव और संभालने का कॉन्ट्रैक्ट मिला है.
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8. अब तक कुछ गिरफ्तार हुए या नहीं?
- अब तक 9 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है. राजकोट रेंज के आईजी अशोक कुमार यादव ने बताया कि जिन लोगों को गिरफ्तार किया गया है, उनमें ओरेवा ग्रुप के दो मैनेजर, दो टिकट क्लर्क, दो कॉन्ट्रैक्टर और तीन सिक्योरिटी गार्ड शामिल हैं.
- मामले में दो मैनेजर- दीपक भाई नवीनचंद्र पारेख और मनसुख भाई दवे, दो टिकट क्लर्क- मदनभाई लाखा भाई सोलंकी और मनसुख भाई वालजी भाई टोपिया, दो कॉन्ट्रैक्टर- प्रकाशभाई लालजी भाई परमार और देवांग भाई लालजी भाई परमार को गिरफ्तार किया गया है.
9. पर पीड़ितों को क्या?
- इस हादसे में 134 लोगों की मौत हो चुकी है. कई लोग घायल हैं जिनका इलाज जारी है. अभी भी कुछ लोग लापता बताए जा रहे हैं.
- केंद्र और राज्य सरकार ने हादसे के पीड़ितों ने मुआवजे का ऐलान किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ऐलान किया है कि मारे गए लोगों के परिवार को 2 लाख और घायलों को 50 हजार रुपये का मुआवजा दिया जाएगा.
- वहीं, राज्य सरकार ने भी मृतकों के परिजनों को 4 लाख रुपये और घायलों को 50 हजार रुपये का मुआवजा देने का ऐलान किया है.
10. कहां बना था पुल?
- ये पुल मच्छु नदी पर बना था. ये पुल 765 फुट लंबा और 4 फुट चौड़ा है. ये पुल 143 साल पुराना था.
- 1879 में इस पुल का उद्घाटन किया गया था. इसे मोरबी के राजा सर वाघजी ठाकोर ने बनवाया था. वाघजी ठाकोर ने 1922 तक मोरबी पर शासन किया था.
- ये पुल इंजीनियरिंग का चमत्कार माना जाता है. बताया जाता है कि वाघजी ठाकोर ने इस पुल को बनाने का फैसला इसलिए लिया था, ताकि दरबारगढ़ पैलेस को नजरबाग पैलेस से जोड़ा जा सके.