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चुनावी सरगर्मी बढ़ने के साथ ही देश में मुस्लिम आरक्षण पर बहस भी तेज हो गई है. एक तरफ जहां बीजेपी विपक्षी गठबंधन पर मुस्लिमों को आरक्षण देने का आरोप लगा रही है तो वहीं विपक्षी दल भी इस मामले पर खुलकर सामने आ गए हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी नेता अपनी रैलियों में कांग्रेस पर धर्म के आधार पर आरक्षण देने का आरोप लगा रहे हैं. इस बीच बिहार के पूर्व सीएम और आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने मुसलमानों को आरक्षण देने की खुलकर वकालत की है.
लालू यादव ने मंगलवार को कहा कि बीजेपी वाले डर गए हैं, लोगों को सिर्फ भड़का रहे हैं, वो संविधान खत्म करना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि मुसलमानों को पूरा आरक्षण तो मिलना चाहिए. इसे लेकर बीजेपी ने पूरे विपक्ष को घेरा है.
ये पहली बार नहीं है जब मुस्लिम आरक्षण चुनावी मुद्दा बना है. पिछले साल जब कर्नाटक और तेलंगाना में विधानसभा चुनाव हुए थे, तब भी ये मुद्दा बना था. तब एक रैली में अमित शाह ने कहा था कि मुस्लिमों को आरक्षण संविधान के खिलाफ है.
ऐसे में जानते हैं कि मुस्लिम आरक्षण की संविधान में क्या व्यवस्था है? कौन-कौन से राज्यों में मुस्लिमों को आरक्षण मिलता है? और जो धर्म बदलकर मुस्लिम बने हैं, क्या उन्हें भी कुछ आरक्षण मिलता है?
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मुस्लिम आरक्षण की क्या है व्यवस्था?
केंद्र और राज्य स्तर पर मुस्लिमों की कई जातियों को ओबीसी आरक्षण दिया जाता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, अभी मुस्लिमों की 36 जातियों को केंद्रीय स्तर पर ओबीसी आरक्षण दिया जाता है.
इसके लिए संविधान के अनुच्छेद 16(4) में व्यवस्था की गई है. इसके मुताबिक, अगर सरकार को लगता है कि नागरिकों का कोई वर्ग पिछड़ा है तो नौकरियों में उनके सही प्रतिनिधित्व के लिए आरक्षण दे सकती है.
रिपोर्ट के मुताबिक, केंद्र की ओबीसी लिस्ट में कैटेगरी 1 और 2A में मुसलमानों की 36 जातियों को शामिल किया गया है. हालांकि, जिन परिवारों की सालाना कमाई आठ लाख रुपये से ज्यादा है, उन्हें क्रीमी लेयर माना जाता है और उन्हें आरक्षण नहीं मिलता. भले ही फिर वो जाति पिछड़ा वर्ग में ही क्यों न आती हो.
मुस्लिम आरक्षण की बात क्यों?
ऐसी कई सरकारी रिपोर्टें हैं, जिनमें कहा गया है कि मुसलमान सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हैं. 2006 में सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया था मुसलमान समुदाय हिंदू ओबीसी से पिछड़ा हुआ है. सच्चर कमेटी ने कहा था कि हिंदू पिछड़ों और दलितों को तो आरक्षण का लाभ मिल रहा है, लेकिन मुस्लिमों को नहीं.
जबकि, इससे पहले मंडल आयोग ने भी 82 सामाजिक वर्गों की पहचान की थी, जिसे उसने पिछड़ा मुसलमान माना था.
साल 2009 में रिटायर्ड जस्टिस रंगनाथ मिश्रा की कमेटी ने भी मुस्लिम आरक्षण की वकालत की थी. कमेटी ने अल्पसंख्यकों को 15 फीसदी आरक्षण देने का सुझाव दिया था. इनमें से मुसलमानों के लिए 10 फीसदी और बाकी अल्पसंख्यकों के लिए 5 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की गई थी.
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किन राज्यों में है मुस्लिमों को आरक्षण?
देश के कई राज्य ऐसे हैं, जहां मुस्लिमों को ओबीसी के तहत आरक्षण दिया जाता है. केरल में ओबीसी को 30% आरक्षण दिया जाता है. इसके अंदर ही कुछ कोटा मुस्लिमों के लिए भी है. यहां मुसलमानों को नौकरियों में 8% और हायर एजुकेशन में 10% कोटा मिलता है.
तमिलनाडु में भी मुस्लिमों को आरक्षण मिलता है. यहां पिछड़े वर्ग के मुसलमानों को 3.5% आरक्षण मिलता है. रिपोर्ट्स बताती हैं कि इस कोटे में मुसलमानों की 95% जातियां शामिल होती हैं.
इसी तरह बिहार में मुसलमानों की कुछ जातियों को 'अति पिछड़ा वर्ग' में शामिल किया गया है. अति पिछड़ा वर्ग में शामिल जातियों और उपजातियों को 18 फीसदी आरक्षण दिया जाता है. पिछले साल हुए बिहार के जातिगत सर्वे में 73 फीसदी मुसलमानों को 'पिछड़ा वर्ग' माना गया था.
कर्नाटक में सभी मुसलमानों को 4 फीसदी आरक्षण मिलता है. कर्नाटक में ओबीसी को 32% आरक्षण मिलता है. इसकी कैटेगरी 2A में मुस्लिमों की सभी जातियों को शामिल किया गया है. इससे इन्हें 4% आरक्षण मिल गया है.
आंध्र प्रदेश में कैसे फंस गया पेच?
आंध्र प्रदेश में भी मुसलमानों को आरक्षण देने की कोशिश की गई है, लेकिन अदालत ने इसे रोक दिया. सबसे पहली बार 2004 में ऐसी कोशिश हुई थी. तब सरकार ने सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा होने का हवाला देकर मुस्लिमों के लिए ओबीसी कोटे में 5 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की थी. हालांकि, कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया था.
इसके बाद राज्य के पिछड़ा वर्ग आयोग ने सभी मुसलमानों को पिछ़ड़ा माना था. इसके आधार पर सरकार ने 2005 में एक बार फिर सभी मुसलमानों के लिए 5 फीसदी आरक्षण तय किया. लेकिन एक बार फिर कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया.
2010 में फिर एक बार मुसलमानों की कुछ जातियों को 4 फीसदी आरक्षण देने की व्यवस्था की गई. लेकिन कोर्ट ने इसे ये कहते हुए रद्द कर दिया कि ऐसा आरक्षण की व्यवस्था करने से पहले कोई सर्वे नहीं किया गया था. आंध्र प्रदेश में मुसलमानों के आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में है. इस पर अभी फैसला होना बाकी है.
हालांकि, इस बीच आंध्र प्रदेश में एनडीए की सहयोगी टीडीपी ने मुस्लिम आरक्षण का वादा किया है. टीडीपी प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने मुसलमानों को 4 फीसदी आरक्षण देने का वादा किया है.
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मुस्लिमों को कैसे मिलता है ये आरक्षण?
भारतीय संविधान समानता की बात करता है. इसमें धर्म के आधार पर आरक्षण का प्रावधान नहीं है. संविधान कहता है कि अगर कोई वर्ग पिछड़ा है तो उसे मुख्यधारा में लाने के लिए आरक्षण दिया जा सकता है.
1992 में इंदिरा साहनी बनाम केंद्र सरकार मामले में फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि अगर कोई सामाजिक समूह पिछड़ा है तो उसे पिछड़ा वर्ग माना जाएगा, फिर चाहे उसकी धार्मिक पहचान कुछ भी हो.
अभी मुसलमानों को जो आरक्षण दिया जाता है, वो कोटे के अंदर कोटा सिस्टम के जरिए मिलता है. मुसलमानों की जो जातियां एससी, एसटी या फिर ओबीसी में शामिल हैं, उन्हें इस कैटेगरी के अंदर ही आरक्षण मिलता है. मुस्लिमों की जातियों के लिए अलग से कोई कोटा नहीं है.
मसलन, केरल में मुस्लिमों को हायर एजुकेशन में 8% आरक्षण मिलता है, उन्हें ये ओबीसी के ही 30% कोटे से दिया जाता है.
कन्वर्टेड मुस्लिमों का क्या?
अगर कोई दलित व्यक्ति हिंदू धर्म छोड़कर इस्लाम या ईसाई धर्म कबूल कर लेता है, तो क्या उसे आरक्षण का लाभ मिलेगा? ये मामला भी सुप्रीम कोर्ट में है.
सुप्रीम कोर्ट में इसे लेकर कई याचिकाएं दायर हैं. इसमें मांग की गई है कि धर्म बदलकर मुस्लिम या ईसाई बनने वाले दलितों को भी अनुसूचित जाति (एससी) का दर्जा दिया जाए और आरक्षण समेत दूसरे लाभ दिए जाएं.
इन याचिकाओं में संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश 1950 को भी चुनौती दी गई है. 1950 का ये आदेश कहता है कि हिंदू, सिख और बौद्ध धर्म के दलितों के अलावा दूसरे धर्मों के लोगों को अनुसूचित जाति का दर्जा नहीं दिया जा सकता.
पिछले साल अप्रैल में केंद्र सरकार ने धर्म बदलकर मुस्लिम या क्रिश्चियन बन चुके दलितों को एससी में शामिल करने की मांग वाली याचिकाओं का विरोध किया था.
किस आधार पर हुआ मुस्लिम आरक्षण का विरोध?
केंद्र सरकार ने 1950 के आदेश को चुनौती देने दिए जाने का भी विरोध किया था. केंद्र ने कहा था कि ये आदेश 'असंवैधानिक' नहीं है और इससे ईसाई और इस्लाम धर्म को इसलिए बाहर रखा गया था क्योंकि इन दोनों धर्मों में 'छुआछूत' नहीं है.
इसके अलावा 2007 में जस्टिस रंगनाथ मिश्रा आयोग ने दलित मुस्लिमों और दलित ईसाइयों को एससी का दर्जा देने की सिफारिश की थी. सरकार ने इन सिफारिशों को 'खामी' भरा बताते हुए नामंजूर कर दिया था.
पिछले साल अप्रैल में केंद्र सरकार ने दलित मुस्लिमों और दलित ईसाइयों को एससी का दर्जा देने की मांग वाली याचिकाओं पर फैसला लेने से पहले पूर्व चीफ जस्टिस केजी बालकृष्णन की अगुवाई वाली कमेटी की रिपोर्ट आने तक का इंतजार करने का अनुरोध किया था.
फिलहाल, ये मामला सुप्रीम कोर्ट में है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर ही निर्भर करेगा कि धर्म बदलकर मुस्लिम या ईसाई बन चुके दलितों को अनुसूचित जाति का दर्जा मिलेगा या नहीं?