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Ram Mandir Pran Pratishtha: क्यों राम मंदिर के लिए नागर शैली को चुना गया, किस तरह अलग होते हैं ये मंदिर?

अयोध्या के जिस मंदिर में आज श्रीराम की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है, वो नागर शैली में बना हुआ है. प्राचीन भारत में मंदिर निर्माण की खास 3 शैलियों में से एक नागर स्थापत्य में मंदिर काफी खुला हुआ होता है, जबकि मुख्य भवन चबूतरे पर बना होता है. जानिए, क्या है नागर शैली और क्यों इसे राम मंदिर के लिए चुना गया.

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आज राम लला की प्राण प्रतिष्ठा है. (Photo- PTI)
आज राम लला की प्राण प्रतिष्ठा है. (Photo- PTI)

आज राम लला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर पूरे देश में जश्न का माहौल है. राम मंदिर बेहद भव्य हो, इसकी सारी कोशिशें की गईं, चाहे इसमें मकराना का संगमरमर हो, या फिर नक्काशी के लिए इस्तेमाल खास कर्नाटकी बलुआ. लेकिन इन सारी चीजों के बीच जानने की बात ये है कि मंदिर नागर स्थापत्य की स्टाइल में बना है. राम मंदिर के लिए नागर शैली को लिया गया क्योंकि उत्तर भारत और नदियों से सटे हुए इलाकों में यही शैली प्रचलित है. इस वास्तुकला की अपनी खासियतें हैं. 

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मंदिर के लिए ये हैं शैलियां 

देश में मंदिर बनाने की तीन शैलियां प्रमुख थीं, इसमें नागर, द्रविड़ और वेसर हैं. 5वीं सदी के उत्तर भारत में मंदिरों पर ये प्रयोग होने लगा. इसी दौरान साउथ में द्रविड़ शैली विकसित हो चुकी थी. नागर शैली में मंदिर बनाते हुए कुछ खास बातों का ध्यान रखा जाता है. जैसे इसमें मुख्य इमारत ऊंची जगह पर बनी होती है, जैसे कोई चबूतरानुमा स्थान. इसपर ही गर्भगृह होता है, जहां मंदिर के मुख्य देवी या देवता की पूजा होती है.

गर्भगृह है सबसे पवित्र स्थान

राम लला की प्राण प्रतिष्ठा गर्भगृह में ही हो रही है. इसी के ऊपर शिखर होता है. दोनों ही जगहें काफी पवित्र और मुख्य मानी जाती हैं. शिखर के ऊपर आमलक भी होता है. बता दें कि मंदिर की वास्तु में ये खास आकृति है, जो शिखर पर फल के आकार की होती है. 

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गर्भगृह के चारों तरफ प्रदक्षिणा पथ होता है. साथ में कई और मंडप होते हैं, जिनपर देवी-देवताओं या उनके वाहनों, फूलों की नक्काशी बनी होती है. इसके साथ एक कलश और मंदिर की पताका यानी ध्वज भी रहता है. 

nagara style temple ayodhya ram mandir pran pratishtha photo PTI

ये चीजें भी शामिल हैं नागर में

नागर वास्तु अपने में काफी विस्तृत शैली है. इसके तहत पांच तरीकों से मंदिर बनाया जा सकता है.

वलभी शैली के मंदिर में लकड़ी की छत होती है, जो कि नीचे की तरफ घुमाए लिए दिखेगी. 

लैतिना शैली में एक ही घुमावदार टावर होता है, जिसमें चार कोने होते हैं. 

फमसाना शैली के मंदिर में एक के ऊपर एक कई छतों वाले टावर होते हैं. ऊपर वाली छत सबसे चौड़ी होती है. 

10वीं सदी में शेखरी और भूमिजा शैली विकसित हुईं. 

भूमिजा में हॉरिजॉन्टल और वर्टिकल कतारों में कई छोटे शिखर होते हैं, जबकि मेन शिखर, पिरामिड के आकार का दिखेगा. 

लैतिना में कई उप-शिखर होते हैं. लैतिना को रेखा प्रसाद भी कहते हैं. श्री जगन्नाथ मंदिर इसी शैली में बना हुआ है. 

इस तरह बनती गई होंगी नई शैलियां

नागर मंदिर जहां खुले में बनाए जाते हैं, लंबा-चौड़ा परिसर होता है, वहीं द्रविड़ शैली में मंदिर निर्माण एक बाउंड्री के भीतर होता है, जिसमें भीतर जाने के लिए भव्य प्रवेश द्वार रहता है. आगे चलकर सभी शैलियां एक-दूसरे से मिलती-जुलती चली गईं. उस दौर के कलाकारों ने मौजूदा विधा में ही अपनी सोच के आधार पर भी थोड़े बदलाव किए. इस तरह से डिजाइन बदलता चला गया, लेकिन मूल वही रहा. मध्यप्रदेश का कंदरिया महादेव टेंपल नागर शैली का बढ़िया उदाहरण है. कोणार्क और मोढेरा के सूर्य मंदिर पर प्राचीन नागर स्टाइल में बने हैं. 

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nagara style temple ayodhya ram mandir pran pratishtha photo AP

मंदिर के लिए हर राज्य से कुछ न कुछ 

राम मंदिर के लिए देश के ज्यादातर राज्यों की कोई न कोई खास चीज ली गई. मंदिर के निर्माण में राजस्थान के नागौर के मकराना का इस्तेमाल हुआ है. मकराना के मार्बल से ही राम मंदिर के गर्भगृह में सिंहासन बनाया गया है. इस सिंहासन पर भगवान राज विराजेंगे. भगवान श्रीराम के सिंहासन पर सोने की परत चढ़ाई गई है. गर्भगृह और फर्श में मकराना का सफेद मार्बल लगा है. मंदिर के पिलर को बनाने में भी मकराना मार्बल का इस्तेमाल हुआ है. 

देवताओं की नक्काशी कर्नाटक के चर्मोथी बलुआ पत्थर पर की गई है. इसके अलावा प्रवेश द्वार की भव्य आकृतियों में राजस्थान के बंसी पहाड़पुर के गुलाबी बलुआ पत्थर का इस्तेमाल किया गया है. गुजरात की तरफ से 2100 किलोग्राम की अस्तधातु घंटी दी गई है. पीतल के बर्तन उत्तर प्रदेश से आए हैं. जबकि पॉलिश की हुई सागौन की लकड़ी महाराष्ट्र से आई है. मंदिर निर्माण के लिए इस्तेमाल ईंट करीब 5 लाख गांवों से आई थीं.

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