डोमेस्टिक वर्कर अक्सर बंद दरवाजों के पीछे अकेले काम करते हैं तो उनकी आवाज अनसुनी रह जाती है. उनके पास फैक्ट्री या दफ्तर में काम करने वालों की तरह हक नहीं. न तो उन्हें न्यूनतम वेतन मिलता है, न ही जरूरी छुट्टियां. हालात तब और बिगड़ जाते हैं, जब घरेलू नौकर विदेश में काम करने लगें. कई बार वे अपने मालिक पर पासपोर्ट चुरा लेने, या मारपीट करने जैसे आरोप लगाते हैं. ताजा मामला भी कुछ ऐसा ही है.
पूर्व भारतीय राजदूत पर आरोप
भारतीय राजदूत नवदीप सूरी ने 2015 से अगले एक साल तक ऑस्ट्रेलिया में सर्विस दी. इस दौरान भारतीय महिला नौकरानी सीमा शेरगिल उनके घरेलू कामकाज करती रही. सीमा ने सालभर बाद ही सूरी पर गंभीर आरोप लगाए. उनका कहना था कि अधिकारी उससे गुलामों जैसा व्यवहार करते थे. उसका पासपोर्ट अपने कब्जे में लेकर वे उससे हफ्ते के सातों दिन काम करवाते रहे. ये रवैया 13 महीने चला. सीमा ने बताया कि वे बाहर भी केवल तभी जा पाती थीं, जब सूरी के कुत्ते को घुमाना हो. लंबे समय काम के बाद भी उन्हें काफी कम वेतन दिया गया.
अदालत ने पाया दोषी
सीमा का मामला ऑस्ट्रेलिया की कोर्ट में पहुंचा. अब अदालत ने सूरी को फेयर वर्क एक्ट के तहत दोषी पाते हुए दो महीनों में करीब 53 लाख रुपए जुर्माना भरने को कहा है.
वैसे इस मामले का एक और एंगल भी है. भारतीय विदेश मंत्रालय का आरोप है कि सीमा ने ऑस्ट्रेलियाई सिटिजनशिप पाने के ये हथकंडे अपनाए. उनके सारे आरोप गलत थे. खैर, ये मामला जो भी हो, लेकिन भारत से विदेश पहुंचे डोमेस्टिक हेल्प आसान जिंदगी नहीं जीते. भारत में तो इस सेक्टर के कामगारों के लिए पक्का वेतन नहीं, लेकिन क्या दूसरे देशों में भी ऐसा है?
क्या है फेयर वर्क एक्ट, जिसके तहत मिली सजा
यह ऑस्ट्रेलियाई संसद का नियम है, जिसे वहां की वर्क इंडस्ट्री में सुधार के लिए बनाया गया था. इसमें रोजगार के नियम बनते और लागू होते हैं. इसमें कई शर्तें हैं, जिनका पालन एम्प्लॉयर को करना जरूरी है. इसमें न्यूनतम वेतन तय होता है, साथ ही कई तरह की सेफ्टी नेट लगती हैं, जैसे कितनी छुट्टियां मिलेंगी ही मिलेंगी, या कर्मचारी को फ्लेजिबल काम के घंटे मिल सकें ताकि वो अपने काम भी निपटा सके.
सबसे बुरी हालत है घरेलू नौकरों की
इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (ILO) मानता है कि अनस्किल्ड लेबर में भी सबसे खराब हाल डोमेस्टिक हेल्प की है. उन्हें अपने काम के बदले सबसे कम वेतन भी नहीं मिल पाता. इसके अनुसार, दुनिया में साढ़े 21 मिलियन से ज्यादा घरेलू कामकाज करने वाले लोगों को बहुत कम तनख्वाह मिल रही है. इनमें से 4 मिलियन से ज्यादा घरेलू नौकर भारत में ही हैं. वैसे इनका कुल वर्कफोर्स 67 मिलियन का है. हालांकि लेबर ऑर्गेनाइजेशन में इसका जिक्र नहीं कि देश के भीतर कुल कितनों को ठीक वेतन मिल रहा है.
लगातार हो रहे शोषण की बात पता लगने पर ILO ने उनके हक दिलाने के लिए एक कदम उठाया. ILO डोमेस्टिक वर्कर्स कन्वेंशन नंबर 189 बना. ये उन्हें वर्कर की कैटेगरी में लाता और सारे न्यूनतम हक देता है. लेकिन केवल 25 ही देशों ने इसे अपने यहां लागू किया. भारत, और यहां तक कि अमेरिका भी उनमें से नहीं है.
देश किस तरह की सहायता देता है
अगर भारत के डोमेस्टिक हेल्प विदेशों में काम करने जाते हैं, तो उनकी सुरक्षा के लिए नियम बने हुए हैं. मिनिस्ट्री ऑफ एक्सटर्नल अफेयर्स की साइट पर सवाल-जवाब के रूप में इनका जिक्र है.
- अगर कोई दूसरे देश में सताया जाए, और वहां से भागकर लौटे तो वो अपने बचे पैसे क्लेम करने में सरकारी मदद मांग सकता है.
- अगर एम्प्लॉयर बिना इजाजत वर्क कॉन्ट्रैक्ट बढ़ा दे तो भी भारतीय डोमेस्टिक वर्कर अपने करीबी इंडियन एंबेसी में अप्रोच कर सकते हैं.
- अगर एम्प्लॉयर दस्तावेज रख ले और भारत लौटने से लौटे तो भी इंडियन एंबेसी मदद करती है, या वो खुद मदद पोर्टल पर शिकायत कर सकता है.
- अगर किसी वजह से कोर्ट केस चले तो प्रोसिडिंग के दौरान दुभाषिया भी दिलवाया जा सकता है.
फॉरेन एम्प्लॉयर के घर भारतीय महिला सहायिका जाए, तब क्या
कई बार भारतीय नौकर विदेशी घरों में भी रोजगार के लिए जाते हैं. इसमें भी उनके लिए सेफ्टी नेट बनाने की कोशिश की गई. मिनिस्ट्री ऑफ एक्सटर्नल अफेयर्स की वेबसाइट पर बताया गया है कि जाने से पहले जो लेखा-जोखा लिया जाता है, वो इसीलिए कि जरूरत में मदद दी जा सके. अगर कोई फॉरेन एम्प्लॉयर किसी भारतीय महिला को घरेलू काम के लिए रखना चाहे तो नियम और सख्त हैं. वे स्टेट के द्वारा चलने वाली एजेंसियों के जरिए ही ऐसा कर सकते हैं.
पूरे देश में ऐसी 9 एजेंसियां हैं. ये कॉन्ट्रैक्ट से लेकर देश के हालात तक की पड़ताल करती हैं ताकि महिला वहां सेफ रहे. फॉरेन एम्प्लॉयर को बैंक गारंटी देनी होती है.
भारत का 6 खाड़ी देशों से कॉन्ट्रैक्ट है. इसके तहत दोनों देशों के अधिकारियों में वहां की वर्क कंडीशन को लेकर लगातार बातचीत होती है. यह केवल डोमेस्टिक हेल्प नहीं, बल्कि पूरे असंगठित सेक्टर के लिए है, जिसका एक बड़ा हिस्सा है कंस्ट्रक्शन वर्क. यूएई के मानवाधिकार मंत्रालय ने 37 सेंटर बनाए हैं, जो बाहर से आए कामगारों को उनके हक की बात बताते, साथ ही उन्हें लोकल रीति-रिवाजों की जानकारी देते हैं. साप्ताहिक छुट्टियों के अलावा सालाना 30 दिन की पेड लीव यूएई में दी जाती है. बाकी खाड़ी देशों में भी मिलते-जुलते नियम हैं. हालांकि इन देशों से भी शिकायतें आती रही हैं.
क्या एम्प्लॉयर अपने घरेलू नौकर का पासपोर्ट रख सकता है
अक्सर ये आरोप लगता है कि एम्प्लॉयर ने कामगार का पासपोर्ट या दूसरे जरूरी दस्तावेज रख लिए जो विदेश में काम आते हैं. लेकिन पासपोर्ट एक्ट के मुताबिक, किसी का पासपोर्ट रखना अपराध की श्रेणी में आता है. यहां तक कि विदेश में काम करने की स्थिति में जरूरी दस्तावेज या पैसे आदि रखने के लिए एम्प्लॉयर को अपने नौकर के लिए लॉकर की व्यवस्था भी करनी होती है. अगर किसी का एम्प्लॉयर उसका पासपोर्ट लेने की कोशिश करे तो वो निकटस्थ एंबेसी में संपर्क कर सकता है.